Haryana Political Crisis: हरियाणा में एक दिन पहले यानी मंगलवार को सियासी हलचलें तेज हो गईं. तीन निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया. इस समर्थन वापसी के बाद हरियाणा की बीजेपी शासित सरकार को लेकर संकट खड़ा हो गया. राजनीतिक समीकरण के बिगड़ने की बातें भी सामने आने लगीं. तीनों निर्दलीय विधायकों ने पाला बदलकर कांग्रेस का हाथ भी थाम लिया. हालांकि बाहर से समर्थन देने की बात कही, आधिकारिक जॉइन नहीं किया. ऐसे में सवाल उठने लगे कि क्या हरियाणा में बीजेपी की सरकार गिर जाएगी. अल्पमत में आने की वजह से राजनीतिक गलियारों में ये चर्चाएं होने लगीं, हालांकि बीजेपी ने समस्या को संकट नहीं माना. बीजेपी का दावा है कि उनकी सरकार किसी भी तरह के संकट में नहीं है बल्कि उनके पास पूर्म बहुमत है. आइए जानते हैं कि क्या वाकई में हरियाणा सरकार संकट में नहीं है.
इन तीन विधायकों ने बदला पाला
मंगलवार 7 मई को हरियाणा सरकार के तीन निर्दलीय विधायकों चरखी दादरी से विधायक सोमबीर सांगवान, पुंडरी से निर्दलीय विधायक रणधीर गोलन और नीलोखेड़ी से विधायक धर्मपाल गोंदर ने पाला बदल लिया. बीजेपी सरकार से समर्थन लेने के बाद इन्होंने कांग्रेस को लोकसभा और विधानसभा चुनाव में समर्थन देने की घोषणा कर दी. इसको लेकर तीनों ही एमएलए ने रोहतक में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ प्रेस वार्ता भी की.
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हरियाणा सरकार पर संकट नहीं इसकी दो बड़ी वजह
जानकारों की मानें तो हरियाणा में बीजेपी सरकार पर कोई संकट नहीं है. इसके पीछे दो बड़ी वजह हैं.
पहली वजहः 13 मार्च को हासिल किया विश्वास मत
दरअसल हरियाणा में मार्च के महीने में ही बीजेपी ने आगे की स्क्रिप्ट लिख दी थी. लोकसभा और हरियाणा के विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी ने तात्कालीन सीएम मनोहरलाल खट्टर को हटाया और कुरुक्षेत्र से लोकसभा सांसद नायब सिंह सैनी को सीएम बनाया था. ये फैसला बीजेपी ने जननायक जनता पार्टी (JJP) के साथ गठबंधन टूटने की स्थिति में लिया था. दुष्ययंत चौटाला के नेतृत्व वाली जेजेपी के 10 विधायक सरकार के साथ थे. लेकिन बीजेपी उस दौरान निर्दलियों का साथ लिया और सरकार को बचा लिया. लेकिन इससे पहले 22 फरवरी 2024 को ही सीएम मनोहरलाल खट्टर के कार्यकाल में कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लाई थी. अब मार्च में खट्टर के इस्तीफे और नायब सिंह सैनी के सीएम बनने के बाद नए सीएम सैनी विश्वासमत हासिल नहीं किया, क्योंकि कानून के मुताबिक एक बार अविश्वास प्रस्ताव लाने के बाद 6 महीने तक दोबारा इसे नहीं लाया जा सकता है. ऐसे में फिलहाल हरियाणा की बीजेपी सरकार पर कोई संकट नहीं है.
दूसरा कारणः विधानसभा भंग कर चुनाव का ऐलान
बीजेपी सरकार पर संकट इस वजह से भी नहीं है क्योंकि कानून के मुताबिक 6 महीने तक अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता, ऐसे में 22 अगस्त से पहले कांग्रेस ये काम नहीं कर सकती है. इसके बाद अगर कांग्रेस अपनी चाल चलती भी है तो बीजेपी सरकार भंग कर नए चुनाव का ऐलान कर देगी और एक बार फिर जनता के पास होगी नई सरकार चुनने की चाबी.
बीजेपी ने किया 47 विधायकों के समर्थन का दावा
दूसरी तरफ बीजेपी अब भी अपने पास 47 विधायकों के समर्थन का दावा कर रही है. बीजेपी नेता प्रवीन आत्रेय की मानें तो उनकी सरकार अल्पमत में नहीं है. बीजेपी के पास खुद के 40 विधायकों का साथ है, इसके अलावा 3 निर्दलीय राकेश दोलताबाद और नयनपाल रावत हलोपा के विधायक गोपाल कांडा भी नायब सरकार के साथ हैं. वहीं जजपा के 4 एमएलए भी बीजेपी को समर्थन दे रहे हैं. इनमें नारनौंद विधायक रामकुमार गौतम, नरवाना एमएलए रामनिवास सुरजाखेड़ा और टोहाना के विधायक देवेंद्र बबली शामिल हैं.
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क्या कांग्रेस खुद के पैर पर ही मारी कुल्हाड़ी
हरियाणा में सरकार बनाने की चाहत रखने वाली कांग्रेस ने सियासी घटनाक्रम में अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मारने का काम किया है. कांग्रेस की ओर से लाया गया अविश्वास प्रत्साव ही उसकी गले की फांस बन गया है. कानून कहता है कि 6 महीने में दोबारा नहीं लाया जा सकता है. अब कांग्रेस अगस्त के महीने में अविश्वास प्रस्ताव लाने की कोशिश भी करेगी तो चुनाव का ऐलान उसके इस सपने पर भी पानी फेर देगा.
Source : News Nation Bureau