आज झारखंड अपना 22वां स्थापना दिवस मना रहा है. बिहार राज्य से यह 15 नवंबर, 2000 को खुद को अलग कर राज्य के विकास और यहां रहने वाले लोगों को जमीनी लाभ पहुंचाने के दिशा में स्थापित हुआ था. पूरा झारखंड अपने स्थापना को लेकर झूम रहा है, गा रहा है और अपनी मस्ती में है, लेकिन वास्तविक रूप से देखा जाए तो झारखंड में बसने वाले पहाड़ों, वादियों और जंगलों के बीच में रहने वाले आदिम जनजातियों का आज कितना विकास हुआ है. कड़ाके की ठंड के बीच में भी इन आदिम जनजातियों के बदन में बटन लगे हुए पूरे वस्त्र नहीं है, थाली से पौष्टिकता दूर-दूर तक गायब है. लोहरदगा जिला का यह पाखर पहाड़ी क्षेत्र जहां आदिम जनजाति वास करते हैं. आज भी अपनी मूलभूत सुविधाओं के लिए सरकार का इनके द्वार तक आने का इंतजार कर रहे हैं.
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आज भी इन्हें आवासीय, जाति और अन्य कार्यों के लिए लंबी दौड़ लगानी पड़ती है और इन्हें काफी परेशानियों का सामना प्रतिदिन करना पड़ता है. आज भी ये अपने जंगलों पर निर्भर है कि इन्हें दो वक्त की रोटी मिल जाए, इसी प्रयास में इनका पूरा दिन गुजर जाता है. झारखंड आज भले अपने स्थापना दिवस कि अपनी खुशियां मना रहा हो, लेकिन लोहरदगा के पठारी क्षेत्र में रहने वाले इन आदिम जनजातियों को आज भी अपनी खुशियों के लिए अपने त्यौहार का इंतजार करना पड़ता है क्योंकि इन इलाकों में इन्हें राज्य स्थापना दिवस की जानकारी ही नहीं है.
खुशियों का माहौल आज किनके लिए है, यह भी समझने की बात है. आदिम जनजाति के लोग जो झारखंड में विकास के पहले हकदार हैं, जिन्हें उनका अधिकार उन्हें मिलने चाहिए था. क्या 22 वर्षों में यह अधिकारी इन्हें मिले हैं यह सवाल आज भी सवाल बनकर खड़ा है.
पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखदेव भगत ने पूरे मामले में कहा कि झारखंड राज्य को पिछली बार स्थिर सरकार मिली थी. उसके बाद वर्तमान सरकार स्थिर है. राज्य के विकास में राजनीतिक अस्थिरता को यह बड़ा बाधक मानते हैं, हालांकि इन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार कई मुद्दों पर बेहतर कार्य कर रही है. वहीं पूर्व विधान पार्षद प्रवीण कुमार सिंह ने कहा कि राज्य का विकास आज भी हाशिए पर खड़ा है. यहां के मूल हकदार आदिवासियों को आज भी उनके अधिकार, सुविधाओं और अन्य वाजिब लाभ मिलने के लिए महीनों वर्षों इंतजार करना पड़ता है.
HIGHLIGHTS
. झारखंड अपना 22वां स्थापना दिवस मना रहा
. 15 नवंबर, 2000 को अलग राज्य बना
Source : News State Bihar Jharkhand