झारखंड के चक्रधरपुर रेल हादसे में शुरुआती जांच में सामने आया है कि मालगाड़ी और यात्री गाड़ी अलग-अलग ट्रैक पर समांतर ट्रैक पर चल रही थीं. हावड़ा-मुंबई मेल के आगे होने पर इंजन आगे निकल गया. वहीं इसके कोच से मालगाड़ी के डिब्बे टकरा गए. आपको बता दे कि हावड़ा मुंबई मेल का इंजन पटरी से नहीं उतरा है. किसी भी ट्रेन के पटरी से उतरने के बाद लोकपायलट और पायलट की भूमिका क्या होती है, आइए जानने की कोशिश करते हैं.
बताया जाता है कि जब कोई सवारी गाड़ी ट्रैक से उतरती है तो उसके डिब्बे आसपास के ट्रैक पर बिखर जाते हैं. इन परिस्थितियों में उस ट्रेन के लोकोपायलट और गार्ड अगर सुरक्षित है तो उनके जिम्मे बोगियों की सुरक्षा होती है. इस दौरान उन्हें इंजन की हेड लाइट आफ करनी होती है. फ्लैशर लाइट को ऑन करना होता है. यह हल्के पीले रंग की होती है. ये सामने आ रही ट्रेन को संकेत देते हैं ताकि उस ट्रैक पर आ रही ट्रेन इमरजेंसी ब्रेक लगा दें.
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अन्य ट्रैक पर पटाखें लगाने होते हैं
इसके बाद लोको पायलट और असिस्टेंट लोको पायलट में कोई एक दूसरे ट्रैक पर 800 या 1000 मीटर दूर जाकर पटाखे डेटोनेटर लगाएगा. यह साउंड सिग्लन होता है. पटाखे की आवाज का अर्थ है ट्रेन रुकवाना चाह रहा है. लोकोपायलट को तुरंत इमरजेंसी ब्रेक को लगाना होता है. इसके साथ ही लाल सिग्नल दिखाना होता है. इनके पास वॉकीटॉकी भी होती है. इससे संदेश भेजा जाता है.
ओवर लोडिंग बनी वजह
ऐसा कहा जा रहा है कि करीब एक दशक से मालगाड़ी के डिब्बों में ओवर लोडिंग की वजह से ट्रैक कमजोर पड़ रहे हैं. ट्रेनों के पटरी से उतरने की वजह तकनीकी कारण हो सकता है. बताया जा रहा है कि ज्यादा भार के कारण ट्रैक पर लोड बढ़ जाता है. इसकी वजह से ट्रेन ट्रैक से उतर रही हैं.
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