प्रकृति पर्व सरहुल का रंग वनवासी पर चढ़ा है. चार दिनों के इस उत्सव में लोग सराबोर हैं. रांची में तो सरहुल को लेकर भव्य शोभायात्रा निकाली गई और इस शोभायात्रा में झारखंड की संस्कृति दिखी. प्रकृति पर्व सरहुल के रंग में वनवासी सराबोर हैं. महापर्व सरहुल के रंग में वनवासी झूम रहे हैं. मांदर की थाप में झारखंड की आदिवासियों की संस्कृति देखी जा सकती है. रांची की सड़कों पर वनवासियों का सैलाब उमड़ा. पारंपरिक परिधान में आदिवासी मनमस्त नजर आए.
शोभायात्रा का कारवां
वनवासियों की इस शोभायात्रा का स्वागत हो रहा हुआ. आदिवासी लोकनृत्य और मांदर-ढोल बजाते हुए शोभायात्रा के ये कारवां आगे बढ़ता रहा. शोभायात्रा में प्रकृति के प्रति वनवासी अपना प्रेम दिखा. पारंपरिक वेशभूषा में सजे आदिवासी समाज के लोगों ने राजधानी रांची को मंत्रमुग्ध कर दिया. सरहुल के इस पावन त्योहार में नये साल का स्वागत है. जल-जंगल और जमीन को पूजने वालों की आस्था है. सरहुल का उमंग है.
झूमते दिखे लोग
सिर पर सफेद रंग की पगड़ी और कानों में सरई फूल, सरहुल की इस शोभायात्रा में शामिल हुए हर वनवासी की पहचान है. ये लोग सरना गीतों पर झूमे. वहीं, लाल पाड़ की साड़ी, खोंगसो, जुड़ा और अन्य गहनों से सजी आदिवासी युवतियां सरहुल गीतों पर शोभायात्रा में झूमते दिखे. आदिवासी समाज के लोगों का मानना है कि प्रकृति की पूजा और उसके सम्मान से ही लोग प्राकृतिक आपदा से बच सकते हैं. वहीं, रांची में शोभायात्रा को लेकर शहर में सुरक्षा के भी पुख्ता बंदोबस्त किये गये थे. प्रकृति के इस पर्व में ना सिर्फ वनवासी की भागीदारी रहती है बल्कि इस पर्व के जरिये वनवासी अपने इष्टदेव से अगले एक साल के भोजन, पानी और खेती के लिए प्रकृति से प्रार्थना करते हैं.
प्रकृति से प्रार्थना का त्योहार
सरहुल का उत्सव प्रकृति से संबंध रखता है. यह फूलों का त्योहार है. ये सरहुल प्रकृति से प्रार्थना का त्योहार है. प्रार्थना ये कि आने वाले साल जीवन में खुशहाली लाये और किसानों के चेहरे पर हमेशा खुशी बनी रहे. भोजन-पानी की कमी जीवन में ना हो. आने-वाले साल में सुखा-आकाल न पड़ें.
HIGHLIGHTS
- रांची में निकाली गई भव्य शोभायात्रा
- प्रकृति से प्रार्थना का त्योहार
- शोभायात्रा का कारवां
- नाचते-गाते नजर आए आदिवासी लोग
Source : News State Bihar Jharkhand