Gujrat High Court On alimony: गुजरात हाई कोर्ट ने एक विवाहिता महिला के भरण-पोषण को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. हाई कोर्ट ने गुजारा भत्ता पर सुनवाई करते हुए कहा कि पति को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने ही होगा, इसमें कोई भी बहानेबाजी नहीं चलेगी. अगर महिला का पति मानसिक और शारीरिक रूप से स्वथ्य है तो उसे अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना पड़ेगा. वह यह कहकर गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता कि उसकी आय कम है और परिवार के अन्य सदस्यों की देखरेख की वजह से वह पैसे देने में सक्षम नहीं है. सीआरपीसी की धारा 125 के तहत एक पत्नी को पति से भरण-पोषण का अधिकार तब तक है, जब तक कि उसे अयोग्य घोषित न कर दिया जाए. यह फैसला न्यायमूर्ति डीए जोशी ने सुनाया.
पति को हर हाल में देना होगा पत्नी को गुजारा भत्ता
दरअसल कोर्ट ने यह फैसला एक व्यक्ति की दर्ज याचिका को खारिज करते हुए सुनाया. व्यक्ति ने भावनगर परिवार अदालत की फैसले के विरोध में हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें व्यक्ति को हर महीने अपनी पत्नी को 10,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता देने के निर्देश दिया गया था. महिला 2009 से अपने पति से अलग रह रही है. शख्स ने याचिका दायर करते हुए कहा कि परिवार के अन्य सदस्यों के खर्च और मेडिकल बिलों का भुगतान करने के बाद पैसे नहीं बच पा रहे हैं और पत्नी को दिया जाने वाला गुजारा भत्ता बहुत ज्यादा है. जिसे देने में वह सक्षम नहीं है.
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गुजारा भत्ता में नहीं चलेगी बहानेबाजी
याचिकाकर्ता के इस दलील को खारिज करते हुए न्यायमूर्ति जोशी ने कहा कि यह पति यह तर्क देते हैं कि बेरोजगारी या कम सैलेरी होने की वजह से वह गुजारा भत्ता देने में सक्षम नहीं है. वे इसके लिए कई तरह की जिम्मेदारियों को लेकर भी दावा करते हैं, लेकिन यह सब महज एक बहाना है. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि पति स्वस्थ है और सक्षम है, तो उसे अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देना पड़ेगा. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि जब महिलाएं अपना ससुराल छोड़कर जाती है तो वह कई तरह की सुख-सुविधाओं से वंचित हो जाती है. जिसके बाद गुजारा भत्ता ही है, जो उसकी आर्थिक रूप से मदद कर सकता है. इसलिए उसे हर हाल में गुजारा भत्ता मिलना चाहिए.