निचे आग ऊपर छोटी-छोटी बस्तियां, यह कहानी नहीं हकीकत है. झारखंड का झरिया शहर कभी उन्नत किस्म के कोयले उत्पादन के लिए मशहूर था और आज अपनी भूमिगत आग और आग से होने वाले विस्थापन के लिए पुरे विश्व में मशहूर है. भू धसान और अग्नि प्रभावित क्षेत्र में रहना यहां के लोगों की मजबूरी बन गई है. धनबाद के झरिया विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत पड़ने वाले लिलोरि पथरा के लोगों के पास कोई दूसरा व्यकल्पिक रास्ता भी नहीं है.
झरिया में पिछले कुछ दिनों शुरू हुई झमाझम बारिश ने जहां लोगों को गर्मी से राहत दी. वहीं, भू धसान, अग्नि प्रभावित क्षेत्रों में रहने वालों के लिए मुसीबतें बढ़ा दी है. झरिया शहर के लिलोरी पथरा, बालू गद्दा, घनुवाडीह, तीसरा, शिमलाबहाल समेत कई ऐसे भू धसान हैं. अग्नि प्रभावित वाले क्षेत्रों में लगातार हो रही बारिश के कारण जहरीली गैस का रिसाव हो रहा है और गोफ बन रहे हैं. जिसने इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें खिंच दी है.
हालांकि जिला प्रशासन द्वारा इन खतरनाक इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए सुरक्षित स्थान पर विस्थापन को लेकर लगातार अभियान चलाया जा रहा है. इसके बावजूद यहां बसे लोग इस भू धसान, अग्नि प्रभावित वाले क्षेत्रों को छोड़कर जाना नहीं चाहते. लिलोरी पथरा में रह रहे लोगों ने बताया कि जिला प्रशासन, बीसीसीएल और जरेडा विस्थापन की बात तो करते हैं परंतु इनकी विस्थापन नीति सही नहीं है. जिसके कारण ऐसे सैकड़ों परिवार अपनी जान जोखिम में डाल कर लिलोरिपथरा में रहने को मजबूर हैं. अगर इस बीच कोई घटना या दुर्घटना होती है तो इसकी जवाबदेही आखिर किसकी होगी यह बड़ा सवाल है. हल्की सी लापरवाही के कारण कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है.
वहीं, इस पूरे मामले को लेकर झरिया अंचल अधिकारी प्रमेश कुशवाहा ने भी इन अग्निप्रभावित भूधसान में रहने वाले लोगों से आग्रह किया है कि जिला प्रशासन द्वारा विस्थापितों के लिए बनाए गए सुरक्षित आवासों में इन चिन्हित इलाके में रहने वाले लोग जल्द से जल्द शिफ्ट हो जाएं ताकि जान माल की सुरक्षा हो सके. इसके लिए जिला प्रशासन प्रयासरत है.
रिपोर्ट : नीरज कुमार
Source : News Nation Bureau