झारखंड की उपराजधानी दुमका में बना मशानजोर डैम आज भी बंगाल सरकार के अधीन हैं. सिंचाई और विधुत उत्पादन के उद्देश्य से बने इस डैम से झारखण्ड के लोगों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है. राज्य को बने हुए करीब 19 वर्ष से ज्यादा समय बीत गया है इसके बाद भी राज्य सरकार इस डैम को अपने अधीन नहीं कर पाई है. इस डैम से आज भी करीब 45,000 लोग विस्थापन की वाट जोह रहे हैं. उन्हें ना तो सही रूप में सिंचाई लाभ मिल पाया और ना ही विधुत का लाभ मिल पाया. यही नहीं बल्कि सरकार द्वारा मिलने वाले ज़मीन के उचित मुआवजा भी नसीब नहीं हो पाया. हालांकि बीजेपी ने इस दिशा मे बीते वर्ष झारखंड के समाज कल्याण मंत्री के नेतृत्व मे मशानजोर डैम को लेकर आवाज बुलंद तो की थी लेकिन कुछ ही दिनो मे मामला ठंडे बस्ते मे चला गया.
इधर गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे ने पिछले दिनो झारखंड मे पड़ने वाले बंगाल सरकार के अधीन मशानजोर डैम सहित कई डैम को लेकर संसद मे बात रखी थी. लेकिन अबतक इस गंभीर मामले का हल नहीं निकल पाया है. आज भी कई ऐसे गांव के लोग हैं जिनकी ज़मीन अधिगृहित होने के बाद उनको अपनी पहचान नहीं मिल पायी है.
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आज भी अपनी पहचान को लेकर एक कार्यलय से लेकर दूसरे कार्यालय मे भटक रहे है लोग. इधर झामुमों के शिकारीपाड़ा विधायक नलिन सोरेन के मुताबिक बीजेपी मशानजोर डैम को लेकर बहानेबाजी कर रही है. उनका कहना है कि यदि बीजेपी चाहती तो यह गंभीर मामला कब का समाप्त हो जाता. क्योंकि बीजेपी की सरकार राज्य में भी है और केंद्र मे भी है. आज डैम झारखंड मे रहकर भी बंगाल के अधीन है लेकिन इस डैम से यहां के लोगों को कोई फाइदा नहीं मिल पा रहा है.
वहीं दुमका के सांसद सुनील सोरेन इस मसले को संसद मे उठाकर यहां के लोगों को न्याय देने का भरोसा दे रहे हैं. दुमका जिला मुख्यालय से करीब 30 किमी की दूरी पर दुमका-सिउड़ी मुख्य मार्ग के बीच स्थित मशानजोर गांव में मयूराक्षी नदी पर करीब 27 फाटकों का मशानजोर डैम बना है. जो लोगों के लिये मात्र दर्शनीय स्थल बन कर रह गया है. सिंचाई और विधुत उत्पादन के उद्देष्य से बने इस डैम से झारखण्ड के लोगों को कोई लाभ नहीं मिल रहा है. यहीं नहीं राज्य के बने करीब 19 वर्ष से ज्यादा बीत जाने के बाद भी राज्य में कई सरकारें बनीं लेकिन राज्य सरकार आज भी इस डैम को बंगाल से अपने अधीन नहीं कर पाई.
इस डैम से आज भी 150 गांव के करीब 45,000 से ज्यादा लोग विस्थापन की वाट जोह रहे हैं. दुलाल मंडल, अमर मंडल जैसे हजारों लोग आज विस्थापन का दर्द झेल सरकार को कोस रहे हैं. विस्थापित लोगों का कहना है सभी सरकारों ने इस डैम को वोट बैंक बनाकर राजनीतिक रोटियां सेकने का कम किया है. आजतक किसी सरकार ने इस दिशा मे कोई ठोस पहल नहीं की है.
गौरतलब है कि अविभाजित राज्य बिहार मे दुमका जिले मे मशानजोर गांव मयूराक्षी नदी में 19 हजार एकड़ भूमि क्षेत्र में 16 करोड़ 11लाख रुपये की लागत से निर्मित इस डैम का शिलान्यास भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद ने लोगों को फायदा देने के उद्देश्य से 12 मार्च 1951 को इसकी आधारशिला रखी थी. 113 फीट ऊंचे और 2150 फीट लंबे इस डैम को 1956 में कनाडा सरकार द्वारा पूरी तरह बना कर तैयार किया गया, लेकिन सिंचाई और विधुत उत्पादन के उद्देश्य से बनाये गये इस महत्वाकांक्षी योजना का झारखण्ड के लोगों को कोई लाभ नहीं मिला. राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद ने इस क्षेत्र के लोगों के लिये सुखद भविष्य के जो सपने संजोये थे वह पूरी तरह धूमिल होते चले गये. आज इस डैम से 5 मेगावाट के बिजली पैदा होती है जिसका लाभ पश्चिम बंगाल के लोगों को मिल रहा है.
तीनों ओर पहाड़ियों के बीच अपनी प्राकृतिक छटा बिखेरती यह बहूद्देशीय डैम अविभाजित राज्य, बिहार के उस समय के तत्कालीन मुख्य मंत्री श्री कृष्ण प्रसाद सिंह ने 12 मार्च 1949 को बंगाल सरकार के साथ निर्माण का इकरारनामा किया था. लेकिन वह इकरारनामा कब का ही समाप्त हो गया है. बकाये रुपये को लेकर यह डैम झारखण्ड सरकार अपने अधीन अबतक नहीं कर पायी है, आजादी को सात दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी लोगों को इस डैम का लाभ नहीं मिलने से सभी काफी आक्रोषित हैं. झामुमो के जिला अध्यक्ष के मुताबिक इस मामले को लेकर हमने सड़क से लेकर संसद तक पहल की है.
सिंचाई बिजली और विस्थापन जैसे मुद्दे को लेकर हमने जब डैम से जुड़े बंगाल के अधिकारियों से पूंछा तो उन्होंने झारखण्ड सीमा को बिजली छोड़ पूरी तरह पानी सप्लाई करने की बात कहीं लेकिन विस्थापन के मामले पर खुद को नया अधिकारी बता कर अपना पल्ला झाड़ लिया.
मयूराक्षी नदी में सिंचाई और विधुत उत्पादन के उद्देष्य से मशानजोर में बने इस कनाडा डैम से झारखण्ड वासी पूरी तरह लाभ से वंचित हैं. सिंचाई के लिये ना ही उन्हें पानी की उचित सुविधा मिली और ना ही बिजली की सुविधा बल्कि इन्हें सौगात में मिला तो विस्थापन. झारखंड बने 19 वर्ष के दौरान कई सरकारें आयीं और गईं लेकिन सरकारें लोगों को मुआवजा तो दूर बंगाल सरकार के अधीन डैम को मुक्त कराने में भी असफल रहीं.
Source : बिकास प्रसाद साह