मूलभूत सुविधाओं से वंचित आदिवासियों का गांव, गंदा पानी पीने को मजबूर लोग
आजादी के 78 साल के बाद भी साहिबगंज के घोघि गांव के ग्रामीण झरने और कुएं का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. अलग राज्य बनने के बाद झारखंड में कई सीएम आए और चले गये, लेकिन राज्य की तकदीर और तस्वीर नहीं बदली.
आजादी के 78 साल के बाद भी साहिबगंज के घोघि गांव के ग्रामीण झरने और कुएं का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. अलग राज्य बनने के बाद झारखंड में कई सीएम आए और चले गये, लेकिन राज्य की तकदीर और तस्वीर नहीं बदली. साहिबगंज की राजमहल की पहाड़ियों की तलहटी में कई गांव बसे हैं. तालझारी प्रखंड के घोघि गांव आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. यहां चलने के लिए कंकरीट से भरे रास्ते और पीने के लिए झरने के कीड़े वाला गंदा पानी मिलता है. डिजिटल के इस युग में लोग आज भी लालटेन और ढिबरी के सराये जिंदगी जीने को मजबूर हैं.
आदिवासी समुदाय के लोगों को रोजाना गंदा पानी पीना पड़ता है. ये करें भी तो क्या इनके पास अपने दर्द बयां करने के सिवा कोई दूसरा विकल्प भी तो नहीं है. देश को आजाद हुए 78 साल बीत गए, लेकिन करामपुरातो पंचायत के घोघि गांव में आज तक सड़क का निर्माण नहीं हुआ. यहां के आदिवासी समुदाय के लोग पथरीले रास्ते से आते-जाते हैं. ये आदिवासी समुदाय आज भी सरकार से आस लगाए बैठे हैं कि कभी तो इनके भी दिन बहुरेंगे और इनके इलाके का भी विकास होगा. पंचायत मुखिया के मुताबिक यहां की मातायें और बहनें रोजाना कंकरीट के रास्ते झरने और कुएं का गंदा पानी ढोकर लाती हैं. जिसे पीकर यहां के लोग कई तरह की खौफनाक बीमारियों का शिकार भी होते हैं, लेकिन क्षेत्रीय विधायक और जिला प्रशासन का इनके ओर ध्यान भी नहीं जाता.
हालांकि झारखंड सरकार कभी-कभी पहाड़ियों पर रहने वाले आदिवासियों को सुविधा देने का दम तो भरती है, लेकिन राज्य सरकार की ये सभी बातें हवाहवाई ही साबित होती हैं. बिहार से अलग होकर 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग राज्य बना, लेकिन खनिज संपदाओं से भरा ये राज्य राजनीति में उलझ कर विकास से कोसों पीछे चला गया. राज्य के सीएम बनने वालों की किस्मत तो जरूर बदली, लेकिन अब तक इस राज्य की तकदीर और तस्वीर बदने का सबको इंतजार है.