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जम्मू-कश्मीर में 10 साल बाद हो रहे हैं विधानसभा चुनाव, ये मुद्दे होंगे अहम

जम्मू-कश्मीर में चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले इस बात पर चर्चा तेज है कि पार्टियां किन मुद्दों पर एक-दूसरे के खिलाफ राजनीतिक तौर पर आमने-सामने होंगी.

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Ritu Sharma
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Jammu Kashmir Election

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Jammu Kashmir Election: जम्मू-कश्मीर में 10 साल के लंबे अंतराल के बाद विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. यह चुनाव ऐतिहासिक हैं क्योंकि जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने और अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद यह पहला चुनाव है. इस चुनाव में कई बड़े और जटिल मुद्दे सामने होंगे, जिन पर राजनीतिक दलों के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलेगा.

परिसीमन के बाद बदले समीकरण

आपको बता दें कि इस बार का चुनाव परिसीमन के बाद हो रहा है, जिसने चुनावी समीकरणों को पूरी तरह से बदल दिया है. परिसीमन के बाद जम्मू क्षेत्र में 6 सीटों का इजाफा हुआ है, जिससे कुल सीटों की संख्या 43 हो गई है, जो पहले 37 थी. वहीं, कश्मीर क्षेत्र में अब 47 सीटें हैं, जो पहले 46 थीं. इस पुनर्व्यवस्था ने दोनों क्षेत्रों में राजनीतिक दलों की रणनीतियों को नया रूप दिया है.

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चुनावी तारीखें और चरण

वहीं चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव को तीन चरणों में आयोजित करने का निर्णय लिया है. पहला चरण 18 सितंबर को, दूसरा चरण 25 सितंबर को और तीसरा व अंतिम चरण 1 अक्टूबर को होगा. नतीजों की घोषणा 4 अक्टूबर को की जाएगी. यह चुनाव केवल राजनीतिक ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण होंगे क्योंकि 2019 में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पहली बार लोकतांत्रिक प्रक्रिया यहां फिर से बहाल हो रही है.

चुनाव के प्रमुख मुद्दे

इसके अलावा आपको बता दें कि इस चुनाव में प्रमुख रूप से अनुच्छेद 370, पूर्ण राज्य का दर्जा, आतंकी घटनाओं में बढ़ोतरी और सुरक्षा का मुद्दा हावी रहने की संभावना है. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी पार्टियों ने पहले ही पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करने की मांग उठाई है. उमर अब्दुल्ला ने यहां तक कहा है कि यदि जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया गया, तो वे चुनाव नहीं लड़ेंगे. साथ ही, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और हाल के समय में जम्मू-कश्मीर में बढ़ी हुई आतंकी घटनाएं भी चुनाव में प्रमुख मुद्दे बने रहेंगे. वहीं 2019 में लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग किया गया था, जिसे वापस जोड़ने की मांग भी जोर पकड़ सकती है.

नए राजनीतिक दलों की भूमिका

इस बार चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की नई पार्टी भी मैदान में उतर रही है, जो चुनावी समीकरणों में नया मोड़ ला सकती है. आजाद की पार्टी किस हद तक वोटरों को प्रभावित करेगी, यह देखना दिलचस्प होगा.

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