कच्चे रास्ते और रास्तों के दोनों तरफ पेड़ ही पेड़. जहां तक नजर जाती है सिर्फ हरियाली दिखाई देती है. झारखंड के गढ़वा में एक वक्त ऐसा भी था जब हरियाली से घिरा ये इलाका लाल आतंक के कहर को झेल रहा था. प्रकृति की गोद में सोया ये क्षेत्र गोलियों की तड़तड़ाहट और बम विस्फोट की आवाज से दहल उठता था. नक्सलियों के गढ़ बने बूढ़ा पहाड़ के आस-पास रहने वाले ग्रामीणों का जीना मुहाल हो गया था, लेकिन सुरक्षाबलों की लगातार कोशिश ने आज इस इलाके को नक्सलियों से आजाद कर दिया है.
एक महीने पहले तक इस इलाके में नक्सलियों का राज हुआ करता था. इस इलाके में न जाने कितने जवानों ने शहादत दी. पूढ़ा पहाड़ जिले के सबसे दुर्गम इलाकों में गिना जाता है. ऐसे में नक्सलियों ने इस इलाके को अपने कब्जे में ले लिया था. सुरक्षबलों के लिए इस इलाके में ऑपरेशन चलाना आसान नहीं था, लेकिन अब यहां शांति का माहौल है. गढ़वा पुलिस और सीआरपीएफ 172 बटालियन ने भाकपा माओवादियों से बूढ़ा पहाड़ को मुक्त करा दिया है. नक्सली मुक्त होने के बाद पहली बार सुरक्षाबलों ने इलाके के जायजा लिया और ग्रामीणों से बातचीत की.
बूढ़ा पहाड़ इलाका भले नक्सली मुक्त हो गया है, लेकिन अब इस क्षेत्र को विकास का इंतजार है. आस-पास के गांवों में ना सड़क है ना पानी. बिजली तो दूर की बात है. ग्रामीणों को सरकारी योजनाओं का लाभ भी मिल जाए तो बड़ी बात है. ऐसे में पुलिस और सीआरपीएफ 172 बटालियन ने जब इलाके का दौरा किया तो उन्होंने ग्रामीणों की परेशानियों को जानने की कोशिश की. जहां सीआरपीएफ अधिकारियों ने दावा किया इलाके में नक्सलियों का खौफ तो नहीं है, लेकिन इलाका विकास से कोसों दूर है. जिला प्रशासन के सहयोग से ही यहां के लोगों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ा जा सकता है.
बहरहाल, बूढ़ा पहाड़ के आस-पास के ग्रामीण अब बिना किसी खौफ के जी रहे हैं. सुरक्षाबलों ने नक्सलियों को खदेड़ दिया है. सुरक्षाबलों ने तो अपनी जिम्मेदारी निभा दी है, लेकिन अब बारी है जिला प्रशासन की. ऐसे में देखना होगा कि शासन-प्रशासन का ध्यान कब तक इस इलाके की ओर आता है और कब तक क्षेत्र का विकास हो पाता है.
रिपोर्ट : धर्मेन्द्र कुमार
Source : News Nation Bureau