हिमाचल प्रदेश में 8 दिसंबर को आने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों से पहले सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर को देखते हुए बागी बन चुके विधायक उम्मीदवारों से दोनों पार्टियों ने इस विश्वास के साथ इन-डोर बातचीत शुरू कर दी है कि राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता है. त्रिशंकु सदन की स्थिति में भाजपा और मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने संख्या बल पर फोकस कर लिया है. अंदरूनी सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि दोनों दलों के नेता पार्टी की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए पार्टी के बागियों के साथ अपने मतभेदों को कम करने की कोशिश कर रहे हैं, जिनकी संख्या लगभग 20 है.
कांग्रेस से सांसदों के पलायन करने की सबसे अधिक आशंका है. कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर स्वीकार किया, अगर बीजेपी को यह एहसास हो जाता है कि उसे अपनी सरकार बचाने के लिए पर्याप्त संख्याबल हासिल करने में मुश्किल होगी, तो वह हमारे विधायकों को बड़ी रकम का लालच दे सकती है. साथ ही उन्होंने स्वीकार किया कि विद्रोहियों (बागियों) से बातचीत करने में कोई हर्ज नहीं है, आखिरकार वह कांग्रेस के आदमी हैं.
भाजपा में बागियों की समस्या अधिक गंभीर लगती है क्योंकि पार्टी ने 11 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए थे, दो मंत्रियों की सीटें बदली. एक मंत्री को नामांकन से वंचित कर दिया, उनके बेटे को उस निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारा गया था, और अंदरूनी कलह के कारण दो दिग्गजों की सीटों की अदला-बदली की. मुख्य रूप से कांगड़ा और कुल्लू जिलों से भाजपा के बागियों ने नतीजे आने के बाद एकजुट होने के लिए बातचीत शुरू कर दी है.
राज्य के सबसे बड़े जिले कांगड़ा में निर्दलीय चुनाव लड़ने वाले भाजपा के बागी कृपाल सिंह परमार, मनोहर धीमान और संजय पराशर की एक बैठक हाल ही में सभी समान विचारधारा वाले बागियों को एक साथ लाने की रणनीति बनाने के लिए आयोजित की गई थी. पता चला है कि वह दबाव ग्रुप बनाने के लिए कांग्रेस के बागियों से भी अलग से चर्चा कर रहे हैं. इसके लिए, उन्होंने कांग्रेस के पूर्व विधायक जगजीवन पाल से संपर्क किया, जिन्होंने पार्टी द्वारा टिकट न दिए जाने के बाद निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था.
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से कहा कि बागियों के लिए पार्टी के दरवाजे खुले हैं. भाजपा के संभावित बागियों में निवर्तमान विधायक होशियार सिंह शामिल हैं, जो देहरा से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में फिर से मैदान में थे. वह चुनावों के लिए भाजपा में शामिल हो गए थे, लेकिन पार्टी ने टिकट के लिए उनके दावे को नजरअंदाज कर दिया. उन्होंने फिर से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा.
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिले मंडी और कुल्लू जिले में, प्रमुख बागियों में सुंदरनगर से छह बार के विधायक रूप सिंह के पुत्र अभिषेक ठाकुर, नाचन से ज्ञान चौहान और बंजार के महेश्वर सिंह के पुत्र हितेश्वर सिंह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़े थे.
कांग्रेस भी अंदरूनी कलह में पीछे नहीं है. टिकट नहीं मिलने से नाराज सात बार के विधायक गंगू राम मुसाफिर ने सिरमौर जिले के पच्छाद इलाके से निर्दलीय चुनाव लड़ा था. राज्य में बागियों के समर्थन से सरकार बनाने की परंपरा 1998 से चली आ रही है जब कांग्रेस के दिग्गज नेता वीरभद्र सिंह ने निर्दलीय विधायक और भाजपा के बागी रमेश धवाला के समर्थन से अल्पमत सरकार बनाई थी. हालांकि, 18 दिनों के बाद धवाला भगवा पार्टी (बीजेपी) में लौट आए और कांग्रेस ने 68 सीटों वाली विधानसभा में अपना बहुमत खो दिया.
इसके बाद, भाजपा ने हिमाचल विकास कांग्रेस (एचवीसी) के साथ चुनाव के बाद गठबंधन सरकार बनाई, जो कांग्रेस के बागी और पूर्व संचार मंत्री सुख राम द्वारा बनाई गई एक संस्था थी. उस चुनाव में एचवीसी पांच सीटें जीतने में सफल रही थी. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस बार भी 1998 के दोहराव की संभावना है. इसलिए दोनों राजनीतिक दल अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन को फिर से हासिल करने के लिए अपने पुराने योद्धाओं पर निर्भर हैं.
हिमाचल प्रदेश में 412 उम्मीदवारों में से 24 महिलाएं और 388 पुरुष हैं. हिमाचल प्रदेश में मतदान प्रतिशत 75.6 प्रतिशत रहा. 2017 के विधानसभा चुनाव में यह 75.57 था.
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Source : IANS