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मॉनसून आते ही क्यों दिल्ली-NCR हो गया पानी-पानी? जानें किस तरह से पैदा होते हैं जलजमाव के हालात

दिल्ली में बीते दिनों बारिश के बाद यातायात प्रभावित हुआ, कई सांसदों के घर के अंदर पानी प्रवेश कर गया, लोगों के लिए घर से बाहर निकलना कठिन हो गया. 

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Mohit Saxena
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water logging ( Photo Credit : social media)

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दिल्ली समेत देश के कई बड़े शहरों में पहली बारिश के बाद जलजमाव की स्थिति बनी हुई है. खासकर राजधानी में पहली बारिश के बाद ही हालात बदतर दिखाई दिए. बीते गुरुवार रात को जब मूसलाधार बारिश हुई तो यहां का लुटियंस जोंस भी इससे अछूता नहीं रहा. कई सांसदों के बंगलों में लबालब पानी दिखा. वहीं सड़कों पर लोगों को यातायात की समस्या का सामना करना पड़ा. जगह-जगह जाम जैसे हालात दिखाई दिए. इस तरह के हालात  से निपटने के लिए पानी की निकासी को लेकर खास योजना बनाने की आवश्यकता होती है. इसमें नालियों का पुनर्निर्माण करना. फुटपाथों, सड़कों से अतिक्रमण हटाना. इसके साथ सभी एजेंसियों का एक साथ काम करना बेहद जरूरी है. आपको बता दें कि देश की 416 मिलियन (2019) की शहरी आबादी 2047 तक 461 मिलियन तक पहुंचने वाली है. इस अर्थ है कि वक्त पर अगर ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो आने वाले सालों में ये समस्या और भी बदतर हो सकती है. 

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क्या इसके पीछे की वजह 

इस तरह के जलभराव की समस्या बिना प्लानिंग के शहरीकरण के वजह से होती आई है. बिना किसी योजनाबद्ध तरीके शहर का विकास और क्षेत्रों के विस्तार की वजह से ऐसे हालात देखने को मिलते हैं. निर्माण और ध्वस्त करके कचरे को डंप करने की वजह से झीलों, तालाबों और जल निकायों का सूखना और विनाश का एक बड़ा कारण है. इसके अलावा झीलों और अन्य जल निकायों पर घर बनाना भी मुख्य वजह है. आपको बता दें कि गुरुग्राम में 519 जल निकायों में से आधे 40 वर्षों में आदृश्य हो चुके हैं. बेंगलुरु को लेकर भी ऐसी ही कहानी सामने आई है. 

इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

इस तरह की समस्या का निदान इसलिए भी नहीं हो पाता है क्योंकि योजना एजेंसियां, शहरी स्थानीय निकाय और पानी और सीवेज के लिए विशेष एजेंसियां हैं. ये तीनों शायद ही कभी एक साथ काम करती हैं. वहीं ठोस अपशिष्ट शहरी स्थानीय निकायों के दायरे में आते हैं. पानी और सीवेज अक्सर नहीं आते हैं. इस तरह से बिखरा हुआ नियोजन एनसीआर जैसे विशाल शहरी स्थानों के समग्र प्रबंधन की इजाजत नहीं देता है. 

उचित जलनिकासी योजनाएं तैयार करनी चाहिए

इससे निपटने के लिए खास तैयारी की जरूरत है. एमपीडी-2041, नीले-हरे विकास और कचरे को अलग करने के लिए ढलावों के उपयोग का प्रावधान करता है. इसे सख्ती से लागू होना चाहिए. इसके साथ उचित जलनिकासी योजनाएं तैयार होनी चाहिए. मगर ये अपर्याप्त साबित हुई हैं. इस पर पुनर्विचार की जरूरत है. दिल्ली के आईटीओ पर जलभराव को ही लीजिए. सीवेज नेटवर्क के विस्तृत पुनर्गठन से इसका हल हो सकता है. पानी और स्वच्छता योजनाएं को तैयार करने की जरूरत है. इसके साथ सड़कों और गलियों और फुटपाथों का सुरक्षा ऑडिट नियमित रूप से होने की आवश्यकता है. इस तरह के ऑडिट से पानी, सामान और लोगों की आवाजाही को लेकर जगह खाली करने को लेकर जरूरी कार्रवाई होनी चाहिए. 

Source : News Nation Bureau

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