वेतन एक मौलिक अधिकार है, दिल्ली हाई कोर्ट नगर निगमों पर सख्त

कर्मचारियों को वेतन और पेंशन का भुगतान न करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को नगर निगमों की जमकर खिंचाई की.

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Nihar Saxena
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Delhi High Court

दिल्ली सरकार से खर्चों का मांगा ब्योरा. अगली सुनवाई 21 को.( Photo Credit : न्यूज नेशन)

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दिल्ली नगर निगमों के कर्मचारियों और हेल्थ वर्कर्स को वेतन देने की मांग पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने कहा कि जब ऊंचे पदों पर बैठे लोगों को दर्द महसूस होगा तो सारे काम होने लगेंगे. हाईकोर्ट ने कहा कि सैलरी पाना एक कर्मचारी का मूलभूत अधिकार है जिससे उसे वंचित नहीं किया जा सकता है. जस्टिस विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली बेंच ने नगर निगमों (DMC) को अपने पार्षदों की सैलरी और क्लास वन और टू के अधिकारियों के वेतन के भुगतान में होने वाला खर्च के बारे में बताने का निर्देश दिया.

नगर निगमों की करी खिंचाई
कर्मचारियों को वेतन और पेंशन का भुगतान न करने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को नगर निगमों की जमकर खिंचाई की. कोर्ट ने कहा कि धन की कमी एक बहाना नहीं हो सकता और वेतन पाने का अधिकार भारत के संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है. कोर्ट ने कहा कि कोरोना काल में हेल्थ वर्कर्स, डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ, सफाई कर्मचारी फ्रंटलाईन कर्मचारी हैं. इनकी सैलरी देने की प्राथमिकता तय होनी चाहिए. हाईकोर्ट ने कहा कि नगर निगमों में विवेकाधीन खर्चे और अधिकारियों को भत्ते और गैर-जरुरी खर्चों पर रोक लगा सकती है ताकि उनका उपयोग फ्रंटलाईन कर्मचारियों को वेतन देने में हो सके.

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वेतन नहीं देने का असर जीवन की गुणवत्ता पर
जस्टिस विपिन सांघी और रेखा पल्ली की खंडपीठ, दिल्ली नगर निगमों विशेष रूप से उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी) और पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) के कर्मचारियों को वेतन और पेंशन का भुगतान नहीं करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. कोर्ट ने कहा, समय पर वेतन का भुगतान न किए जाने का कारण धन की कमी बताया गया है. ये एक बहाना नहीं हो सकता क्योंकि वेतन और पेंशन लोगों का मौलिक अधिकार है. अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत वेतन का भुगतान नहीं करने का सीधा असर लोगों के जीवन की गुणवत्ता पर पड़ेगा. अदालत ने आगे कहा कि यह बहुत जरूरी है कि निगमों के कर्मचारियों और सेवानिवृत्त कर्मचारियों को वेतन और पेंशन का भुगतान किया जाए, जिसमें डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ और स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी शामिल हैं, और जो महामारी के समय में भी अपनी सेवाएं दे रहे थे.

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सुनवाई की अगली तारीख 21 जनवरी
बेंच ने आगे कहा कि पैसे की कमी बहाना नहीं हो सकती और न ही इसे स्वीकार किया जाना चाहिए. वेतन और पेंशन के भुगतान को अन्य खर्चों से ज्यादा प्राथमिकता देनी होगी. अगली सुनवाई 21 जनवरी तक स्थगित करते हुए कोर्ट ने कहा, इसलिए, हम नगर निगमों को निर्देश देते हैं कि वो विभिन्न मदों में किए जाने वाले खर्च का ब्योरा दे. कर्मचारियों के लिए भत्ते की राशि विशिष्ट मद में स्पष्ट रूप से प्रकट किया जाना चाहिए. गौरतलब है कि नगर निगमों के कर्मचारी अपनी तनख्वाह न मिलने को लेकर 7 जनवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं.

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