झारखंड में दुमका अभी सुखे की मार भी झेल ही नहीं पाया था कि लोग अब जंगली हाथियों से परेशान है. दल से बिछड़े जंगली हाथी के भय से लोग रात में घरवार छोड़ रात को जागने को मजबूर हैं. हाल के कुछ महीने में हाथी जिले में रानेश्वर, गोपीकांदर, शिकारीपाड़ा प्रखंड इलाको में कई किसानों को निशाना बना कर मौत के घाट उतार चुके हैं. वहीं बीते दिन सोमवार को मसलिया प्रखंड के नयाडीह गांव स्थित गोबड़ा मोड़ के समीप लकड़ी चुन रहीं दो महिलाओं को निशाना बना कर गंभीर रूप से जख्मी कर दिया.
दोनों घायल महिलाएं आज दुमका अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही हैं. जिले के दर्जनों गांव हाथियों के हमले से प्रभावित हैं. हालांकि वन विभाग घटना होने के पश्चात इन जंगली हाथियों को भगाने के लिए पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा जिले से प्रशिक्षित लोगों की दो स्पेशल टीम बुला कर जंगल मे भेजने का काम कराती रही है. लेकिन कुछ दिनों के बाद पुनः हाथी प्रवेश कर लोगों की नींद उड़ा देते हैं. रात के वक्त जंगल से उतर कर लोगों के घरों को बुरी तरह छतिग्रस्त कर और घरों में रखे अनाज को अपना आहार बना लेते हैं. खेतों में लगी फसल को तहस नहस कर डालते हैं. हाथियों से हो रही तबाही के कारण लोग बन विभाग से काफी खपा हैं.
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बताया जाता है कि यह हाथी पलामू से विचरण करते हुये झारखण्ड और उसके सीमावर्ती राज्य पश्चिम बंगाल पहुंच जाते है और फिर जंगल को छोड़ वह गांव की ओर रुख करते है. कई लोगों का मानना है कि जंगलों में पेड़ों की अत्यधिक कटाई और उसके उत्खनन के कारण हाथी अब अपने आहार के लिए सीधे गांव में रुख करने लगे हैं. इसी के साथ घरों में रखे अनाज को आहार बनाने के लिए घरों को निशाना बनाते है. इस बीच कोई भी बाधक बनता है तो वह सीधे मौत के घाट उतार दिया जाता है.
अबतक इस जिले में लगभग डेढ़ दर्जन लोगों को जंगली हाथियों ने मौत के घाट उतार दिया है. गौरतलब है की लगातार जंगली हाथियों से हो रही छति से राहत दिलाने के लिए तत्कालीन अर्जुन मुंडा की सरकार ने कॉरिडोर योजना का प्लान तैयार किया था. लेकिन यह योजना एक सपना बन कर रह गयी. हालांकि शिकारीपाड़ा के क्षेत्रीय विधायक नलिन सोरेन ने इस मामले को विधानसभा में उठाकर इस योजना को बनाने की मांग सरकार से लगातार कर रहे हैं.
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लेकिन सरकार की इच्छा शक्ति की कमी के कारण यह योजना अधर में लटकी हुई है. जिसके कारण कई लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है. इधर दुमका के वन अधिकारी डीएफओ सौरभ चंद्रा के मुताबिक दुमका जिले के जंगली इलाके काठीकुंड, गोपीकांदर, मसलिया, रानेश्वर शिकारीपाड़ा और रामगढ़ प्रखंड क्षेत्र में हमेशा 18 हाथियों का दल विचरण करता रहता है. जंगल मे पानी की कमी और खाने की उपलब्धता पूरी तरह न होने के कारण वह गांव की ओर रुख कर जाते है.
जिससे तबाही और मौत की घटनाएं सामने आती हैं. अधिकारी ने कहा मौत की घटना तब सामने आती हैं जब हाथी लोगों को बाधक बनते देखता है. उन्होंने कहा कि कई ऐसी घटना जंगल के भीतर भी हुई हैं जैसे रानेश्वर प्रखड में एक व्यक्ति को मौत के घाट उतार दिया था. हालांकि उन्होंने कहा कि पिछले फरवरी से अबतक 18 जंगली हाथियों का दल यहां अभी तक नहीं आया है. सम्भवतः पानी की कमी का एक कारण हो सकता है. लेकिन उसमें से एक बिछड़े हाथी जो मेल और सिंगल एडल्ट होने के कारण विचलित हैं जो लोगों को देखते ही आक्रामक होकर हमला कर देता है. हाल ही में काठीकुंड प्रखंड के कालझार में एक की मौत और दो लोगों को जख्मी कर दिया था.
वन विभाग ने तत्काल 25 हज़ार रुपये और घायलो को 12 हज़ार की अग्रिम राशि दी थी. इधर सोमवार को मसलिया में भी हाथी के हमले के बाद विभाग ने घायल के इलाज़ के लिए 12 हज़ार और 7 हज़ार की राशि उपलब्ध करायी गई है. उन्होंने कहा कि दुमका में हाथी से रक्षा के लिए गांव में ग्राम वन प्रबंधन समिति बनायी है. उन्होंने कहा कि विङमोबाइल भी वन विभाग द्वारा दिये गए हैं ताकि हाथी के आने पर वह अविलंब विभाग को सूचित कर सके. अबतक काठीकुंड, गोपीकांदर, आसनबनी, मसलिया, शिकारीपाड़ा और रानेश्वर प्रखंड के ग्राम वन प्रबंधन समिति के सदस्यों को 30 मोबाइल बांटे गये हैं. जबकि एक महीने के भीतर और 20 मोबाइल बांटे जाएंगे. इसके अलावा हाथी जंगल से बाहर नहीं निकले इसके लिए वन विभाग पंजनपहाड़ी इलाके में चेक डेम निर्माण कराएगी ताकि पानी की उपलब्धता बनी रहे.
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि जंगलों में हाथियों को पर्यावास की जरूरत है ताकि खाने के साथ पानी भी समुचित मात्रा में मिल सके. ऐसे में हाथी जंगल से गांव की ओर रुख नहीं करेगा. हाथी कॉरिडोर बनाने के सवाल पर कहा कि पिछले दस साल से प्रस्ताव दुमका गया ही नहीं है. अधिकारी ने कहा कि हालांकि लोगों को ऐसे हाथियों से दूर रहने के साथ उन्हें हल्ला कर विचलित नहीं करने की सलाह दी.
इधर हाथी ज्यादातर आदिवासियों के उन इलाकों में के घरों को भी ज्यादातर निशाना बनाते है जिनके यहां शराब या हड़िया तैयार होता है. हाथी शराब का स्वाद चख चुके हैं और सीधे सूंघते हुए उन घरों पर हमला कर देते हैं. बीते करीब 2005-06 में जंगली हाथियों के एक दल ने रानेश्वर, शिकारीपाड़ा और काठीकुंड में जम कर उत्पात मचाया था, काठीकुंड में हाथी इतने आक्रामक हो गये थे कि एक व्यक्ति को शव को घंटो अपने कब्जे में रखा फुटबॉल की तरह शव को इधर से उधर करते रहे. वहीं शिकारीपाड़ा के प्रतापपुर गांव में एक ही परिवार के चार लोगों के मौत के घाट उतार दिया था. हाथी के इस आक्रामक तेवर को देख काठीकुंड और रानेश्वर प्रखड के लोगों ने भय के कारण अपना आशियाना पेड़ों पर बना लिया था. लोग इतने भयभीत थे कि रात को जागकर बिताते थे. हालांकि बाद में वन विभाग ने बांकुड़ा के प्रशिक्षित टीम को बुलाकर हाथियों को गांव से बाहर किया था.
बहरहाल जंगली हाथी दुमका गांवों में आतंक मचाये हुये है. लोग हाथियों के दहशत से काफी भयभीत हैं. वहीं हाथियों से हो रही मौतें और वर्वादी के विभाग का सरदर्द बना हुआ है. लेकिन राज्य की रघुवर सरकार इन हाथियों को संरक्षण की दिशा देने के क्रम में अभी तक कुछ न कर पायी है.
Source : Bikash Prasad Sah