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Bihar News: जेडीयू की सरकार से नई मांग, मैथिली को मिले शास्त्रीय भाषा का दर्जा!

जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा ने कहा कि मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया जाना आवश्यक है, वे इस मांग को लेकर जल्द ही केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात करेंगे.

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Garima Sharma
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Bihar News: जेडीयू की सरकार से नई मांग, मैथिली को मिले शास्त्रीय भाषा का दर्जा!

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जेडीयू के कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा ने हाल ही में मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की मांग को एक नई दिशा दी है. उनका कहना है कि इस मामले में वे जल्द ही केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से मुलाकात करेंगे. यह मांग पिछले कुछ सालों से उठती रही है, और संजय झा का प्रयास इसे एक ठोस आधार प्रदान कर सकता है.

मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा

संजय झा ने बताया कि मैथिली भाषा लगभग 1300 साल पुरानी है और इसके साहित्य का समय-समय पर विकास होता रहा है. बिहार और केंद्र की एनडीए सरकारों ने मैथिली के संरक्षण और संवर्धन के लिए कई इम्पॉटेंट कदम उठाए हैं. नीतीश कुमार के प्रयासों के तहत, अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में मैथिली को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था.

लंबे संघर्ष का परिणाम

संजय झा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर अपनी पोस्ट में बताया कि वे 2018 से इस दिशा में काम कर रहे हैं. उस समय केंद्र सरकार ने मैथिली के विद्वानों की एक विशेषज्ञ समिति गठित की थी. हालांकि, पिछले 6 सालों में इस समिति की कुछ सिफारिशों पर काम हुआ, लेकिन अभी तक मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है. 

भाषाई विविधता का इम्पॉटेंट

मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने से न केवल इसका सांस्कृतिक संरक्षण होगा, बल्कि यह शिक्षा और मीडिया के क्षेत्र में रोजगार के अवसर भी बढ़ाएगा. संजय झा का यह विश्वास है कि केंद्र सरकार इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाएगी.

बीजेपी विधायक की मांग

इस बीच, दरभंगा के केवटी से बीजेपी विधायक मुरारी मोहन झा ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मैथिली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने की मांग की है. उन्होंने यह भी कहा कि मैथिली न केवल भारत में, बल्कि नेपाल के कई हिस्सों में भी बोली जाती है. इस सुमधुर भाषा के लिए शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है.

जेडीयू की नई पहल

मैथिली भाषा का शास्त्रीय दर्जा प्राप्त करना न केवल इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को मान्यता देगा, बल्कि इसे नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने में भी मदद करेगा. यह मांग बिहार के लोगों के लिए एक इम्पॉटेंट मुद्दा बन गया है, और इस दिशा में उठाए गए कदम आने वाले दिनों में इस भाषा के भविष्य को उजागर करेंगे. 

 

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