झारखंड के मुख्यमंत्री और जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन सियासत की पिच पर कई चुनौतियों के बीच पिछले चार महीनों से फ्रंट फुट पर बैटिंग कर रहे हैं. केंद्रीय जांच एजेंसियों की कार्रवाई, विपक्ष के तेज हमले, राज्यपाल से टकराव, अदालतों के चक्कर के बीच भी वह अपने पॉलिटिकल एजेंडों के अनुरूप ताबड़तोड़ अहम फैसले ले रहे हैं. उनके बॉडी लैंग्वेज से लेकर भाषणों तक में आक्रामक अंदाज से साफ है कि सियासी तौर पर उन्होंने विपक्ष के ऊपर स्कोरिंग पोजीशन बरकरार रखी है.
हेमंत सोरेन की सरकार ने शुक्रवार को झारखंड विधानसभा के विशेष सत्र में जब आरक्षण, स्थानीयता और नौकरी से जुड़े दो विधेयक पारित कराए, तो प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा न तो कायदे से इनका विरोध कर पाई और न ही खुलकर समर्थन में खड़े होने का साहस दिखा पाई. इन विधेयकों का विरोध करने से ओबीसी, एससी-एसटी और स्थानीय-मूलवासी समुदाय के बीच प्रतिकूल संदेश जाने का खतरा था. वह समर्थन में भी खुलकर इसलिए नहीं आ सकी कि इनका श्रेय सीधे-सीधे हेमंत सोरेन और उनकी सरकार को जा रहा है. इसी धर्मसंकट की वजह से भाजपा विशेष सत्र की कार्यवाही के दौरान बाउंड्री लाइन के बाहर खड़ी दिखी. दूसरी तरफ हेमंत सोरेन भाजपा और केंद्रीय जांच एजेंसियों से लेकर प्रधानमंत्री तक पर आक्रामक तेवर में निशाना साधते रहे.
हालांकि विधानसभा से पारित दोनों विधेयकों में किए गए प्रावधान फिलहाल जमीन पर नहीं उतर पाएंगे, क्योंकि हेमंत सरकार ने इन्हें संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजने का फैसला किया है. नौवीं अनुसूची में शामिल कानून को सामान्यत: अदालतों में चुनौती नहीं दी जा सकती. यानी बहुत चालाकी से हेमंत सरकार ने गेंद केंद्र की भाजपा सरकार के पाले में डाल दी है. केंद्र सरकार में ये मामले लटके तो जेएमएम और उसकी सहयोगी पार्टियों के लिए जनता के बीच यह नैरेटिव सेट करना आसान होगा कि भाजपा ओबीसी, एससी-एसटी और झारखंड के स्थानीय समुदाय को उनके हक से वंचित रखना चाहती है. अगर केंद्र राज्य विधानसभा से पारित प्रस्ताव को हरी झंडी दे दे, तो भी हेमंत सरकार इसे अपनी जीत के तौर पर प्रचारित करेगी.
इसके पहले बीते तीन-चार महीनों में हेमंत सोरेन सरकार ने सरकारी कर्मियों के लिए पुरानी पेंशन योजना की बहाली, पुलिसकर्मियों के लिए एक महीने के अतिरिक्त वेतन, नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज को अधिसूचना को विस्तार न देने की तीन दशक पुरानी मांग पूरी करने सहित कई लोकलुभावन फैसले लेकर सियासी तौर पर उत्साहजनक बढ़त हासिल कर ली है.
इन सबके बावजूद हेमंत सोरेन को इस बात का भरपूर अंदाज है कि संवैधानिक और कानूनी मोचरें पर उनके सामने आगे कई मुश्किलें और खतरे हैं. सबसे पहला मामला तो यह कि ऑफिस ऑफ प्रॉफिट केस में उनकी विधानसभा सदस्यता पर अब भी खतरा मंडरा रहा है. चुनाव आयोग ने इस केस में अपनी अनुशंसा राज्यपाल को बीते 25 अगस्त को ही भेज दी है. यह खबर पब्लिक डोमेन में उसी वक्त से चल रही है कि चुनाव आयोग ने उनकी विधायकी रद्द करने की अनुशंसा की है. इस अनुशंसा पर राज्यपाल का फैसला आने से सोरेन को सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ सकती है. हालांकि राज्यपाल और आयोग ने आधिकारिक तौर पर इसपर स्थिति अब तक साफ नहीं की है, लेकिन इसी आशंका के चलते सोरेन सहित सत्ताधारी गठबंधन के विधायकों को कई दिनों तक रायपुर में रिजॉर्ट प्रवास करना पड़ा था. इतना ही नहीं, उन्हें बीते 5 सितंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर अपनी सरकार के पक्ष में विश्वास मत का प्रस्ताव पारित कराने की कवायद करनी पड़ी थी.
हाल में सोरेन को अपने खिलाफ दायर पीआईएल को निरस्त कराने के लिए हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक कई चक्कर लगाने पड़े. राहत की बात यह रही कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके पक्ष में आया. पिता शिबू सोरेन की संपत्ति की जांच की मांग पर लोकपाल की कार्रवाई को रुकवाने के लिए भी उन्हें अदालतों के चक्कर लगाने पड़े हैं. इस मामले में भी उन्हें फिलहाल दिल्ली हाई कोर्ट से अंतरिम राहत मिली हुई है.
सोरेन के सामने सबसे बड़ी मुश्किल अवैध खनन के जरिए मनी लॉंड्रिंग के मामले में ईडी के समन की वजह से खड़ी हुई है. ईडी ने दूसरी बार समन जारी कर उन्हें 17 नवंबर को पूछताछ के लिए बुलाया है. सोरेन को आशंका है कि इस मामले में ईडी की कार्रवाई आगे बढ़ी तो उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है. यही वजह है कि ईडी ने जब पहली बार समन जारी कर उन्हें 3 नवंबर को पूछताछ के लिए बुलाया था, तब उन्होंने एक तरफ अपनी व्यस्तता का हवाला देकर ईडी से तीन हफ्ते का समय मांगा थी तो दूसरी तरफ अपने आवास के बाहर झामुमो के हजारों कार्यकर्ताओं की भीड़ को संबोधित करते हुए ईडी को सीधे तौर पर गिरफ्तार करने की चुनौती दी थी. अब शुक्रवार को विधानसभा के विशेष सत्र में भी उन्होंने ईडी और केंद्रीय एजेंसियों के कदमों को भाजपा के इशारे पर की जा रही कार्रवाई बताया. उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर उन्हें जेल जाना पड़ा तो वहां रहकर भी झारखंड से भाजपा का सूपड़ा साफ करेंगे. उन्होंने प्रधानमंत्री तक को निशाने पर लेते हुए कहा कि वे फोन पर धमकियां देने लगे हैं.
कुल मिलाकर, आने वाले दिनों की संभावित मुश्किलों के एहसास के बाद भी सोरेन फ्रंट फुट पर खेल रहे हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्हें पता है कि आखिरी जंग सियासत और चुनाव के मैदान पर ही होनी है. यहां जो जीता, सिकंदर वही कहलाएगा.
Source : IANS