22 साल बाद भी विकास से कोसों दूर गुमला के ग्रामीण इलाके, मूलभूत सुविधाएं भी नहीं
झारखंड को अलग राज्य बने हुए 22 साल हो गए हैं. राज्य का निर्माण ही आदिवासियों की हितों की रक्षा को लेकर किया गया था, लेकिन निर्माण के दो दशक बाद भी आदिवासी क्षेत्रों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है.
झारखंड को अलग राज्य बने हुए 22 साल हो गए हैं. राज्य का निर्माण ही आदिवासियों की हितों की रक्षा को लेकर किया गया था, लेकिन निर्माण के दो दशक बाद भी आदिवासी क्षेत्रों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है. कहीं सड़क नहीं तो कहीं पानी की कमी. आदिवासी समुदायों के पास ना तो रोजगार का कोई साधन है और ना ही किसी सरकारी योजनाओं का लाभ. आलम ये है कि आदिवासी इलाकों की तस्वीर 50 या 60 के दशक के भारत की याद दिलाती है. कई सरकारें आई और गई, लेकिन इन इलाकों में विकास नहीं पहुंच पाया. जिस जिले के वीर सपूतों के बलिदान का कर्जदार पूरा देश है आज उसी जिले के ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही है. फिर चाहे वो परमवीर अल्बर्ट एक्का के पैतृक गांव जारी की बात हो या वीर शहीद तेलंगा खड़िया के गांव मुरगू की, ग्रामीणों से के हाल बदहाल हैं.
एक तरफ जारी और मुरगू के ग्रामीण विकास की राह देख रहे हैं तो वहीं दूसरी ओर इस पर सियासी वार-पलटवार थमने का नाम नहीं ले रहा है. गुमला जिले के पूर्व विधायक कमलेश उरांव जहां इसको लेकर प्रदेश सरकार पर निशाना साध रहे हैं और खतियानी जोहार यात्रा पर भी तंज कस रहे हैं. वहीं, बीजेपी सांसद सुदर्शन भगत भी सुर में सुर मिलाते हुए हेमंत सरकार पर स्वार्थ के लिए शासन करने का आरोप लगा रहे हैं. बीजेपी के दिग्गज नेता डॉ अरुण उरांव भी प्रदेश सरकार पर हमलावर होते दिखे.
वहीं, विकास को लेकर जिले के डीसी सुशांत गौरव का कहना है कि ये क्षेत्र काफी बड़ा है. इसलिए हर इलाके में अचानक विकास नहीं पहुंच सकता. डीसी की मानें तो विकास का प्रस्ताव सरकार को भेज दिया गया है पैसा आते ही काम शुरू हो जाएगा. बहरहाल, जिला प्रशासन की ओर से आश्वासन तो दे दिया गया है. देखना ये होगा कि आश्वासन पर सुनवाई कब तक होती है और कब तक ग्रामीण विकास की मुख्यधारा से जुड़ पाते हैं.