NMC के नियम के मुताबिक अब मरीजों को जेनेरिक दवाएं लिखनी जरूरी हैं, लेकिन ज्यादातर डॉक्टर इस नियम का पालन नहीं कर रहे. बात करें रिम्स की तो यहां के पीआरओ डॉक्टर राजीव रंजन का दावा है कि मरीजों को लंबे समय से जेनेरिक दवाएं ही लिखी जाती हैं, लेकिन जब उनके दावों की पड़ताल की गई तो सच्चाई कुछ और ही सामने आई. राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग यानी NMC ने सभी डॉक्टर्स को लेकर नए नियम जारी किए हैं, जिसके तहत अब डॉक्टर्स को जेनेरिक दवाएं ही लिखनी होंगी ऐसा न करने पर उनके प्रैक्टिस करने का लाइसेंस भी एक अवधि के लिए सस्पेंड किया जा सकता है.
क्या होती हैं जेनेरिक दवा ?
- कई तरह की रिसर्च और स्टडी के बाद तैयार किया जाता है एक रसायन (साल्ट).
- साल्ट को आसानी से उपलब्ध करवाने के लिए दी जाती है दवा की शक्ल .
- तैयार साल्ट को हर कंपनी अलग-अलग नामों से बेचती है.
- कोई कंपनी इसे महंगे दामों में बेचती है, तो कोई सस्से दाम पर.
- तैयार साल्ट का जेनेरिक नाम एक विशेष समिति निर्धारित करती है.
- साल्ट के कंपोजिशन और बीमारी का ध्यान रखते हुए करती है निर्धारित.
- किसी भी साल्ट का जेनेरिक नाम पूरी दुनिया में एक ही रहता है.
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डॉक्टर को जेनेरिक दवा लिखना जरूरी
इसी को लेकर रिम्स में न्यूज स्टेट की टीम ने पड़ताल की तो यहां के पीआरओ डॉक्टर राजीव रंजन का दावा है कि रिम्स में लंबे समय से मरीजों के लिए जेनेरिक दवाएं ही लिखी जाती हैं. अब तो एनएमसी की गाइडलाइन भी आ गई है. हालांकि इस गाइड लाइन के पहले भी रिम्स के डॉक्टरों की कोशिश होती है कि मरीजों को पहले दवाई रिम्स के काउंटर से ही मिल जाए या फिर जन औषधि केंद्र से मिल जाए. हालांकि कई बार ऐसा भी होता है कि दवाएं उपलब्ध न होने पर उसके अभाव में मरीज के इलाज को रोका नहीं जा सकता है. इसलिए अन्य दवाइयां भी मंगवानी पड़ती है और वो केस 5 से 10 फीसदी तक ही होता है. वहीं, रिम्स के मेडिसिन विभाग के चिकित्सक डॉक्टर अजीत डुंगडुंग का कहना है कि भारत के परिदृश्य में जेनेरिक दवाएं अच्छी सोच हैं. क्योंकि एक बड़ी आबादी महंगी दवा खरीदने में सक्षम नहीं है.
न मानने वाले डॉक्टर्स के होते हैं लाइसेंस सस्पेंड
वहीं, इन डॉक्टरों के दावों की पड़ताल करने जब हमारी टीम रिम्स परिसर के जेनेरिक दवा स्टोर के दुकानदार के यहां पहुंची तो दवा दुकानदार की बातें सुन रिम्स पीआरओ के दावे की पोल खुली की खुली रह गई. दरअसल यहां के डॉक्टर के लिखे पर्चे पर एक भी जेनेरिक दवा का प्रिस्क्रिप्शन नहीं मिला. इसके बारे में जब न्यूज स्टेट की टीम ने उनसे पूछा तो उनके जवाब सुन हमारी टीम के होश फाख्ता हो गये. दुकानदार का कहना था कि मरीज जब जेनेरिक दवा लेकर जाते हैं तो उनसे दवा वापस करा दी जाती है. आर्थों डिपार्टमेंट का पर्ची दिखाते हुए दुकानदार बता रहे हैं कि इसमें सारी दवाएं ब्रांड नेम ही लिखी गई है. जेनेरिक दवा के ग्राहक 10 फीसदी तक ही आते हैं.
रिपोर्ट : कुमार चंदन
HIGHLIGHTS
- NMC के नियमों का नहीं हो रहा पालन
- रिम्स के PRO के दावों की खुली पोल
- रिम्स के डॉक्टर भी नहीं लिखते जेनेरिक दवाएं
- डॉक्टर को जेनेरिक दवा लिखना जरूरी
Source : News State Bihar Jharkhand