गढ़वा में बच्चों को स्कूली शिक्षा से जोड़ने के लिए बड़े गर्मजोशी के साथ रूआर अभियान चलाया गया. अभियान के तहत बच्चों के एडमिशन को लेकर करीब एक महीने तक तामझाम करने और लाखों रुपए पानी की तरह बहाने के बाद भी जिले के स्कूलों में औसत दो-दो छात्रों का भी एडमिशन नहीं हो पाया है. जिले में बैक टू स्कूल कैंपेन रूआर के तहत यह अभियान 22 जून से चलाया जा रहा है और अब 15 जुलाई को अभियान खत्म भी होने वाला है. इसके लिए सरकार की ओर से सात लाख रुपये भी उपलब्ध कराये गए, लेकिन बच्चों का एडमिशन का ये अभियान भी ढाक के तीन पात सा ही साबित हो रहा है.
लाखों रुपये खर्च के बाद भी फ्लॉप साबित हो रहा अभियान
गढ़वा में सर्व शिक्षा अभियान से जुड़े सभी कैटेगरी के 1 हजार 434 स्कूल संचालित हैं. कैंपेन के तहत 12 जुलाई तक करीब साढ़े तीन हजार बच्चों का ही नामांकन हुआ है. कुछ प्रखंड ऐसे भी हैं, जहां के सभी स्कूलों के बच्चों की संख्या मिलाकर भी डबल डिजिट तक नहीं पहुंच पाया है. जब इसकी पड़ताल के लिए NEWS STATE BIHAR JHARKHAND की टीम ने ग्राउंड पर जाकर रियलिटी चेक किया तो स्कूल के शिक्षक अपना रोना रोने लगे. टीचर्स का कहना है कि पहले ही सरकारी स्कूलों में छात्रों के अनुपात में टीचर कम है. वर्क लोड ज्यादा है, ऐसे में बच्चों को पढ़ाए या विभाग का काम करें.
क्या है रूआर अभियान का उद्देश्य?
दरअसल रूआर अभियान का उद्देश्य बच्चों को स्कूलों से दोबारा जोड़ने का है. ड्रॉप आउट कम करने को लेकर बैक टू स्कूल कैंपेन यानी ''स्कूल रूआर 2023'' की शुरुआत की गई. अभियान के तहत सरकारी स्कूलों में शत-प्रतिशत बच्चों की उपस्थित दर्ज कराने का लक्ष्य है. इसमें वैसे बच्चों को भी विद्यालय से जोड़ना है, जिन्होंने प्राइमरी शिक्षा के बाद पढ़ाई नहीं की या कक्षा आठ की पढ़ाई पूरी करने के बाद स्कूल से बाहर हो गये हैं. इस अभियान में स्कूली शिक्षकों की भूमिका अहम है, लेकिन सवाल ये है कि अगर शिक्षकों पर पहले ही स्कूल का वर्क लोड ज्यादा होगा तो वो अभियान में अपनी भूमिका कैसे निभा पाएंगे.
HIGHLIGHTS
- फ्लॉप हुआ रूआर अभियान
- गर्मजोशी से हुई थी शुरुआत
- शिक्षक रो रहे अपना रोना
Source : News State Bihar Jharkhand