CM सोरेन के होम टाउन में बदहाल आदिवासी समुदाय, दिनभर में कमाते हैं सिर्फ 80 रुपये
सीएम हेमंत सोरेन का साहिबगंज गृह क्षेत्र है. यहां का आदिवासी समुदाय पत्ते के बर्तन और दुबड़ी घास पर पूरी तरह से निर्भर है, लेकिन इस समुदाय की आर्थिक हालात काफी दयनीय है.
सीएम हेमंत सोरेन का साहिबगंज गृह क्षेत्र है. यहां का आदिवासी समुदाय पत्ते के बर्तन और दुबड़ी घास पर पूरी तरह से निर्भर है, लेकिन इस समुदाय की आर्थिक हालात काफी दयनीय है. जबकि प्रदेश में आदिवासियों की सरकार का सीएम सोरेन दम भरते हैं. इसके बावजूद इस समुदाय की हालत में सुधार न होना सरकार की नाकामियों के पोल खोलने के लिए काफी है. पत्तों के बर्तन बनाकर अपना गुजर बसर करने वाले ये लोग आदिवासी समुदाय के हैं. इनके जीवन जीने का मेन साधन पत्ते के बर्तन और दुबड़ी घास है. यहां के ग्रामीणों के मुताबिक उनको सरकारी योजनाओं का अभी तक कोई लाभ नहीं मिल पाया है.
जंगल से सखुआ, बरगद के पत्ते और दुबड़ी घास को तोड़कर एक जगह इकट्ठा करते हैं. इसके बाद इन पत्तों और घासों को रस्सी से बांध लेते हैं. अब इस बांधे हुए पत्तों और घासों को सिर पर लादकर मेन सड़क तक जाते हैं. वहां से ऑटो पकड़कर बरहेट जाते हैं. जहां मुट्ठा बांधकर उसे एक-एक रुपये में बेच देते हैं. इससे उनकी पूरे दिन की कमाई एक से दो सौ रुपये तक हो जाती है, लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में उसका गाड़ी भाड़ा ही करीब 120 रुपये लग जाता है. जिसके बाद उनके पास केवल 80 रुपये ही बच पाते हैं. अब सवाल ये उठता है कि बढ़ती महंगाई में 80 रुपये कमाने वाला आखिर अपने पूरे परिवार का पालन पोषण कैसे करेगा.
वहीं, आदिवासी समुदाय के इस हालत पर जब नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी से पूछा गया तो उन्होंने सीएम हेमंत सोरेन पर तंज कसते हुए कहा कि अगर थोड़े दिन राज्य में और सोरेन सरकार रह गई तो वो इस राज्य के लोगों को जंगल के पत्ते भी नसीब नहीं होने देंगे. सीएम सोरेन के होम टाउन में आदिवासियों का ये हाल कई सवाल तो खड़े करता ही है. आजादी के इतने सालों बाद भी राजमहल की पहाड़ियां इस आदिवासी समुदाय की बदहाली को बयां करता है. कई सरकारें आई और चली गई, लेकिन इनका मुकद्दर नहीं बदला.