झारखंड के संथाल परगना में 1870 में दो जेल बने थे. एक दुमका और दूसरा राजमहल में, जबकि देवघर, पाकुड़, नाला और गोड्डा में लॉकअप था. 1870 में 108 बंदी थे, दूसरे लॉकअप के बंदी को सजा होने के बाद दुमका पहुंचा दिया जाता था. उस समय जेल अधीक्षक सिविल सर्जन हुआ करते थे. लेकिन 1952 में बिहार जेल सेवा गठित हुई, जिसके तहत जेल अधीक्षक का पद सृजित किया गया और जेल तब पूर्णरूप से प्रशासनिक नियंत्रण में आ गया. 1952 में दुमका जेल उस समय करीब पांच एकड़ में फैला हुआ था. जिसमें दो गार्डन और 416 बंदियो के रहने की व्यवस्था थी. जेल के अस्पताल में इलाज के लिए 12 बेड की व्यवस्था थी.
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1952 के बिहार जेल एक्ट द्वारा 1 काराधीक्षक, जेलर का 1 पद, सहायक जेलर के 2 पद, सहायक सर्जन का 1 पद, कंपाउंडर 1, क्लर्क 1, मुख्य कक्षपाल 1, कक्षपाल के 50 पद को सृजित किया गया था. पद सृजन के पश्चात सारे पद पर नियुक्तियां हुई, लेकिन तब से कैदियों की संख्या में इजाफा होता गया परंतु कार्यरत कर्मचारी सेवानिवृत्त होते चले गये और नियुक्तियां नहीं के बराबर होती रहीं.
दुमका 2005 में केंद्रीय कारा बना उसके बाद से ही दूसरे जिलों के अंतरराज्यीय कुख्यात कैदियों को भेजा जाता रहा है, जिसमें कई गैंगस्टर और हार्डकोर उग्रवादी भी हैं. लेकिन इसके बावजूद इस सेंट्रल जेल में कार्यबल की काफी कमी है. 416 कैदी की देखरेख के लिए साढे छह दशक पहले जितने कर्मचारियों को नियुक्त किया गया था, आज उससे चार गुना ज्यादा कैदी के लिए उससे भी कम कर्मचारी मुहैया कराए गए हैं.
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वर्तमान जेल प्रशासन अपनी कुशलता का परिचय देते हुए सज़ावार कैदियों से ही अधिक से अधिक काम कराकर काम चलाने को मजबूर है. बता दें कि इस जेल में वर्तमान में सहायक जेलर के 5 पद हैं, लेकिन अभी एक भी उस पद पर कार्यरत नहीं है. उच्च कक्षपाल के 28 पद हैं जिसमें एकमात्र उच्च कक्षपाल ही पदस्थापित है. कक्षपाल के 96 पद हैं लेकिन मात्र 20 ही कार्यरत हैं. 76 कक्षपाल की कमी को दूर करने के लिए 44 भूतपूर्व सैनिकों को संविदा पर रखा गया है और इसमें से भी 2 कक्षपाल एवं 7 भूतपूर्व सैनिकों को मधुपुर प्रतिनियुक्ति पर भेज दिया गया है.
वहीं जेल की दीवार के ऊपर बने 9 वॉच टावर पर से कैदियों की निगरानी के लिए 9 पद हैं जहां जैसे-तैसे 4 होमगार्ड के जवान को टावर पर और 2 जैप के जवान को वॉच टावर पर तैनात किया गया है. 3 टावर पर जवान तैनात नहीं हैं. यहां पर भी 3 पद रिक्त हैं.
तकरीबन 60 हार्डकोर नक्सली हैं इस सेंट्रल जेल में बंद
सेंट्रल जेल दुमका में करीब 55 से 60 हार्डकोर नक्सली बंद हैं जिनपर पैनी नजर रखी जाती है. ऐसे में उच्च कक्षपाल के 28 पद में मात्र एक उच्च कक्षपाल और आधे से अधिक कक्षपाल के पद खाली रहने से सुरक्षा व्यवस्था में कमी से इंकार नहीं किया जा सकता है. इसी प्रकार सेंट्रल जेल में 2 चिकित्सा पदाधिकारियो का पद हैं, लेकिन एक भी पदस्थापित नहीं हैं. ड्रेसर एवं कम्पाउंडर का पद भी दुर्भाग्यवश खाली ही है. सेंट्रल जेल में लगभग 1400 के करीब कैदी हैं जिसके लिए स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना जरूरी है.
कुछ बंदी जो अंतरराज्यीय अपराधों में संलिप्त रहे हैं और जो गोली से घायल है जिनके घुटनों और शरीर में गोली से घाव है ऐसे में उसके समुचित इलाज के लिए जेल में डॉक्टर, कंपाउंडर और ड्रेसर के न रहने के कारण सही तरह से ईलाज हो पाना मुश्किल होता है. यह भी एक चिंता का विषय है कि जब सदर अस्पताल में ही अभी आर्थोपेडिक सर्जन उपलब्ध नहीं है तो जेल से सदर अस्पताल भेजकर ईलाज कराना संभव नही होगा.
Source : विकास प्रसाद साह