विकास के वादे, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य के दावे, सड़क निर्माण और कनेक्टिविटि की बातें, लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों और वादों के खेल से कोसो दूर है . ऐसा ही देखने को मिल रहा है झारखंड में जहां हजारीबाग जिले में आज भी ग्रामीण पगडंडियों के सहारे जी रहे हैं. आदिवासी बहुल चोंचा गांव में ना तो पानी की सुविधा है ना ही सड़क की. महिलाएं हर दिन अपने कंधों पर पानी से भरे बर्तन का बोझ उठाती है. कई किलोमीटर चलती हैं, तब जाकर दो घूंट पानी नसीब होता है.
चोंचा गांव जिले के टाटीझरिया प्रखंड में पड़ता है. आदिवासी बहुल इस गांव के 60 घर हैं, जिसमें 500 से भी अधिक की आबादी रहती है. ये आबादी शासन-प्रशासन के लिए अदृश्य है. क्योंकि जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों की नजर इन ग्रामीणों पर पड़ती ही नहीं. गांव में साफ पानी का स्रोत भी नहीं है. लिहाजा महिलाएं ग्रामीण गांव के बाहर नदियों और कुओं से पानी भरकर लाती है.
इस गांव में सड़क भी नहीं है. पगडंडियों के सहारे ही आवाजाही होती है. अगर कोई बीमार पड़ जाता है तो सरकारी एंबुलेंस गांव तक नहीं आ पाती. आलम ये है कि मरीजों और गर्भवती महिलाओं को मंगरपट्टा मुख्य सड़क तक खटिए पर लादकर ले जाना पड़ता है. तब जाकर एंबुलेंस से उन्हें अस्पताल ले जाया जाता है. सड़क मार्ग नहीं होने के कारण आम लोगों को बाजार जाने, छात्र-छात्राओं को स्कूल-कॉलेज जाने में भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. ग्रामीणों का कहना है पानी-सड़क को लेकर जनप्रतिनिधियों से कई वर्षों से गुहार लगाते आए हैं, लेकिन आश्वासन के सिवा उन्हें कुछ नहीं मिला, इसको लेकर ग्रामीण काफी नाराज हैं. ग्रामीणों की मांग है कि जल्द हमारी समस्या का सामाधान किया जाए. चोंचा के आदिवासी परिवार समस्याओं बीच छला हुआ महसूस कर रहे हैं. ग्रामीण शासन-प्रशासन से गुहार लगा रहे हैं. सड़क निर्माण और पानी की सुविधा की मांग कर रहे हैं, लेकिन इनकी मांगों पर सुनवाई कब तक होती है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.
रिपोर्ट : रजत कुमार
HIGHLIGHTS
- बेहाल आदिवासी बहुल चोंचा गांव
- संकट और जर्जर सड़क से ग्रामीणों में नाराजगी
- समस्याओं के गुलाम बने हैं बेडम के चोंचा आदिवासी टोला के ग्रामीण
Source : News State Bihar Jharkhand