उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकारों को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) तथा राज्य सूचना आयोगों (एसआईसी) में तीन महीने के भीतर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति करने का निर्देश दिया और कहा कि सूचना का अधिकार कानून का दुरुपयोग रोकने के लिए दिशा-निर्देश बनाने की आवश्यकता है. शीर्ष अदालत ने संबंधित अधिकारियों को सीआईसी के सूचना आयुक्तों के चयन और नियुक्ति के लिए बनाई गयी खोजबीन समिति के सदस्यों के नाम दो सप्ताह के अंदर वेबसाइट पर भी डालने को कहा. प्रधान न्यायाधीश एस.ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने अधिवक्ता प्रशांत भूषण की इस बात पर गौर किया कि शीर्ष अदालत के 15 फरवरी के आदेश के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों ने सीआईसी और एसआईसी में सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं की है.
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी इस पीठ का हिस्सा हैं. पीठ ने कहा, हम केंद्र और राज्य सरकारों को तीन महीने के अंदर नियुक्तियां पूरी करने का निर्देश देते हैं. शीर्ष अदालत ने 15 फरवरी के फैसले में कहा था कि सूचना अधिकारियों के चयन में विभिन्न अन्य क्षेत्रों के प्रतिष्ठित लोगों को शामिल किया जाना चाहिए और इसे केवल नौकरशाहों तक सीमित नहीं रखा जाए. प्रक्रिया पारदर्शी तरीके से होनी चाहिए. उच्चतम न्यायालय ने केंद्र और आठ राज्यों- पश्चिम बंगाल, ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात, नगालैंड, आंध्र प्रदेश, केरल तथा कर्नाटक को भी सीआईसी और एसआईसी में सूचना आयुक्तों के खाली पड़े पद एक महीने से छह महीने की अवधि में बिना किसी देरी के भरने का निर्देश दिया था.
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कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज की ओर से पक्ष रख रहे भूषण ने सोमवार को आरोप लगाया कि करीब 11 महीने गुजरने के बाद भी अधिकारियों ने फैसले का पालन नहीं किया है. अभ्यर्थियों के लंबित आवेदनों से सूचना आयुक्तों की नियुक्ति के बजाय अधिकारियों ने प्रक्रिया को खींचने के लिए नये सिरे से आवेदन मांगे हैं. केंद्र की ओर से अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल पिंकी आनंद ने इस दलील का पुरजोर विरोध किया और कहा कि सूचना आयुक्तों के चयन और नियुक्ति के लिए पहले ही खोज समिति बना दी गयी है.
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इस मामले पर सुनवाई के दौरान पीठ ने सूचना का अधिकार अधिनियम के दुरुपयोग का मामला भी उठाया और कहा कि इसके नियमन के लिए कुछ दिशा-निर्देश बनाने की आवश्यकता है. पीठ ने कहा, जिन लोगों का किसी मुद्दे विशेष से किसी तरह का कोई सरोकार नहीं होता है वे भी आरटीआई दाखिल कर देते हैं. यह एक तरह से आपराधिक धमकी जैसा है, जिसे ब्लैकमेल भी कहा जा सकता है. हम सूचना के अधिकार के खिलाफ नहीं हैं लेकिन दिशा-निर्देश बनाने की जरूरत है.’’ पीठ अंजलि भारद्वाज की अंतरिम याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
Source : न्यूज स्टेट ब्यूरो