एक वक्त ऐसा था जब सरायकेला-खरसावां जिले की पहचान छऊ नृत्य से होती थी. युद्ध कला से निकली इस नृत्य शैली को पूरे विश्व में ख्याति मिली, लेकिन आज ये कला लुप्त होने की कगार पर है. ऐसे में सरायकेला जिला प्रशासन एक बार फिर इस सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने के लिए पहल कर रही है. इस नृत्य की शैली भी बेहद खास है. छऊ के चलते ही सरायकेला को पूरी दुनिया में पहचान भी मिली. इनके कलाकारों में से 6 कलाकारों को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक पद्म पुरस्कार भी मिल चुका है. नृत्य की ख्याति ऐसी की इसे सीखने दूसरे देशों से भी लोग आते हैं. बावजूद इस कला को सहेजने के लिए जिला प्रशासन को पहल करनी पड़ रही है.
छऊ महोत्सव मनाने की चर्चा
सरायकेला कलेक्ट्रेट में डीसी की अध्यक्षता में बैठक हुई, जिसमें इस लोकनृत्य को कैसे एक बार फिर जिले की पहचान बनाई जाए इस पर चर्चा हुई. बैठक में छऊ कला केंद्र के संचालन के लिए स्वीकृत 6 पदों और संविदा के जरिए 15 पदों पर भर्ती के प्रस्ताव को सांस्कृतिक विभाग भेजने का फैसला लिया गया. साथ ही छऊ कला केंद्र के बेहतर संचालन के साथ ही छऊ महोत्सव को मनाने पर भी चर्चा की गई. इसको लेकर डीसी ने जानकारी देते हुए बताया कि चैत्र महापर्व कार्यक्रम 2 अप्रैल से शुरू होगा जिसमें राज्य के अलग-अलग कोने और आसपास के राज्य से आए कलाकारों का सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होगा. इस दौरान ही छऊ महोत्सव में स्थानीय कलाकार की खास मौजूदगी रहेगी.
झारखंड का मुखौटा नृत्य
बात करें छऊ नृत्य की तो इसे सरायकेला नृत्य या झारखंड का मुखौटा नृत्य कहते हैं. ये नृत्य विधा परिखंडा नामक युद्ध कला की तकनीकों से उत्पन्न हुई है. मुखौटा, छऊ नृत्य का केंद्रबिंदु है. चिकनी मिट्टी के मुखौटे लकड़ी के मंच पर बनाएं जाते हैं. सरायकेला में बसंतोत्सव के दौरान छऊ खास आकर्षण होता है. सरायकेला छऊ नृत्य में सिर्फ संगीत होता है, इसमें शब्दों का वाचन नहीं होता.
होगी कलाकारों की भर्ती
छऊ नृत्य की ख्याति को देखते हुए ही पूर्व सरकारों ने इसके लिए कलाकारों को नौकरी पर भी रखा था. जो औरों को छऊ कला सीखाने का काम करते थे, लेकिन अब सभी 6 कलाकार रिटायर्ड हो चुके हैं. ऐसे में जिला प्रशासन एक बार फिर कलाकारों की भर्ती के लिए पहल करने की कोशिश कर रही है ताकि इस कला और सांस्कृतिक धरोहर को सहेजा जा सके.
झारखंड को मिली पहचान
छऊ नृत्य ने ना सिर्फ कलाकारों या सरायकेला बल्कि पूरे झारखंड को विश्व पटल पर पहचान दिलाई, लेकिन आज इस धरोहर को सहेजने की जरूरत है. उम्मीद है कि जिला प्रशासन की पहल रंग लाएगी और सरायकेला की ये कला एक बार फिर पूरे राज्य को विश्व मंचों पर गर्वान्वित करेगी.
रिपोर्ट : विरेन्द्र मंडल
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HIGHLIGHTS
- छऊ महोत्सव मनाने की चर्चा
- झारखंड का मुखौटा नृत्य
- होगी कलाकारों की भर्ती
- झारखंड को मिली पहचान
Source : News State Bihar Jharkhand