जम्मू-कश्मीर में पिछले कुछ दिनों से आतंकी हमले तेज हुए हैं, लेकिन आतंकियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के बड़े ऑपरेशन जारी हैं. इस लड़ाई में विलेज डिफेंस गार्ड (VDG) ने हमेशा से ही सुरक्षा बलों के मजबूत सहयोगी के रूप में काम किया है. हालांकि, अब आतंकी गांव के इन रक्षकों को निशाना बनाने की कोशिश कर रहे हैं. इस खतरे को भांपते हुए VDGs भी सतर्क हो गए हैं और उन्होंने अपने क्षेत्रों में निगरानी बढ़ा दी है. इसी सतर्कता को देखने के लिए News Nation की टीम अखनूर के एक गांव पहुंची, जहां हथियारों से लैस VDG अपने गांव की सुरक्षा में तैनात थे और गांव के चारों ओर आने-जाने वालों पर कड़ी नजर रख रहे थे. यह वही इलाका है जहां कभी आतंकियों की बड़ी हलचल देखी जाती थी, और घुसपैठ के बाद आतंकी इसी रास्ते से कश्मीर घाटी पहुंचते थे. लेकिन सुरक्षा बलों की कार्रवाई और VDGs की मुस्तैदी से इस इलाके से आतंकवाद का खात्मा हो चुका है. इस क्षेत्र के VDGs ने इसी इलाके में कई आतंकियों को न केवल मारा, बल्कि कुछ को पकड़ने में भी कामयाब रहे. हाल में किश्तवाड़ में दो VDGs की आतंकियों द्वारा हत्या के बाद अब VDGs और भी सतर्क हो गए हैं और किसी भी खतरे का सामना करने के लिए तैयार हैं.
VDGs को हथियारों को संभालने और चलाने की ट्रेनिंग दी गई
जानकारी के अनुसार इस समय जम्मू-कश्मीर में करीब 30,000 VDGs हैं. अलग-अलग जिलों के हर गांव में 5 से 7 VDGs का समूह अपनी सुरक्षा जिम्मेदारी निभा रहा है. ये VDGs गांवों में शादी-विवाह और अन्य कार्यक्रमों के दौरान भी लोगों को सुरक्षा मुहैया कराते हैं. करीब एक साल पहले राजौरी के डांगरी में हुए आतंकी हमले के बाद सरकार ने VDGs को ऑटोमेटिक हथियार देने का निर्णय लिया था, जिसके बाद अब अधिकांश VDGs ऑटोमेटिक गन से लैस हैं. गन देने से पहले सेना और पुलिस ने VDGs को हथियारों को संभालने और चलाने की विशेष प्रशिक्षण भी दी है. इससे पहले VDGs के पास 3 नॉट 3 राइफल होती थीं, जिनकी मदद से उन्होंने कई आतंकियों को मार गिराया था, और अब नई गन मिलने से VDGs पहले से अधिक मजबूत और आत्मविश्वास से भरे हुए हैं.
अगर बात करें VDGs के शौर्य की तो कुछ महीने पहले गूंदा-ख्वास इलाके में VDG के सदस्य पुरषोत्तम कुमार ने अपनी 3 नॉट 3 राइफल से एक आतंकी को मारने में सफलता हासिल की थी, जिसके बाद उन्हें देश की राष्ट्रपति द्वारा शौर्य चक्र से सम्मानित किया गया. इससे पहले डांगरी में भी आतंकी हमले के दौरान VDG की फायरिंग से कई लोगों की जान बची थी. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर के VDGs सुरक्षा बलों द्वारा चलाए जा रहे ऑपरेशनों में भी आतंकियों को घेरने का लगातार कार्य कर रहे हैं, जिससे उनके योगदान को और भी सराहा जा रहा है. यही वजह है कि सरकार ने अब हर गांव में VDGs को मासिक 4,000 रुपये का मानदेय देना भी शुरू कर दिया है, ताकि वे इस काम को और अधिक जिम्मेदारी और उत्साह से निभा सकें.
कौन है विलेज डिफेंस गार्ड
विलेज डिफेंस गार्ड्स (VDG) जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा के दृष्टिकोण से एक अहम समूह है, जिसकी स्थापना 1990 के दशक में तब की गई थी जब राज्य में आतंकवाद चरम पर था. ग्रामीण क्षेत्रों को आतंकियों के हमलों से बचाने के लिए स्थानीय निवासियों की मदद से इस समूह का गठन हुआ, जिसमें उन्हें हथियार प्रदान किए गए और सुरक्षा बलों द्वारा आतंकी खतरों का सामना करने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिया गया. VDGs का मुख्य उद्देश्य अपने गांवों और आसपास के क्षेत्रों में आतंकी गतिविधियों पर नजर रखना और जरूरत पड़ने पर आतंकियों से मुकाबला करना है. ये गार्ड्स गांव की पहली सुरक्षा पंक्ति के रूप में काम करते हैं, जिससे आतंकियों के हमले के समय सुरक्षाबलों को वहां तक पहुंचने का समय मिल जाता है. हाल के वर्षों में आतंकी गतिविधियों के बढ़ते खतरे को देखते हुए इनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो गई है, और सरकार ने उन्हें ऑटोमेटिक हथियार भी मुहैया कराए हैं. सेना और पुलिस द्वारा इन्हें हथियार चलाने की विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है ताकि ये और भी प्रभावी ढंग से आतंकियों का सामना कर सकें. VDGs की मौजूदगी से न केवल स्थानीय नागरिकों को सुरक्षा का एहसास होता है, बल्कि आतंकियों के हौसले भी कमजोर होते हैं. राजौरी के डांगरी जैसे क्षेत्रों में VDGs ने आतंकियों को नाकाम करते हुए अपने गांवों को बड़े नुकसान से बचाने में अहम भूमिका निभाई है.