पाकुड़ में बूंद-बूंद पानी को तरसते ग्रामीण, सालों से गंदा पानी पीने को मजबूर

पानी इतना गंदा है कि साफ-सफाई के लिए इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं.

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Jatin Madan
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तालाब का पानी हरा हो चुका है. ( Photo Credit : News State Bihar Jharkhand)

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झारखंड सरकार खुद को कितना भी आदिवासी हितैषी सरकार साबित करने की कोशिश कर ले, लेकिन जमीनी हकीकत की तस्वीरें जैसे ही सामने आती है सरकार के तमाम दावों की पोल खुल जाती हैं. कोई भी आम इंसान पानी को देख कर ही बता सकता है कि ये इस्तेमाल करने लायक नहीं है. पानी इतना गंदा है कि साफ-सफाई के लिए इसका इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं, लेकिन झारखंड में आज भी कई ऐसे ग्रामीण इलाके हैं जहां लोग साफ पानी के लिए तरसते हैं. हिरणपुर प्रखंड के धरनी पहाड़ गांव में सालों से ग्रामीण गंदा पानी पीकर ही अपना गुजारा कर रहे हैं. गांव वालों के पास कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं. गांव में पानी का कोई स्रोत नहीं है. एक तालाब है, लेकिन उसका पानी हरा हो चुका है. मजबूरन ग्रामीण घरेलु काम-काज के लिए इस पानी का इस्तेमाल करते हैं.

पीने के पानी की बात करें तो गांव में सिर्फ एक कुआं है जो पूरे गांव की प्यास बुझाता है. कुएं की हालत भी तालाब जैसी ही है. कुएं में पानी इतना कम है कि बाल्टि डालो तो पूरी बाल्टि भी नहीं डूबती. जो पानी आता भी है वो इतना गंदा होता है कि पीना तो दूर उसे छूने का मन भी न करे, लेकिन मजबूर ग्रामीण इसी पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं. गांव के कुछ परिवार झरने के पानी पर निर्भर है. हालांकि झरने का पानी भी बेहत गंदा होता है.

ग्रामीण जैसे तैसे गंदा पानी पीकर सालों से गुजारा कर रहे हैं, लेकिन समस्या इतनी भर नहीं है. भीषण गर्मी के चलते अब तालाब, पोखर और झरने सूखने लगे हैं. लिहाजा अब ग्रामीणों को गंदा पानी भी मुश्किल से नसीब हो रहा है. ग्रामीणों की माने तो पानी भरने के लिए आपस में सहमति बनाकर समय तय किया गया है. जो ग्रामीण सुबह पानी भरते हैं, वो शाम को पानी लेने नहीं आते हैं. क्योंकि अगर एक परिवार दो बार पानी ले लेगा तो बाकी लोगों को पानी नहीं मिल पाएगा.

धरनी पहाड़ गांव के लोग सालों से इस समस्या से जूझ रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि यहां सोलर जलमिनार का भी निर्माण किया गया, लेकिन वह भी पूरी तरह से ख़राब पड़ा हुआ है और कई साल बीत जाने के बाद भी आज तक कोई भी अधिकारी गांव नहीं आया. अगर गांव में कुएं और नाले का पानी भी सूख जाए तो गांववालों को प्यासा ही रहना पड़ेगा.

धरनी पहाड़ गांव पानी की किल्लत से जूझ रहा है. ग्रीमणों की सुध न वोट मांगने वाले जनप्रतिनिधियों को है न ही प्रशासनिक अधिकारियों को. शासन-प्रशासन ने ग्रामीणों को उनकी हालत पर छोड़ दिया है. हैरान करने वाली बात ये है कि एक तरफ तो सरकार विकास के बड़े-बड़े दावे करती है और दूसरी तरफ प्रदेश की जनता आज भी पानी जैसी मूलभूत जरूरतों के अभाव से जूझ रही है.

रिपोर्ट : तपेश कुमार मंडल

Source : News Nation Bureau

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