आज पूरे झारखंड में सरहुल त्योहार की धूम है. आदिवासी समुदाय का ये अनोखा त्योहार प्रकृति की पूजा से जुड़ा है. इस पर्व के जरिए ही आदिवासी समाज नए साल का स्वागत करता है. सरहुल को नए साल की शुरूआत का प्रतीक माना जाता है, जो मानवजीवन में प्रकृति की महत्ता का प्रतीक है. प्रकृति की भूमि वाले प्रदेश का ये त्यौहार प्रकृति के प्रति प्रेम आस्था विश्वास सम्मान और उपासना को दर्शाता है. हर साल चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया को सरहुल मनाया जाता है. इस दिन आदिवासी समाज नए साल का स्वागत करते हैं. साथ ही धरती माता और सूर्यदेव की अराधना करते हैं. फल फूल और पत्तियों के उपभोग की इजाजत भी लेते हैं. यानी आज के दिन आदिवासी समुदाय प्रकृति से उनके इस्तेमाल की अनुमति मांगता है और सरहुल पूजा के साथ ही नए साल का कृषि जीवन चक्र भी शुरू हो जाता है.
तीन दिवसीय पर्व
पूरे झारखंड में सरहुल पर्व की धूम है. ये पर्व तीन दिवसीय होता है. जहां पूजा के पहले दिन लोग उपवास रखते हैं. सुबह खेती करते हैं और नदियों और तालाबों जलाशयों में जाकर केकड़ा और मछली पकड़ते हैं. मान्यता है कि फसल बोने के समय केकड़े को गोबर पानी से धोया जाता है और उसी गोबर पानी से फसलों के बीज को भीगा कर खेतों में डाला जाता है. इससे केकड़े के 8-10 पैरों की तरह फसल में भी ढेर सारी जड़े निकलती है. दूसरे दिन पूजा के बाद घड़े के पानी को देखकर इस साल बारिश का पूर्वानुमान करते हैं. इसी दिन शोभायात्रा निकलती है.
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पूर्व मुख्यमंत्री भी थिरके
जमशेदपुर में भी सरहुल पर्व की धूम देखने को मिली. जहां सीतारामडेरा में आदिवासी उराव समाज समिति ने पर्व का आयोजन किया तो झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास भी इसमें शामिल हुए और लोगों के साथ मिलकर पूजा-अर्चना की. पूजा के बाद पूर्व मुख्यमंत्री भी उन लोगों के साथ मंदार बजाते और थिरकते नजर आए. पूर्व सीएम ने आम जनता के साथ पर्व का लुत्फ उठाते हुए पूरे प्रदेश की जनता को शुभकामनाएं भी दी. सरहुल त्योहार सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि कई दूसरे राज्यों में भी मनाया जाता है.
क्या है सरहुल त्योहार?
सरहुल को आदिवासियों का प्रमुख त्योहार माना जाता है
ये त्योहार झारखंड, छत्तीसगढ़ ,उड़ीसा, बंगाल में मनाया जाता है
सरहुल त्यौहार प्रकृति और धरती माता को समर्पित है
इस त्यौहार प्रकृति को आभार जताने का भी एक जरिया है
सरहुल में पेड़-पौधों की पूजा की जाती है
हर साल चैत्र महीने के तीसरे दिन ये त्योहार मनाया जाता है
आदिवासियों का मानना है कि वह इस पर्व को मनाने के बाद ही नई फसल का इस्तेमाल कर सकते हैं. क्योंकि पर्व के जरिए हम प्रकृति से इसकी अनुमति लेते हैं. ये त्योहार आदिवासी संस्कृति की खासियत को भी दर्शाता है. त्योहार हमे ये सीख भी देता है कि प्रकृति हमे जो भी देती है उसके बदले हमे भी प्रकृति का आभार जताना चाहिए. उसके दोहन के बजाय उसकी पूजा करनी चाहिए. क्योंकि प्रकृति ही मनुष्य के जीवन का आधार है.
HIGHLIGHTS
- प्रकृति का त्योहार... सरहुल
- पूरे प्रदेश में सरहुल की धूम
- तीन दिवसीय होता है पर्व
- पर्व के जरिए नए साल का स्वागत
Source : News State Bihar Jharkhand