बोकारो जिला के नावाडीह प्रखंड के गिरिडीह और धनबाद जिले की सीमा पर भेंडरा गांव स्थित है. इस गांव में लोहे को आकार देने का काम किया जाता है. यहां लोहे के हथियार और घरेलू उपयोग में आने वाले सामान बनाए जाते हैं. कहा जाता है कि शेरशाह सूरी ने अपनी सेना के लिए हथियार बनाने के लिए हुनरमंद लोगों के लिए इस गांव को बसाया था. आज भेंडरा की आबादी 8 हजार है, यहां घर-घर लोग लोहे के हथियार और सामान बनाते हैं. यहां 150 लोहे के कुटीर उद्योग हैं, जहां 500 लोग काम करते हैं. यहां 3 करोड़ रुपए का महीने का कारोबार होता है. बता दें कि झारखंड पब्लिक सर्विस कमीशन की परीक्षा में भी सवाल पूछा गया था- शेफिल्ड की पहचान किस गांव से है? जवाब था-भेंडरा लौहनगरी.
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शेरशाह सूरी ने बसाया था इस गांव को
दरअसल, ब्रिटेन में एक शहर है शेफील्ड, शेफ नदी पर बसा यह शहर स्टील उत्पादन के लिए जाना जाता है. अंग्रेजों ने भेंडरा को भारत का शेफिल्ड नाम दिया था. वर्ष 1950 से संगठित तरीके से सामान की बिक्री हो रही है. यहां रेलवे के लिए बॉलपेन हैमर, साबल बनते हैं. कोयला कंपनी सीसीएल और बीसीसीएल के लिए गैंता, साबल, कोल कटिंग फिक्स मशीन में लगने वाले सामान बनाए जाते हैं. सेना में भी गैंता, फावड़ा-कुदाल की सप्लाई होती है. इसी गांव के रहने वाले महावीर राम बरई (अब स्वर्गीय) थे, जिन्होंने 1950 में भेंडरा कॉटेज इंडस्ट्री खोला था.
गांव की आधी आबादी में रहते हैं विश्वकर्मा जाति के लोग
कंपनी का मुख्यालय कोलकाता में था, उनके बेटे गणेश चौरसिया कंपनी को संभालते हैं. उन्होंने बताया कि उस दौर में गांव में बना सारा सामान भेंडरा कॉटेज इंडस्ट्री खरीदती थी. मुंबई, कोलकाता, सिकंदराबाद जैसे बड़े शहरों में आज भी यहां के लोहे के सामान की डिमांड है, लेकिन अब यहां कई कुटीर उद्योग खुल गए, जो सप्लायर के माध्यम से खरीदते हैं. भेंडरा गांव पारसनाथ से 9 किमी और गोमो स्टेशन से 5 किमी दूर है. गांव की आधी आबादी विश्वकर्मा जाति की है. हालांकि, यहां 17 जातियां के लोग रहते हैं.
हुनरमंद लोगों से भरा है गांव
गांव में घुसते ही घरों में समृद्धि नजर आई. हर तरफ मशीनें शोर करती रही, लोहे पर चलते हथौड़ों की आवाज सुनाई देती रही. मुखिया नरेश विश्वकर्मा ने बताया कि यहां के लोगों में हुनर ऐसा कि लोहे के किसी सामान को एक बार देख लें तो बिना किसी मशीनी मदद के हाथ से वैसा ही बना देते हैं. इन सामान को 150 कुटीर उद्योगों के जरिये रजिस्टर्ड सप्लायर खरीदते हैं. उन्होंने कहा कि अगर सही में मेक इन इंडिया देखनी है, तो इस गांव में आना चाहिए. क्योंकि मेक इन इंडिया की परिकल्पना सैकड़ों वर्ग पुरानी है. यहां के लोगों को सरकार सहायता उपलब्ध कराए, एक छत के नीचे उन्हें व्यवस्थित करने का काम करें और मैट्रियल की भी व्यवस्था करें तो देश में ऐसा अब कहीं नहीं मिलेगा.
द्वितीय विश्व युद्ध में निभाई बड़ी भूमिका
शेरशाह सूरी ने 1537 में अपनी सेना के लिए हथियारों की जरूरत महसूस की थी. तब उन्होंने भेंडरा को सुरक्षित जगह मानकर लोहे से हथियार बनाने वाले लोगों को यहां बसाया था. यहां उनकी सेना के लिए तलवार, भाला, ढाल, बरछी आदि हथियार बनाए जाते थे. ब्रिटिश सरकार ने हुनर को देखकर ही 1939 से 1945 तक द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान रेल के विस्तार के लिए लोहे का सामान बनवाया था. ग्रामीणों की खासियत थी कि वे विदेशी उपकरणों का नमूना देखकर उसे बना देते थे. इसलिए ब्रिटिश सरकार ने इंजीनियरिंग टूल्स बनाने का ऑर्डर दिया.
पहली बार रेल के लिए बनाया बॉलपेन हैमर
देश में पहली बार इसी गांव में रेल के लिए बॉलपेन हैमर बनाया गया था. 1956 में जब प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने गांव की ख्याति सुनी तो गांव में लौह उद्योग की संभावना तलाशने के लिए इंग्लैंड की फोर्ड फाउंडेशन टीम को वहां भेजा. टीम ने ग्रामीणों का काम और व्यवसाय को देख इसे भारत के शेफिल्ड की उपाधि दी. नेहरू ने इसे लौह नगरी कहा था, उनके निर्देश पर ही इस गांव में 1956 में बिजली आई, पोस्ट ऑफिस और हाई स्कूल खुले थे.
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पीएम नेहरू ने इंग्लैंड से भेजी थी खास टीम
यहां लोहे को आकार देने वाले कारीगर कहते हैं कि पुराने तरीके से आज ही लोहे का सामान बना रहे. इसमें खतरा बहुत अधिक रहता है, एक चूक हुई तो कुछ भी हो सकता है. ऐसे में सरकार हमें संसाधन उपलब्ध कराएं क्योंकि आधुनिक तरीके से बनाए गए सामान आजकल अधिक बाजार में देखे जा रहे हैं. हमें सभी तरह की सुविधा सरकार को प्राप्त कर आनी चाहिए.
रिपोर्टर- संजीव कुमार
HIGHLIGHTS
- इस गांव को शेरशाह सूरी ने बसाया था
- गांव की आधी आबादी में रहते हैं विश्वकर्मा जाति के लोग
- द्वितीय विश्व युद्ध में गांव ने निभाई बड़ी भूमिका
- पहली बार रेल के लिए बनाया बॉलपेन हैमर
Source : News State Bihar Jharkhand