खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच द्वारा चाईबासा में धरना प्रदर्शन, मोदी सरकार के खिलाफ फूंका बिगुल

मनरेगा को खत्म करने की मोदी सरकार की साजिश व जिला में लगातार मजदूरों के अधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध आज खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम ने चाईबासा में पुराना उपायुक्त कार्यालय के समक्ष धरना दिया.

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Vineeta Kumari
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चाईबासा में धरना प्रदर्शन( Photo Credit : News State Bihar Jharkhand)

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मनरेगा को खत्म करने की मोदी सरकार की साजिश व जिला में लगातार मजदूरों के अधिकारों के उल्लंघन के विरुद्ध आज खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम ने चाईबासा में पुराना उपायुक्त कार्यालय के समक्ष धरना दिया. जिसमें जिला के अनेक मजदूर व सामाजिक कार्यकर्ता भाग लिए. धरना को जिला मुखिया संघ द्वारा भी समर्थन किया गया और कई प्रतिनिधि भी शामिल हुए. मंच के रामचंद्र माझी ने कहा कि मोदी सरकार मनरेगा को खत्म करने की साजिश के साथ इसे लगातार कमजोर कर रही है. सरकार द्वारा 2023-24 के मनरेगा बजट को पिछले साल की तुलना में 33% कम किया गया है. इस साल कार्यक्रम में ऑनलाइन मोबाइल हाजरी प्रणाली (NMMS) को मजदूरों की उपस्थिति दर्ज करने के लिए तानाशाही तरीके से अनिवार्य कर दिया गया है. 

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आधारित भुगतान प्रणाली को किया अनिवार्य

साथ ही, सरकार ने भुगतान के लिए आधार आधारित भुगतान प्रणाली (ABPS) को अनिवार्य कर दिया है. इन दोनों तकनीकों के कारण बड़े पैमाने पर मज़दूर काम व अपने मजदूरी से वंचित हो रहे हैं. कौशल्या हेम्ब्रम ने बताया कि NMMS के कारण मज़दूरों की परेशानियां और बढ़ गयी है. अब काम ख़त्म होने के बाद भी फोटो के लिए मजदूरों को सुबह और दोपहर कार्यस्थल पर रहना पड़ता है. NMMS में विभिन्न तकनीकि समस्याओं व इन्टरनेट नेटवर्क की अनुपलब्धता के कारण कई बार न हाजरी चढ़ पाती है और ना फोटो. इसके कारण मजदूरों द्वारा किए गए मेहनत का काम पानी हो जाता है और वे अपनी मजदूरी से वंचित हो जाते हैं. 

भोजन के अधिकार अभियान

अस्रिता केराई ने बताया कि NMMS के माध्यम से मज़दूरों द्वारा किए गए काम व उपस्थिति को MIS में कम करना या जीरो कर देना आम बात हो गयी है. इससे मजदूर अपने मेहनत की मजदूरी से ही वंचित हो जाते हैं. भोजन के अधिकार अभियान से जुड़े बलराम ने कहा कि NMMS इस सोच पर बनी है कि मजदूर व ग्राम सभा समेत सभी स्थानीय लोग चोर हैं और केवल केंद्र सरकार ही ईमानदार हैं. यह ग्राम सभा, पांचवी अनुसूचि और लोकतंत्र का अपमान है. मंच के मानकी तुबिड ने कहा कि NMMS को सरकारी पदाधिकारियों और मंत्रियों के हाजरी और वेतन के लिए जोड़ देना चाहिए. तब उन्हें मजदूरों के मुद्दे समझ में आएगा.

1 करोड़ मजदूरों में केवल आधे ही ABPS लिंक्ड हैं

संदीप प्रधान ने कहा कि जो मजदूर ABPS से लिंक्ड नहीं हैं. उन्हें तो अब स्थानीय प्रशासन द्वारा काम भी नहीं दिया जा रहा है. अगर मस्टर रोल में कुल मजदूरों में केवल एक भी ABPS लिंक्ड नहीं है, तो सभी मजदूरों का भुगतान रोक दिया जा रहा है. जिला के लगभग 1 करोड़ मजदूरों में केवल आधे ही ABPS लिंक्ड हैं. मुखिया संघ के अध्यक्ष हरिन तामसोय ने कहा कि इन तकनीकों के कारण अब पंचायत स्तर पर सब कुछ सही से करने के बावजूद भी मजदूर भुगतान से वंचित हो रहे हैं. मनरेगा में अब पूरा केन्द्रीकरण हो गया है.

केंद्र सरकार का मजदूर विरोधी रवैया जारी

नरेगा वॉच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने कहा कि मनरेगा मजदूरों की ऐसी स्थिति सिर्फ पश्चिमी सिंहभूम तक ही सीमित नहीं है बल्कि पूरे देश में है. झारखंड समेत पूरे देश के मनरेगा मज़दूर पिछले 60 दिनों तक दिल्ली के जंतर-मंतर पर इन मुद्दों पर धरना दिए, लेकिन केंद्र सरकार का मज़दूर विरोधी रवैया जारी है. मंच के सिराज दत्ता ने कहा कि मोदी सरकार एक तरफ अडानी व चंद कॉर्पोरेट घरानों को तरह तरह का फाएदा पहुंचा रही है और दूसरी ओर मनरेगा समेत अन्य सामाजिक व खाद्य सुरक्षा कार्यक्रमों को लगातार कमज़ोर कर रही है.

रोज़गार की तलाश में व्यापक पलायन

मंच के प्रतिनिधियों ने कहा कि दुःख की बात है कि अभी तक राज्य सरकार ने केंद्र सरकार के इन मज़दूर विरोधी नीतियों का विरोध नहीं किया है और मनरेगा को बचाने की लड़ाई में मज़दूरों के साथ खड़ी नहीं दिख रही है. 2019 चुनाव के पहले वर्तमान सत्तारूढ़ी दलें बढ़चढ़ कर मनरेगा मज़दूरों के अधिकारों की बात करते थे. धरना में आए लोगों ने मनरेगा मज़दूरों के प्रति राज्य सरकार व स्थानीय प्रशासन के उदासीनता के विषय में बात रखी. 

ज़िला से हर साल की तरह इस साल भी रोज़गार की तलाश में व्यापक पलायन हो रहा है. बनमाली बारी ने कहा कि अभी मज़दूरों को काम की ज़रूरत है लेकिन ज़िला के अनेक गावों में कई महीनों से एक भी कच्ची योजना का कार्यान्वयन नहीं किया गया है. काम की मांग करने के बाद भी समय पर सभी मज़दूरों को काम नहीं दिया जाता है. बड़े पैमाने पर भुगतान बकाया है. खूंटपानी की मज़दूर रानी जामुदा ने कहा कि उनके 62 दिन काम का भुगतान बकाया है. हाटगम्हरिया के मज़दूर मुदुई सुंडी ने कहा कि एक साल पहले 40 दिन काम किया था. जिसका भुगतान अभी भी बकाया है. 

• ऑनलाइन मोबाइल हाजरी व्यवस्था व आधार आधारित भुगतान प्रणाली तुरंत रद्द किया जाए.
• मनरेगा बजट को बजट बढ़ाने के साथ-साथ मनरेगा मज़दूरी दर को कम-से-कम 600 रु प्रति दिन किया जाए.
• सरकार हर गाँव में मनरेगा अंतर्गत पर्याप्त संख्या में कच्ची योजनाओं का कार्यान्वयन शुरू करे.
• लंबित भुगतान का सर्वेक्षण करवा कर मुआवज़ा सहित मज़दूरी भुगतान दिया जाए.
• ठेकेदारी और भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्यवाई किया जाए एवं दोषी कर्मियों व पदाधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाई सुनिश्चित की जाए. शिकायतों पर कार्यवाई सुनिश्चित की जाए.

HIGHLIGHTS

  • आधारित भुगतान प्रणाली को किया अनिवार्य
  • भोजन के अधिकार अभियान
  • मोदी सरकार के खिलाफ फूंका बिगुल

Source : News State Bihar Jharkhand

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