दिल्ली के परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत ने बीजेपी नेता विजेंद्र गुप्ता के आरोपों पर जोरदार पलटवार किया है. कैलाश गहलोत ने विजेंद्र गुप्ता पर पलटवार करते हुए कहा कि पिछले 3-4 दिन से ऐसा एक माहौल पैदा करने की कोशिश की जा रही है जैसे कोई बहुत बड़ा घोटाला हुआ है. विजेंद्र गुप्ता की ये हॉबी है कि जब भी बसों की खरीद की बात होती है तब ACB में कम्प्लेन डालेंगे फिर सब जांच एजेंसियों को भेजेंगे, लेकिन ये कुछ भी कर लें जब तक अरविंद केजरीवाल की सरकार है हम बसें खरीदेंगे आपको जो करना है कर लो हमारा नारा था हम राजनीति करने नहीं राजनीति को बदलने आये हैं.
उन्होंने बीजेपी नेता विजेंद्र गुप्ता के लिए कहा काला अक्षर भैंस बराबर ये है इनकी हालत ये है कि इन्हें नहीं पता कि लिखा क्या है बस कह दिया की घोटाला हो गया जहां गंभीर चर्चा होती है वहां टुच्ची राजनीति करने बैठे हैं. कैलाश गहलोत ने बीजेपी पर हमलावर रुख अपनाते हुए कहा कि मैं उन्हें बताउंगा कि कैसे हमने 225 करोड़ रुपये बचाए हैं. कैलाश गहलोत ने बताया कि कैसे डीटीसी के मेंटीनेंस को और भी बेहतर बनाने के लिए नए उपाय किये हैं.
मैं बताऊंगा की कैसे 225 करोड़ रुपए बचायेः कैलाश गहलोत
11 जुलाई 2019 में कैबिनेट निर्णय हुआ कि DTC एक हज़ार बसें खरीदेगी. जो बसे खरीदी जाएंगी उसके साथ साथ एक कॉम्प्रिहैंसिव एनुअल मेंटिनेंस कॉन्ट्रैक्ट होगा जिसको ये AMC कह रहे हैं. प्रतिस्पर्धा की बोली के लिये टेंडर किया जाएगा जिसमें दो अलग टेंडर होंगे और दोनो टेंडर उस तालमेल से कोट किये जायेंगे की जब बसें आ जाएं तो एक भी दिन ऐसा न हो कि कोई भी बस बिना मेंटीनेंस के हो.
जानें पूरा मामला
20 मार्च 2020 में टेंडर 1000 बसों कोट किया. 19 अगस्त 2020 को कॉम्प्रिहेंसिव एएमसी टेंडर किया. 14 अक्टूबर 2020 को AMC की बिड्स खोलीं. बस देने वाली कम्पनी चंद ही हैं जो भी बसें देने के टेंडर में हिस्सा लेगा वो AMC के टेंडर में भी भाग लेगा ये टेंडर का हिस्सा है जिसे ये वारंटी कह रहे हैं. पहले DTC की जितनी भी बसें थी DTC मेंटेन किया करती थी... लेकिन लो फ्लोर बसें आनी शुरू हुईं इसका मेंटिनेंस हैं DTC के स्टाफ खुद करते हैं. 71 आइटम्स ऐसे हैं जो वारंटी में कवर नहीं होते... सिर्फ CNG को छोड़कर दिल्ली सरकार या DTC कुछ नहीं देती, हर एक चीज़ AMC अलग से देती है.
जिन्होंने किसानों जवानों को नहीं बख्शा वो आरोप लगा रहे हैं
अगर हमें ये पक्का करना है कि 92% बसें जो सड़क पर निकलें वो अच्छी हालत में हों इसके लिये वारंटी पीरियड में ये सारी चीज़ें कवर नहीं होती जिसे हम AMC कहते हैं. AMC का L1 रेट आया ₹48.50 दूसरा रेट आया ₹49.29. हमने उनसे कहा इसको दोबारा देखा 48.50 से negotiate करके 45.50 पर लेकर आये, 3 रुपए कम किये एक बस की अगर अपनी लाइफ में साढ़े 7 लाख किलोमीटर चलती है तो हमने करीब 225 करोड़ रुपए बचाये. वो यहीं पर चुप नहीं हुए उन्होंने हमला जारी रखते हुए कहा कि जिन्होंने किसानों को बेच खाया, जवानों को बेच दिया वो लोग आरोप लगा रहे हैं.
विजेंद्र गुप्ता ने लगाए थे ये आरोप
बीजेपी नेता विजेंद्र गुप्ता ने पिछले 3 दिन से लगातार विपक्ष दिल्ली सरकार द्वारा 1000 CNG लो फ्लोर बसों की खरीद में हुई अनियमितता की तरफ सदन का ध्यान दिलाना चाह रहा था. पिछले काफी समय से कोई बस नहीं खरीदी गई और जब 1000बसें खरीदी गई तो उसमें भारी घोटाला है. उन्होंने कहा कि 875 करोड़ रुपया कीमत है, 3 साल की वारंटी है और 3 साल तक बस कम्पनी 2 लाख 10 हज़ार किलोमीटर तक वारंटी है. जब बस का टेंडर किया गया तो annual मेंटिनेंस कॉन्ट्रैक्ट को टेंडर के साथ नहीं जोड़ा गया. 3-4 महीने के बाद एक और टेंडर किया गया. 3500 करोड़ रुपया उनके AMC (annual मेंटिनेंस कॉन्ट्रैक्ट) के लिए करार किया जाता है.
एक हजार की जगह 1250 बसों का टेंंडर
उस 3500 करोड़ रुपए में पहले 3 साल और 2 लाख 10 हज़ार किलोमीटर जो वारंटी पीरियड में कवर है.. यानी जिस दिन बसे DTC को मिलेंगी उसी दिन AMC 70 लाख रुपया शुरू हो जाएगी. नई गाड़ी में कम्पनी खुद हर सर्विस करके देती है. 890 करोड़ की बसों पर करीब 340 करोड़ रुपया आप AMC पर पहले ही साल में दे देते हैं. जब टेंडर किया 1 हज़ार बस का तो 1250 बस का टेंडर क्यों किया गया. अगर भविष्य में कोई आवश्यकता लगती तो टेंडर को 25% बढ़ा सकते लेकिन जब टेंडर की ओपनिंग हुई तो 1000 की जगह साढ़े 1200 बसों करोड़ का टेंडर किया 250 बसें अतिरिक्त
27 नवम्बर को बोर्ड मीटिंग हुई, उसमें 250 करोड़ अतिरिक्त का फैसला वापस लिया गया
उसके बाद साढ़े 3 महीने से आज तक DTC बोर्ड मीटिंग के मिनट अपलोड होने में इतना समय नहीं लगता. 8 मार्च को सदन के पहले दिन जब विपक्ष ने मामला खड़ा किया तब शाम को आनन फानन में इसे अपलोड किया गया.
ये बातें हैं संदिग्ध
इसके बाद 1 हज़ार बस का टेंडर किया गया... उसमें से स्प्लिट किया गया कि 700 L1 से ली जाएंगी 300 L2 से ली जाएंगी... टेंडर के बाद वर्क ऑर्डर के समय जो फैसले लिए गए हैं उससे साफ लग रहा है कि एक कम्पनी विशेष टेंडर को ले सके. बसों को split करके जो कंडीशन रखी और AMC का टेंडर 3-4 महीने बाद किया... इसका मतलब ये है कि डेढ़ वर्ष पहले जिस JPM कम्पनी को favour किया गया है हमने उसी कम्पनी का मामला उठाया.. तब वो टेंडर withdraw कर लिया गया... इससे सरकारी खजाने को नुकसान हुआ है? 3500 करोड़ में जो AMC की जा रही है उसका कोई justification नहीं है.
HIGHLIGHTS
- कैलाश गहलोत का विजेंद्र गुप्ता पर पलटवार
- विजेंद्र गुप्ता ने लगाया था भ्रष्टाचार का आरोप
- लोफ्लोर बसों की खरीद फरोख्त में घोटाले का आरोप