भारत में पानी की एक ऐसी समस्या आकार ले रही है, जिसकी तरफ अभी किसी का खास ध्यान नहीं है. पानी की कमी से तब भी चिंतित नहीं हैं, जब चेन्नई सरीखे शहर में ट्रेन से पानी की आपूर्ति से जुड़ी खबर पढ़ते हैं या राजस्थान की आबादी को गहरे सूखे कुओं में लंबे पाइप के सहारे एक-एक बूंद के लिए जद्दोजहद करते देखते हैं. सच तो यह है कि ज्यादा नहीं कुछ सौ साल पहले ही गुजरात ने बरसात में जल संचय की ऐसी तकनीक विकसित कर ली थी, जो कालजयी है. यानी इस तकनीक को कहीं भी अपनाया जा सकता है और सबसे बड़ी बात इस तकनीक से एकत्र पानी सालों साल तक खराब भी नहीं होता है.
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प्राचीन मकानों का खड़िया
अहमदाबाद के पास एक जगह है खड़िया, यहां के लोग अभी भी लगभग तीन सौ साल पुरानी जल संचय करने की तकनीक अमल में लाते हैं. यह इलाका अपने प्राचीन मकानों और वहां रहने की व्यवस्था के लिए जाना जाता है. यहां के अधिसंख्य मकान विरासत की श्रेणी में आते हैं. जितनी अनूठी इन मकानों की बनावट है, उतनी ही अनुठी यहां बरसात में जल संचयन की अमल में लाई जाने वाली तकनीक है. मकानों में सबसे नीचे, कम से कम 20 फीट, पानी को स्टोर करने के लिए एक बड़ा सा टंका बना मिल जाएगा. इसका पानी इस कदर शुद्ध है कि इसे सालों साल रखकर इस्तेमाल कर सकते हैं.
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पानी में अच्छे बैक्टीरिया
स्थानीय निवासी जगदीप भाई बताते हैं कि उनके घर के 'टंका' में फिलहाल 17 हजार लीटर पानी जमा है. इस पानी में अशुद्धि के नाम पर कुछ भी नहीं मिलता है. उलटे पानी में अच्छे बैक्टीरिया भी पाए जाते हैं, जो इलाज के काम भी आता है. इस पानी का इस्तेमाल गंभीर संकट में ही किया जाता है. जगदीप भाई की इस बात की पुष्टि कुछ समय पहले किया गया एक परीक्षण भी करता है. इसके तहत सैकड़ों साल पुराने इन विशालकाय 'टंकों' का पानी विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप ही पाया गया था.
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कांसा और चूना देता है शुद्ध पानी
बरसात के जमा किए गए पानी की शुद्धता का पूरा खेल कॉपर और चूना मिट्टी से जुड़ा है. इसके तहत कांसे से घर में ड्रेनेज सिस्टम तैयार किया गया है, जिससे बरसात में पानी घर के निचले हिस्से में बने विशालकाय 'टंका' तक पहुंचता है. यह 'टंका' एक खास किस्म के लाइम स्टोन से बना होता है. यानी कांसा और चूना पानी को अशुद्धि से बचाए रखता है. माना जाता है कि बरसात के पानी को इस तरह एकत्र करने की तकनीक प्राचीन मिस्र में अपनाई गई थी.
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नक्षत्रों के आधार पर होता है जल संचयन
इन सैकड़ों साल पुराने घरों में बरसात के दौरान पानी का संचयन ग्रह नक्षत्रों के आधार पर किया जाता है. मूल और ज्येष्ठा नक्षत्र में पानी का संचयन नहीं किया जाता है. अश्विनी, पूर्वा फाल्गुनी, रोहिणी, कृतिका में पानी का संचय बेहतर माना जाता है. अहमदाबाद नगर निगम के मुताबिक इस तकनीक को समझने के लिए इजरायल ने भी रुचि दिखाई है. जाहिर है अगर देश के अन्य हिस्सों में भी इस तकनीक से बारिश के पानी का संचय किया जाने लगे, तो हर साल आने वाली पानी की कमी से काफी हद तक निपटा जा सकेगा.
HIGHLIGHTS
- अहमदाबाद के पास स्थित खड़िया सैकड़ों साल पुराने मकानों के लिए है प्रसिद्ध.
- इन मकानों में अपनाई गई है बारिश के पानी को एकत्र करने की अनूठी तकनीक.
- इस एकत्र पानी का इस्तेमाल सालों साल बाद भी किया जा सकता है.