देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आत्मनिर्भर भारत का सपना है. प्रधानमंत्री के इसी आत्मनिर्भर भारत के सपनों को इन दिनों चतरा के टंडवा प्रखंड क्षेत्र के सराढू गांव निवासी विजय सिंह पूरा कर रहे हैं. विजय सिंह खुद ग्रेजुएट होने के साथ माइनिंग सरदार भी हैं, लेकिन वे नौकरी करने के बजाए खेती बारी को अपने जीवन में प्राथमिकता देते हैं. इसी का परिणाम है कि आज अपने बगीचे में आम का फसल लगाकर ना सिर्फ खुद आत्मनिर्भर बन रहे हैं बल्कि आज के उन युवाओं को प्रेरणा देने का प्रयास भी कर रहे हैं जो युवा बेरोजगारी का रोना रोते हैं.
आम को बेचकर लाखों रुपए कमाते हैं सालाना
जब दिल में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कठिन राह भी आसान हो जाती है. इसे सच साबित कर दिखाया है टंडवा के सराढू गांव के एक सफल किसान विजय कुमार सिंह ने विजय सिंह अपनी मेहनत और लग्न के बदौलत अपने बगीचे में लगे आम को बेचकर लाखों रुपए सालाना कमाते हैं. इतना ही नहीं अपने साथ-साथ विजय ने गांव के करीब 6 लोगों को भी रोजगार से जोड़ रखा है. जिससे न सिर्फ विजय का घर परिवार सुख शांति और खुशहाली में है बल्कि उनके बगीचे में काम कर रहे अन्य लोगों का परिवार भी खुशहाल है.
4 सालों की कड़ी मेहनत के बाद पेड़ों में फल आना हुआ शुरू
स्नातक और माइनिंग सरदार की परीक्षा पास कर खेतीबारी को अपने जीवन का आधार बनाने वाले विजय सिंह अपने बगीचे में दर्जनों आम की प्रजातियां लगा रखे हैं. उनके बगीचे में दशहरि, दूधिया, गुलाबखस, रामकेला, आम्रपाली, केशर, बम्बईया व जर्दालु सहित कई अन्य प्रजाति के आम हैं. विजय सिंह बताते हैं कि उन्होंने वर्ष 2012 में अपने खाली पड़ी जमीन पर 7 एकड़ क्षेत्रफल में करीब 400 की संख्या में आम का पेड़ लगाया था. जिसमें करीब 4 सालों की कड़ी मेहनत के बाद पेड़ों में फल आना शुरू हो गया. उन्होंने बताया कि शुरुआती दौर में उनकी कमाई एक से डेढ़ लाख रूपये ही हुई थी, लेकिन आज उन्हीं पेड़ों से निकले आम को बेचकर 5-6 लाख रूपये की सलाना कमाई कर लेते हैं.
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आज का दौर खुद आत्मनिर्भर बनाने का है
विजय ने बताया कि वे तीन भाई हैं जिनमे एक भाई जापान के मल्टीनेशनल कंपनी में सीईओ है. जबकि एक भाई दिल्ली में चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं, लेकिन विजय खुद माइनिंग सरदार का कोर्स करने के बावजूद भी खेती बारी करते हैं. विजय कहते हैं कि आज का दौर खुद आत्मनिर्भर बनाने का है ना कि किसी के कब्जे में रहकर काम करने का उनका कहना है कि आज के युवा बेरोजगारी का रोना रोने के बजाय खुद आत्मनिर्भर बनने की ओर काम करें तो चंद सालों में ही सफलता मिल जाएगी. विजय के बगीचे में लगे हुए आम को व्यापारी खुद आकर ₹30 प्रति किलो तोड़ कर ले जाते हैं. विजय के आम की खेती से आत्मनिर्भर और सफल बनने की चर्चा पूरे क्षेत्र में है.
बहरहाल विजय सिंह अपनी कड़ी मेहनत और लगन के कारण आज खुद आत्मनिर्भर ही नहीं बने हैं बल्कि उन युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत भी बन चुके हैं जो युवा बेरोजगारी का रोना रोते हैं. उन युवाओं को विजय सिंह से आत्मनिर्भरता की सीख लेनी चाहिए कि बेरोजगारी सरकार की योजनाओं से नहीं बल्कि खुद के प्रयासों और शुरुआत से दूर होगी.
रिपोर्ट : विकास
- आम को बेचकर लाखों रुपए कमाते हैं सालाना
- 4 सालों की कड़ी मेहनत के बाद पेड़ों में फल आना हुआ शुरू
- आज का दौर खुद आत्मनिर्भर बनाने का है
Source : News State Bihar Jharkhand