झारखंड के संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम के गृह नगरी साहिबगंज में पानी की घोर किल्लत है. आलम ये है कि ग्रामीण गंदगी से भरे तालाब का पानी पीने को मजबूर हैं. बूंद-बूंद पानी के लिए जद्दोजहद किसे कहते हैं कोई बरहरवा प्रखंड के ग्रामीणों से पूछे. यहां पानी के लिए तरस रहे लोगों की जो तस्वीर सामने आई है, वो दिल को कचोट देने वाली है. बरहरवा प्रखंड क्षेत्र में आदिवासी समुदाय आज भी तालाब का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं.
पानी की किल्लत... कौन जिम्मेदार?
कहने को तो झारखंड आदिवासियों का राज्य है. यहां आदिवासी हितों की रक्षा होती है. आदिवासियों के विकास और उत्थान के लिए योजनाएं बनती हैं तो फिर धरातल पर ये योजनाएं क्यों नहीं दिखती. क्यों आज भी जिन आदिवासियों के सहारे सियासतदान सत्ता के शिखर पर पहुंचते हैं वही मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. क्यों आदिवासी समुदाय कूड़े-कचरे और गंदगियों से भरे इस तालाब का पानी पीने को मजबूर हैं. क्योंकि एक मासूम बच्चा जिसकी उम्र खेल कूद की है वो पानी का बोझ ढोने को मजबूर हैं. दुलूमपुर गांव की ये परेशानी आज की नहीं है. यहां सालों से हालात यही हैं. गांव में चापाकल तो है, लेकिन वो खराब है. ग्रामीणों ने अपनी परेशानी स्थनीय मुखिया, विधायक, सांसद और जिला प्रशासन से लेकर सरकार आपके द्वार कार्यक्रम में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन तक पहुंचाई, लेकिन आजतक किसी ने भी ग्रामीणों की सुध नहीं ली. मजबूरन ग्रामीण गंदे तालाब का पानी पीने को मजबूर हैं.
क्यों नहीं सुनी जा रही ग्रामीणों की गुहार?
तालाब का पानी पीने से ग्रामीण कई तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं. बता दें कि गंदा पानी पीने से उल्टी, डिहाड्रेशन, पेट दर्द, दस्त और कई तरह की बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं, लेकिन शासन-प्रशासन को ना तो ग्रामीणों के स्वास्थ्य की चिंता है और ना ही आदिवासियों के विकास की. चिंता है तो सिर्फ सियासत की. साहिबगंज में आदिवासियों की ये हालत प्रदेश सरकार के तमाम दावों और वादों की पोल खोल रही है. तस्वीरें हैरान करती है कि जिस राज्य का निर्माण ही आदिवासी हितों की रक्षा के लिए किया गया है उसी राज्य में उनकी ये दुर्दशा. कई सवाल खड़े करती है.
HIGHLIGHTS
बूंद-बूंद पानी के लिए हाहाकार
पानी की किल्लत... कौन जिम्मेदार?
मासूम कंधों पर ये बोझ क्यों?
क्यों नहीं सुनी जा रही ग्रामीणों की गुहार?
Source : News State Bihar Jharkhand