सरायकेला जिले की माटी, यहां की संस्कृति और यहां का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. प्राचीन काल की ओर देखें तो यहां महाभारत काल का विस्तृत उल्लेख मिलता है. जिले के राजनगर प्रखंड से 15 किमी दूरी पर भीमखंदा स्थित इन्हीं प्रमाणों में से एक है. मान्यता है कि मुंडाकाटी गांव के भीमखंदा में पांडव द्रौपदी के साथ एक दिन रुके थे. यहां पत्थरों पर भीम के पैरों के निशान के चलते ही जगह का नाम भीमखंदा पड़ा. भीमखंदा खुद में कई रहस्यों को समेटे हुए है. गांव के बुजुर्ग और स्थानीय लोग इस जगह पर पांडवों के ठहरने के कई पौराणिक साक्ष्य होने का दावा करते हैं.
किवदंतियों की मानें तो खुद धर्मराज युधिष्ठिर ने यहां भगवान शिव की पूजा अर्चना की थी. यहां पांडवों के आने का प्रमाण एक पेड़ भी देता है. जिसे अर्जुन वृक्ष के नाम से जाना जाता है. स्थानीयों की मानें तो इस पेड़ में प्राचीन काल से आजतक कोई बदलाव नहीं हुआ है. पेड़ में एक डाली से पांच टहनियां निकली हैं, जिन्हें पांडवों का प्रतीक माना जाता है. यहां एक जामुन का पेड़ भी है. जहां एक शिवलिंग स्थापित है. कहा जाता है कि युधिष्ठिर ने बांगबोगा जिसे अब भीमखंदा के नाम से जाना जाता है. उस नदी में स्नान करने के बाद इसी शिवलिंग की पूजा की थी.
भीमखंदा भले पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा हो, लेकिन आज तक यहां किसी भव्य मंदिर का निर्माण नहीं हो पाया. लोगों का कहना है कि यहां कभी भी मंदिर का निर्माण नहीं किया जा सका. ये भी अपने आप में एक रहस्य है. कई बार स्थानीय लोगों के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों ने भी मंदिर बनाने की कोशिश की, लेकिन हर बार कोई ना कोई समस्या आती और मंदिर निर्माण रुक जाता. आखिरी बार 1950 में मंदिर बनाने की कोशिश हुई थी.
यहां द्रौपदी के खाने बनाने के भी साक्ष्य मिलते हैं. भीमखंदा में पत्थरों के बीच बना चूल्हा बेहद खास और पूजनीय है क्योंकि मान्यता है कि इसी चूल्हे पर द्रौपदी ने खाना बनाया था. यहां के पत्थरों पर किसी लिपि से कई पंक्तियां अंकित हैं. जिसे आज तक पढ़ा नहीं जा सका है. हालांकि रख-रखाव के अभाव में अब पत्थरों के निशान मिटने लगे हैं. हैरत की बात है कि हजारों साल का इतिहास अपने में समेटे भीमखंदा आज भी अनदेखी का शिकार है. जरूरत है कि महाभारत काल के गौरवगाथा की निशानी रखने वाले इस जगह को किसी धरोहर की तरह समेटा जाए.
रिपोर्ट : विरेन्द्र मंडल
Source : News State Bihar Jharkhand