विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर पूरे देश के साथ ही साथ झारखंड के विभिन्न जिलों में भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. आदिवासी समाज के विकास के दौर में काफी आगे बढ़ाने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है. आज भी आदिवासी समाज काफी पिछड़ा हुआ है. गुमला जिला के विभिन्न इलाकों में रहने वाले आदिवासी समुदाय की अगर चर्चा करें, तो आज भी गुमला जिला में कई ऐसे इलाके हैं. जहां पर लोगों को मूलभूत सुविधा भी बाहर नहीं हो पाई है.
यह भी पढ़ें- Dumri By Election: डुमरी उपचुनाव के लिए तारीखों का ऐलान, जानिए कब होगी वोटिंग
'विश्व आदिवासी दिवस'
ऐसे में निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर जिस तरह से सरकार और जिला प्रशासन को संकल्प लेकर काम करना चाहिए. उसमें कमी देखने को मिल रही है, जिसको लेकर आदिवासी समाज के लोगों में भी निराशा देखने को मिल रही है. आदिवासी समाज की परंपरा और संस्कृति को याद करने के लिए विश्व आदिवासी दिवस का आयोजन किया जाता है.
जमीनी हकीकत कुछ और कर रही बयां
इस कार्यक्रम के दौरान आदिवासी समुदाय के लोगों को कहीं ना कहीं सम्मानित करके उन्हें समाज में बेहतर स्थान पर स्थापित करने के जो दावे किए जाते हैं, उसकी जमीनी हकीकत कुछ और देखने को मिलती है. हम गुमला की बात करें तो यह झारखंड का एक ऐसा जिला है, जहां पर आदिवासी समाज के कई प्रजातियां रहती है. जिसमें असुर बिरहोर सहित कई आदिम जनजाति के लोग भी शामिल हैं.
23 साल बाद भी आदिवासी समाज पिछड़े हुए
इसके अलावा उरांव, खड़िया, मुंडा सहित कई आदिवासी समाज के लोग यहां निवास करते हैं, लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि झारखंड स्थापना के लंबे समय बीत जाने के बाद भी आज तक आदिवासी समाज का विकास नहीं हो पाया. जिससे वह अपेक्षा करता है. गुमला के कई ऐसे इलाके हैं, जहां आज भी लोगों को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिल पाती है. जिसके कारण उनका जीवन काफी कठिनाई से चलता है. दो वक्त का भोजन बहुत मुश्किल से जुगाड़ हो पाता है, लेकिन उन इलाकों में रहने वाले लोगों को ना तो बिजली, ना शिक्षा, ना स्वास्थ्य ही सही रूप से व्यवस्था मिल पाई है.
मुलभूत सुविधाओं से वंचित है समाज
आदिवासी समुदाय से निकलकर कुछ आगे बढ़ चुकी महिलाओं की मानें तो निश्चित रूप से आज भी उनका समाज काफी पीछे है. उनके समाज के कई ऐसे लोग हैं, जिनके घरों में सही रूप से भोजन की भी व्यवस्था नहीं हो पाती है. कई ऐसे गांव हैं, जहां आज तक आने-जाने के लिए सड़क की व्यवस्था नहीं हो पाई है. ना ही शिक्षा की व्यवस्था हो पाई है, ना ही उनके जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की जा रही है.
सरकार की कार्यशैली पर उठे सवाल
झारखंड राज्य की स्थापना के मुद्दे को अगर ध्यान से देखेंगे तो उसमें राज्य के अलग रूप से स्थापित करने के उद्देश्यों में एक उद्देश्य यह भी था कि आदिवासी समाज का विकास सही रूप से नहीं हो पाया है. वहीं, राज्य को बने हुए 23 साल से अधिक का समय बीत गया है. उसके बाद भी आदिवासी समुदाय की जो स्थिति है, वह निश्चित रूप से काफी चिंताजनक है. यह स्थिति तब देखने को मिल रही है, जबकि अब तक झारखंड में जितने भी मुख्यमंत्री बने हैं, उसमें केवल रघुवर दास को छोड़कर बाकी सभी मुख्यमंत्री आदिवासी समुदाय से आते हैं. उसके बावजूद भी आदिवासी समुदाय का विकास ना होना निश्चित उसे सरकारों की कार्यशैली पर सवाल खड़ा करता है. अगर ध्यान दिया जाए तो रघुवर दास के शासनकाल में आदिवासी बहुल इलाकों में विकास योजनाओं को तेजी से चलाने की कोशिश की जा रही थी, जो योजनाएं चालू भी की गई थी. उन योजनाओं का काम फिलहाल बंद पड़ा हुआ है. ऐसे में स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि सरकार की मंशा आदिवासियों के विकास को लेकर कितनी गंभीर है.
HIGHLIGHTS
- देश मना रहा 'विश्व आदिवासी दिवस'
- जमीनी हकीकत कुछ और कर रही बयां
- मुलभूत सुविधाओं से वंचित है आदिवासी समाज
Source : News State Bihar Jharkhand