कोयला, जिसे काला हीरा कहते हैं और विकास का आधार मानते हैं वो हीरा चतरा के लोगों के लिए अभिशाप बन रहा है. काले हीरे ने व्यापारियों को मुनाफा दिया और सरकार को राजस्व दिया, लेकिन ग्रामीणों के हिस्से में सिर्फ बेबसी, बीमारी और धूल से सनी जिंदगी आई है. खरबों की खानों से हर रोज गाड़ियां भर-भर कर काले हीरे को ले जाया जाता है. सड़कों पर दौड़ती सरपट गाड़ियों से सरकार और निजी कंपनियों की झोली में करोड़ों का खजाना जाता है, लेकिन अगर कुछ छूट जाता है तो वो है धूल-गंदगी और उनमें लिपटी हुई कई ज़िन्दगियां.
हर साल करोड़ों रुपए का मिल रहा मुनाफा
चतरा के औद्योगिक नगरी टंडवा में खनन से जुड़ी 4 से ज्यादा योजनाएं चल रही हैं. जिससे ना सिर्फ सीसीएल को हर साल करोड़ों रुपए का मुनाफा मिल रहा है बल्कि उनका व्यापार भी तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन यहां के स्थानीय लोगों के चेहरे की चमक को काले हीरे की चमक ने फीका कर दिया है. कंपनियां मुनाफा कमा रही हैं और सरकार राजस्व, लेकिन स्थानीय जनता सिर्फ अपनी जिंदगी गवां रही है. वादा तो विकास का था, लेकिन हो विनाश रहा है. विकास तो सिर्फ उद्योगों के हिस्से में है. ग्रामीणों के हिस्से में सिर्फ बेबसी, बीमारी और धूल से सनी जिंदगी आई है.
शुद्ध हवा के लिए भी तरस रहे लगे
टंडवा में कोयला खनन और परिवहन में वातावरण को इतना प्रभावित कर दिया है कि लोग शुद्ध हवा के लिए भी तरसने लगे हैं. हरियाली से भरे पेड़-पौधों धूल के गुबार में सन चुकी हैं. जिन नदियों में कल कल बहता पानी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता था. वो नदियां भी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है. सीसीएल की सबसे बड़ी परियोजनाओं में से एक आम्रपाली कोल परियोजना से मनवाटोंगरी, कुमरांग, शिवपुर और होन्हे समेत दर्जनों गांवों में हालात नर्क से भी बदतर है.
लोग कई तरह की बीमारियों का हो रहे शिकार
गांव से 200 - 250 मीटर की दूरी पर निकलता कोयला भले ही सरकार और उनके नुमाइंदों को खुशी दे रहा हो, लेकिन इन गांवों के लोगों के लिए सिर्फ जहर उगल रहा है. हवा और वातावरण के प्रदूषित होने से लोग तमाम तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. सरकारी डॉक्टरों की रिपोर्ट की माने तो कुल आबादी के करीब 8% लोग टीबी, सांस, कान, और आंख से संबंधित बीमारियों से पीड़ित हैं, लेकिन प्रशासन अभी भी आश्वासन देने में ही लगा है.
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लोगों को दिया गया आश्वासन
ग्रामीणों की इस दुर्दशा के जिम्मेदार जितनी सीसीएल और उनमें कार्यरत कंपनियां है. उतने ही क्षेत्र के जनप्रतिनिधि और जिले के पदाधिकारी भी है. जिन्होंने ग्रामीणों को उनकी हालत पर छोड़ दिया है. जब सवाल किया जाता है तो कार्रवाई का आश्वासन मिल जाता है, लेकिन सवाल तो ये है कि क्या अधिकारियों की नजर इन गांवों पर पहले नहीं पड़ी. क्यों हर बार मीडिया के पहुंचने पर ही हालात दुरुस्त करने का आश्वासन मिलता है.
रिपोर्ट : विकास कुमार
HIGHLIGHTS
- 'काले हीरे' ने छीनी विकास की चमक
- धूल से सनी जिंदगी... कौन जिम्मेदार
- ग्रामीण हो रहे गंभीर बीमारियों का शिकार
- विकास की आड़ में हो रहा विनाश
Source : News State Bihar Jharkhand