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Jammu Kashmir Election: जम्मू-कश्मीर चुनावों में इस बार होने जा रहा बड़ा खास, ये 14 उम्मीदवार करेंगे बेड़ा पार

Jamu Kashmir Election: श्रीनगर की हबकदल सीट की बात करें तो यहां 90 हजार से ज्यादा मतदाता हैं, जिनमें 22 हजार से अधिक कश्मीरी पंडितों के वोट हैं. इस सीट पर पहले भी 3 बार कश्मीरी पंडित उम्मीदवार जीत चुके हैं.

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Prashant Jha
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Jamu Kashmir Election

Jamu Kashmir Election: जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव काफी लंबे वक्त के बाद हो रहे हैं, लेकिन इस बार के चुनावों में कई बड़े बदलाव देखने को मिल रहे हैं. इनमें सबसे बड़ा बदलाव यह है कि इस बार होने वाले जम्मू-कश्मीर चुनावों में 14 कश्मीरी पंडित प्रत्याशी चुनावी मैदान में हिस्सा ले रहे हैं. खास बात यह है कि इनमें से सबसे ज्यादा, 6 कश्मीरी पंडित श्रीनगर की हबकदल सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. हबकदल सीट पर कश्मीरी पंडितों की अच्छी खासी तादाद है, जो जम्मू और देश के अन्य हिस्सों से आकर चुनाव में वोट डालते हैं.

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श्रीनगर की हबकदल सीट की बात करें तो यहां 90 हजार से ज्यादा मतदाता हैं, जिनमें 22 हजार से अधिक कश्मीरी पंडितों के वोट हैं. इस सीट पर पहले भी 3 बार कश्मीरी पंडित उम्मीदवार जीत चुके हैं. हालांकि, 2002 में आतंकवाद के चलते इस सीट पर 20 प्रतिशत से ज्यादा वोटिंग नहीं हो पाई थी, जिसके चलते यहां केवल नेशनल कॉन्फ्रेंस का उम्मीदवार ही जीतने में कामयाब रहा. इस बार लोकसभा चुनावों में इस क्षेत्र से 13 हजार से ज्यादा वोट डाले गए थे. ऐसे में इस बार विधानसभा चुनावों में वोट प्रतिशत बढ़ने की उम्मीद है और माना जा रहा है कि कश्मीरी पंडित इस सीट पर फिर से जीत हासिल कर सकते हैं.

10 सालों बाद जम्मू-कश्मीर में हो रहा चुनाव

हबकदल की जनता की बात करें तो उनके अनुसार इस चुनाव में बेरोज़गारी से लेकर महंगाई जैसे बड़े मुद्दे हैं. लोगों का कहना है कि पिछले 10 साल से वे भी चुनाव का इंतजार कर रहे हैं ताकि उनकी समस्याओं का समाधान हो सके. कश्मीरी पंडित उम्मीदवारों के मामले में हबकदल के लोगों का कहना है कि वे भी चुनाव में बाज़ी मार सकते हैं. लोगों का यह भी कहना है कि कश्मीरी पंडित उनके भाई हैं, और वे भी चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित वापस कश्मीर आ जाएं.

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अलगाववाद पर लगाम के बाद मंदिरों का पुनर्निर्माण शुरू

हबकदल की सीट के साथ-साथ कश्मीर में मंदिरों की बात करना भी जरूरी है. बदलते कश्मीर के साथ अब आतंकवाद के चलते बर्बाद हुए या जर्जर हुए मंदिरों का भी जीर्णोद्धार किया जा रहा है. कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववाद पर लगी लगाम के बाद आई स्थिरता से मंदिरों के पुनर्निर्माण और मरम्मत का काम तेजी से शुरू हो गया है. मंदिर ट्रस्ट और सरकार की मदद से कश्मीर के कई मंदिरों में फिर से घंटियों की आवाज सुनाई देने लगी है. बीजेपी ने तो अपने घोषणा पत्र में भी 1000 मंदिरों के पुनर्निर्माण का वादा किया है, जिससे धार्मिक धरोहर को पुनर्जीवित करने की कोशिश की जा रही है.

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