Haryana Politics: हरियाणा में अब बागियों को लेकर पेंच फंसने लगा है. यहां विधानसभा चुनाव में टिकट से वंचित होने के बाद कांग्रेस और भाजपा के बागियों ने दोनों पार्टियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. कांग्रेस के 36 और भाजपा के 33 बागियों ने निर्दलीय या छोटे दलों के टिकट पर नामांकन दाखिल किया है. ऐसे में अब दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों की चुनाव पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर चिंतिएं बढ़ा दी हैं.
गौरतलब है कि अगस्त में चुनाव आयोग ने हरियाणा के लिए चुनाव कार्यक्रम का ऐलान किया था. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही भाजपा के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा था. लेकिन टिकट वितरण के बाद कांग्रेस और भाजपा दोनों में बगावती सुर सुनाई देने लगे. कई हफ्तों तक चले प्रचार के बाद हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से कम से कम 30 सीटों पर चुनाव बहुकोणीय मुकाबले में तब्दील हो गया.
बता दें कि भाजपा और कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने बागी हुए नेताओं को मनाने की कोशिश भी की और अपना नामांकन वापस लेने के लिए मनाने में कामयाबी भी मिली, लेकिन कई बागी नेता अभी भी मैदान में हैं और उन्होंने कई निर्वाचन क्षेत्रों में द्विध्रुवीय मुकाबले को बहुकोणीय मुकाबले में बदल दिया है. उनकी मौजूदगी से वोट बंटने और हरियाणा में शक्ति संतुलन बिगड़ने का खतरा है, जहां भाजपा को सत्ता विरोधी लहर और पुनर्जीवित कांग्रेस के कारण कड़ी लड़ाई का सामना करना पड़ रहा है.
कई बड़े बागी नेता मैदान में
प्रमुख बागियों की बात करें तो भाजपा के कुरक्षेत्र सांसद नवीन जिंदल की मां और देश की सबसे अमीर महिला सावित्री जिंदल शामिल हैं. उन्होंने बीजेपी के आधिकारिक उम्मीदवार और स्वास्थ्य मंत्री कमल गुप्ता के खिलाफ निर्दलीय ताल ठोकी है. जिंदल परिवार हिसार में एक प्रभावशाली परिवार है. यहां सावित्री जिंदल की मौजूदगी भाजपा के कमल गुप्ता के लिए बड़ी चुनौती है.
इस बगावत का असर अंबाला कैंट निर्वाचन क्षेत्र में भी दिखाई देने लगा है. यहां कांग्रेस ने पूर्व मंत्री और भाजपा नेता अनिल विज के खिलाफ परमल परी को चुनावी रण में उतारा है. अंबाला शहर के उम्मीदवार निर्मल सिंह की बेटी चित्रा सरवारा निर्दलीय के रूप में चुनाव लड़ रही हैं और वह आधिकारिक कांग्रेस उम्मीदवार से अधिक मजबूत बनकर उभरी हैं. पिछले चुनाव में चित्रा ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और हार गईं थी.
निर्दलीय बढ़ा रहे मुश्किलें
बता दें कि करनाल, फरीदाबाद और जींद जैसे कड़े मुकाबले वाले क्षेत्रों में विद्रोहियों का प्रभाव पड़ने के आसार हैं, जहां जीत का अंतर कम हो सकता है और विद्रोही वोटों का एक बड़ा हिस्सा हासिल कर सकते हैं. उदाहरण के लिए, जींद जिले में कांग्रेस के बागी प्रदीप गिल और भाजपा के बागी जसबीर देशवाल से कोई खास वोट मिलने की उम्मीद नहीं है. फरीदाबाद में, असंतुष्ट भाजपा नेता दीपक डागर उस क्षेत्र में सत्तारूढ़ पार्टी के लिए परेशानी खड़ी कर सकते हैं.