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पागल था, एक कंबल में काट दी पूस की अंतिम रात, शहर में कहीं नहीं जल रहा था अलाव!

मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'पूस की रात' शहर में कई जगह चरितार्थ होती दिखी. 1921 में लिखी गई कहानी का पात्र हल्कू सड़कों पर कई जगह नजर आया.

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Vineeta Kumari
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पूस की अंतिम रात( Photo Credit : News State Bihar Jharkhand)

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मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'पूस की रात' शहर में कई जगह चरितार्थ होती दिखी. 1921 में लिखी गई कहानी का पात्र हल्कू सड़कों पर कई जगह नजर आया. शहर में कहीं प्रशासनिक स्तर पर अलाव जलता हुआ नहीं मिला. रात लगभग 11 बजे मुंशी प्रेमचंद की कहानी पूस की रात का मर्म समझने न्यूज़ स्टेट बिहार झारखंड की टीम ने पूरे शहर का भ्रमण किया. सर्द हवाओं में हाड़ कंपा देने वाली ठंड के बीच शहर की सभी सड़कें और चौक चौराहे वीरान थे. बिजली ऑफिस के सामने कुछ मज़दूर कम कपड़ों में दौड़-दौड़ कर ट्रक से सरिया उतारते नजर आए. गांधी चौक पर नगर थाना के सामने एक पागल खुद को एक कंबल में समेटने की कोशिश करता नजर आया. 

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सर्द हवाओं में काट दी पूस की रात

थरथराते हुए अपने चेहरे को घुटनों के बीच कभी घुसा लेता, कभी हाथों से कंबल को शरीर के इर्दगिर्द समेटता. पूछने पर चेहरा उठा कर बस टकटकी निगाहों से देखता और खामोशी से फिर चेहरा घुटनों के बीच कर लेता. चेहरा उठाता तो उलझे हुए बालों की लट जैसे चेहरे को ढांप रही होती हैं. वहीं भूसी मोड़ के समीप एक दुकान के सामने एक मुसाफिर सोया पड़ा मिला. एक कंबल उसने ज़मीन पर बिछा रखी थी, जबकि एक पतली सी नायलॉन की चादर में कुकड़ा पड़ा था. जिसमें कभी उसका सिर खुल रहा था तो कभी पैर. बीच-बीच में चल रही सर्द हवाओं के थपेड़ों से उसका पूरा शरीर चादर में कांप उठता था. 

पूरे शहर में नहीं जलता दिखा अलाव

रेलवे स्टेशन के समीप एक बीमार शख्स ठंड की वजह से सड़क पर गिर गया, जिसके बाद उठने की उसकी हिम्मत नहीं हुई. ठंड से बचने के लिए खुद को सड़क पर घिसट कर किसी तरह एक फल की दुकान की आड़ में पहुंचा. पूछने पर उसने बताया कि लकवा का मरीज है. किसी तरह यहां तक पहुंचा है. उसने भी वहां पड़े-पड़े रात काट दी. बस स्टैंड में सन्नाटा था. रेलवे स्टेशन भी सुनसान था. कई मुसाफिर वेटिंग हॉल, टिकट काउंटर, मेन गेट पर ट्रेन के इंतेजार में किसी तरह ठंड से बचने की कोशिश में लगे थे. 

37 हजार पीस कंबल का वितरण, फिर भी ठंड में सोने को मजबूर

बाहर दातुन बेचने वाली आदिम जनजाति महिलाएं बैठी थी. किसी ने वहां एक लकड़ी का बड़ा हिस्सा कहीं से लाकर जला दिया था. सभी आग के इर्दगिर्द सिमटे बैठे थे. वहीं, जब न्यूज़ स्टेट बिहार-झारखंड की टीम ने जिले डीसी रामनिवास यादव से पूछा तो उन्होंने कहा कि अबतक जिले में करीब 37 हजार पीस कंबल का वितरण हो चुका है. बाकी चौक-चौराहें पर भी जिला प्रशासन की कड़ी नजर है, उनको भी सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएगी.

रिपोर्टर- गोविंद ठाकुर

HIGHLIGHTS

  • एक कंबल में काट दी पूस की अंतिम रात
  • शहर में कहीं नहीं जल रहा था अलाव!
  • जिला में 37 हजार कंबल का हो चुका है वितरण
  • न्यूज़ स्टेट बिहार झारखंड की बड़ी पड़ताल

Source : News State Bihar Jharkhand

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