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आखिर चिदंबरम को क्यों याद आए रंगा-बिल्ला? जिनकी कारिस्तानी से दहल गया था पूरा देश

रंगा और बिल्ला (Ranga and Billa) को 1978 में दिल्ली में दो भाई-बहन गीता और संजय चोपड़ा के अपहरण, रेप (Rape) और हत्या (Murder) का दोषी ठहराया गया था और इन दोनों को मौत की सजा सुनाई गई थी. इन दोनों अपराधियों को 1982 में फांसी दी गई थी.

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Kuldeep Singh
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आखिर चिदंबरम को क्यों याद आए रंगा-बिल्ला? जिनकी कारिस्तानी से दहल गया था पूरा देश

रंगा और बिल्ला जिन्हें सैन्य अधिकारी के बच्चों की हत्या में हुई फांसी( Photo Credit : फाइल फोटो)

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पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम (P Chidambaram) आईएनएक्स मीडिया भ्रष्टाचार (INX Media Scam) और धनशोधन मामले में पिछले तीन महीने से भी अधिक समय से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं. बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले को लेकर सुनवाई के दौरान जब कोर्ट ने उन्हें जमानत देने से इंकार कर दिया तो उन्हें कोर्ट से पूछा कि क्या वह ‘रंगा-बिल्ला’ जैसे अपराधी हैं. दरअसल रंगा बिल्ला देश के सबसे क्रूर अपराधियों में शामिल रहे हैं. करीब 40 साल पहले इन्होंने एक ऐसी घिनौनी वारदात को अंजाम दिया था जिसे लोग आज तक नहीं भी भूल पाए हैं.

यह था पूरा मामला
दिल्ली में 26 अगस्त 1978 की रात एडमिरल मदन मोहन की 17 साल की बेटी गीता चोपड़ा और बेटा संजय घर से ऑल इंडिया रेडियो जाने के लिए निकले थे. उन्हें वहां काम खत्म कर थोड़ी देर में आना था. जैसे जैसे समय बीतता गया घरवालों की परेशानी बढ़ती गई. रात 11 बजे तक गीता और संजय की कोई खबर नहीं आई. एडमिरल चोपड़ा ने थक कर अपने बच्चों की तलाश शुरू की तो पता चला कि दोनों बच्चे जहां के लिए निकले थे, वहां पहुंचे ही नहीं. घबराए मां-बाप पुलिस के पास पहुंचे. पुलिस ने संजय और गीता की तलाश शुरू की लेकिन उनका कोई सुराग नहीं मिला. मामला सैन्य अधिकारी के बच्चों से जुड़ा था. मामले की गंभीरता को देखते हुए मामला क्राइम ब्रांच को सौंप दिया गया.

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फिएट कार से हुआ था दोनों का अपहरण
संजय और गीता के लापता होने के अगले ही दिन एक शख्स ने पुलिस को फोन कर बताया कि उसने फिएट कार में एक लड़की को चीखते चिल्लाते देखा था. गाड़ी के शीशे बंद थे और वो तेज रफ्तार में सड़क पर दौड़ रही थी. गाड़ी का नंबर था HRK 8930. पुलिस इस खबर की पुष्टि कर ही रही थी कि इस बीच राजेंद्र नगर पुलिस स्टेशन से एक और सनसनीखेज खबर आई वहां भी किसी ने पुलिस को एक फिएट कार के बारे में बताया था. खबर देने वाले के मुताबिक कार में चार लोग थे. पीछे बैठे एक लड़की और एक लड़का आगे बैठे लोगों से हाथापाई कर रहे थे. पुलिस के लिए खास बात यह थी कि इस कार भी नंबर वही था जिसे पहले व्यक्ति ने फोन पर बताया था. 

गाड़ी पर थी फर्जी नंबर प्लेट
इससे पुलिस को अंदेशा हो गया कि संजय और गीता की गुमशुदगी और उस फिएट कार का कहीं ना कहीं कोई रिश्ता है. पुलिस ने फिएट कार की तलाश शुरू कर दी. काफी मशक्कत के बाद पुलिस को उस कार का सुराग मिला. ट्रांसपोर्ट विभाग के रिकॉर्ड से पता चला की कार पानीपत में रहने वाले किसी रविंदर गुप्ता की है. सुराग की आस लगाए पुलिस की टीम पानीपत भी पहुंची लेकिन वहां तफ्तीश को बड़ा झटका लगा. HRK 8930 नंबर की गाड़ी वहां मौजूद तो थी लेकिन ना तो वह कार फिएट कार थी ना ही इस हाल में कि वो दिल्ली तक पहुंच सके. पुलिस को यकीन हो गया कि अपराधियों ने फर्जी नंबर का इस्तेमाल किया. कातिल तक पहुंचने का कोई सिरा पुलिस को नहीं मिल रहा था. मामले की जांच कर रही पड़ताल के दौरान पुलिस को पता चला कि कुछ दिन पहले गीता चोपड़ा की एक फौजी अफसर के बेटे से नोंकझोक हुई थी. शक की सुई उस पर घूम गई कि कहीं उसी ने तो वारदात को अंजाम नहीं दिया लेकिन जांच के बाद उसे क्लीन चिट दे दी.

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तीन दिन बाद मिली थी दोनों की लाश
घटना को बीते तीन दिन हो चुके थे लेकिन संजय और गीता का कोई सुराग नहीं मिल रहा था. इसी बीच पुलिस को दिल्ली की सड़क पर दो बच्चों की लाश मिली. पुलिस ने शिनाख्त के लिए एडमिरल चोपड़ा को बुलाया. एडमिरल चोपड़ा और उनकी पत्नी सांस रोके रिंग रोड पहुंचे. वही हुआ जो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था. सामने था उनकी जिंदगी का सबसे दर्दनाक मंजर. खून से सनी वो दो लाशें उनके मासूम बच्चों की गीता और संजय की ही थीं. इस घटना ने दिल्ली ही नहीं पूरे देश को हिला दिया था. घटना पूरे देश में सुर्खियों में आ गई.

गीता के साथ हुई थी दरिंदगी
संजय और गीता जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आई तो उसने सभी को चौंका दिया. पोस्ट मॉर्टम रिपोर्ट रिपोर्ट के मुताबिक संजय के शरीर पर चोट के 21 निशान थे जबकि गीता के शरीर पर 6 निशान मौजूद थे. दोनों का कत्ल तेज धारवाले किसी हथियार से किया गया. रिपोर्ट में एक और सनसनीखेज बात थी जिसने सबके होश उड़ा दिए. हत्या से पहले गीता से बलात्कार हुआ था. फॉरेंसिक टीम ने घटनास्थल पर मौजूद खून के धब्बे गीता की लाश के पास मिले कुछ बाल और मिट्टी के नमूनों को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया. खून के धब्बों और बालों की जांच से साफ हो गया कि वारदात को अंजाम दो लोगों ने दिया. पुलिस मामले को सुलझाने की कोशिश में लगी थी लेकिन उसके हाथ कोई सुराग नहीं लग रहा था.

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फिंगर प्रिंट से मिला था रंगा बिल्ला का सुराग
इसी बीच 31 अगस्त की शाम पुलिस को खबर मिली की उत्तरी दिल्ली के मजलिस पार्क इलाके में एक फिएट कार लावारिस खड़ी थी. पुलिस ने गाड़ी की तलाशी ली तो उसमें कई नंबर प्लेट मिले. इनमें एक नंबर HRK 8930 भी था. पुलिस को यकीन हो गया कि यही वो गाड़ी है जिसके इस्तेमाल घटना में किया गया. मूसलाधार बारिश से कई सुराह मिट चुके थे लेकिन फिर भी पुलिस ने नंबर प्लेट्स को फॉरेंसिक लैब भेज दिया गया. फॉरेसिंक एक्सपर्ट ने गाड़ी के अंदर से उंगलियों के निशान भी तलाश लिए. पुलिस ने उन निशानों को पुलिस रिकॉर्ड में मौजूद अपराधियों से मिलाने के लिए भेज दिया गया. सिर्फ फिंगर प्रिंट से अपराधी तक पहुंचना नामुमकिन नजर आ रहा थी फिर भी पुलिस ने अपराधियों के रिकॉर्ड तलाशने शुरू किए. क्राइम ब्रांच की नजर एक फाइल पर आकर टिक गई. यह फाइल थी मुंबई से फरार दो शातिर बदमाशों रंगा और बिल्ला की.

रेलवे स्टेशन पर हुए गिरफ्तार
क्राइम ब्रांच की टीम मामले की जांच के लिए मुंबई पहुंची. उन्हें तलाश थी कुलजीत सिंह उर्फ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला की. इन दोनों पर फिरौती के लिए अपहरण और कार चोरी जैसे कई मामले दर्ज थे. कुछ ही महीने पहले दोनों पुलिस हिरासत में फरार हुए थे. मुंबई पुलिस के रिकॉर्ड में रंगा और बिल्ला के उंगलियों के निशान मौजूद थे. पुलिस ने फौरन उन फिंगस प्रिंट्स को फॉरेंसिक एक्सपर्ट्स को सौंपा और एक चौंकाने वाला खुलासा हुआ. कार के अंदर मिले निशान किसी और के नहीं रंगा और बिल्ला के ही थे. पुलिस ने रंगा और बिल्ला के पोस्टर शहर के चप्पे चप्पे पर लगवा दिए.

आगरा में हुई थी गिरफ्तारी
पुलिस को एक दिन खबर मिली की रंगा-बिल्ला की मिलती शक्ल के लोग रेलवे पुलिस के हत्थे चढ़े हैं. लगातार नाकामी झेल रही पुलिस को बिल्कुल यकीन नहीं था की वो दोनों रंगा और बिल्ला होंगे लेकिन पुलिस पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के लॉकअप में पहुंची तो सामने थे शातिर बदमाश रंगा और बिल्ला. दोनों को आगरा में उस समय गिरफ्तार किया गया था जब दोनो गलती से कालका मेल के उस डिब्बे में चढ़ गए जो सैनिकों के लिए आरक्षित था, एक सैनिक ने अखबार में छपी उनकी फोटो से उनको पहचान लिया और बाद में दोनो को गिरफ्तार कर लिया गया था.

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ऐसे दिया था वारदात को अंजाम
क्राइम ब्रांच ने रंगा और बिल्ला से पूछताछ हुई तो दो मासूमों के घिनौने हत्याकांड का राज परत दर परत खुलने लगा. 26 अगस्त की शाम ऑल इंडिया रेडियो जाने के लिए संजय और गीता चोपड़ा बस का इंतजार कर रहे थे अचानक एक फिएट कार उनके पास आकर रुकी. गीता को देखकर खूंखार अपराधी रंगा और बिल्ला की नीयत खराब हो गई. लिफ्ट देने के बहाने उन्होंने संजय और गीता को गाड़ी के अंदर बैठा लिया लेकिन ऑल इंडिया रेडियो जाने के बजाए वो फिएट कार मुड़ गई एक सुनसान रास्ते की तरफ.

खतरे का अंदाजा लगाते ही संजय और गीता ने शोर मचाना शुरू कर दिया लेकिन कार से निकलने की उनकी तमाम कोशिशें बेकार हो रही थीं. कई रास्तों को चीरती हुई वो कार रिज के सुनसान इलाके में जा पहुंची. बिल्ला ने फौरन गीता को गाड़ी से बाहर खींच लिया. इस बीच संजय के हाथ गाड़ी में पड़ी तलवार लग गई. बहन की इज्जत बचाने के लिए उसने पूरी ताकत से बिल्ला पर वार किया लेकिन बिल्ला और रंगा के सामने वो ठहर ना सका दोनों ने उसी तलवार से उसका कत्ल कर दिया फिर उन दोनों हैवानों ने मासूम गीता को हवस का शिकार बनाया और तलवार से उसे भी मौत के घाट उतार दिया.

1982 में दोनों को दी गई फांसी
इस आठ महीने तक अदालत में यह मामला चला. तमाम सबूत रंगा और बिल्ला के खिलाफ थे. कोर्ट ने 7 अप्रैल 1979 को दोनों को फांसी की सजा सुना दी. दोनों दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद थे. 31 जनवरी 1982 को दोनों को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई.

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संजय और गीता को मिला था मरणोपरांत कीर्ति चक्र
इस केस के बाद भारत सरकार ने गीता और संजय चोपड़ा को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से नवाजा था. 1978 में भारतीय बाल कल्याण परिषद ने 16 से कम आयु के बच्चों के लिए दो वीरता पुरस्कार संजय चोपड़ा पुरस्कार और गीता चोपड़ा पुरस्कार की घोषणा की जिन्हें राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार के साथ हर साल 26 जनवरी को 16 साल के कम उम्र बच्चों को दिया जाता है. गाजियाबाद में स्कूल गीता-संजय पब्लिक स्कूल के नाम से स्थापित किया गया है.

Source : कुलदीप सिंह

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