जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने का प्रस्ताव लोकसभा में पास हो चुका है. लेकिन इसे राज्यसभा में पास करावाना सरकार के लिए आसान नहीं होने वाला. दरअसल आज केंद्रीय गृह मत्री उपरी सदन में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने को लेकर प्रस्ताव पेश करने वाले हैं. लेकिन राज्यसभा में एनडीए के पास बहुमत का आंकड़ा न होने के कारण मोदी सरकार को मुश्किल हो सकती है.
आंकड़ों पर बात करें तो राज्ससभा के 245 सांसदों में 104 एनडीए के हैं. जबकि बहुमत के लिए 123 सांसदों की जरूरत होती है. वहीं कांग्रेस के पास 48, टीएमसी के पास 13, बीएसपी के पास 4 एसपी के पास 13 और एनसीपी के पास 4 सांसद हैं. ऐसे में राज्यसभा में इस बिल को पास कराने के लिए मोदी सरकार को दूसरी पार्टियों से मदद लेनी पड़ सकती है. बता दें, ऐसा पहले भी हो चुका है कि मोदी सरकार ने लोकसभा में तो किसी प्रस्ताव को पेश करा लिया लेकिन राज्यसभा में रह गई. तीन तलाक इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.
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बता दें, लोकसभा ने 3 जुलाई 2019 से आगे 6 महीने के लिए जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के वैधानिक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. अमित शाह ने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा, पहली बार जनता महसूस कर रही है कि जम्मू और लद्दाख भी राज्य का हिस्सा है. सबको अधिकार देने का काम मोदी सरकार ने किया है. उन्होंने कहा कि हमारे लिए सीमा पर रहने वाले लोगों की जान कीमती है और इसलिए सीमा पर बंकर बनाने का फैसला हुआ है. शाह ने कहा कि कश्मीर में लोकतंत्र बहाली बीजेपी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है. आतंकवाद के खात्मे की कार्रवाई भी की जा रही है. उन्होंने सदन से अपील करते हुए कहा कि जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव का समर्थन करें.
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नरेंद्र मोदी की पहली कैबिनेट की बैठक में जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई थी. जम्मू-कश्मीर में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था जिसके बाद पीडीपी और बीजेपी ने गठबंधन की सरकार बनाई थी, लेकिन मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद एक बार फिर वहां गतिरोध पैदा हो गया था.