मध्यप्रदेश के ग्वालियर में जुटे हजारों भूमिहीनों ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि अगर जमीन देने सहित उनकी अन्य मांगें नहीं मानी तो अगले लोकसभा चुनाव में सरकार गिरा देंगे. यहां के मेला मैदान में जमा हुए हजारों भूमिहीनों में केंद्र सरकार के रवैए को लेकर खासी नाराजगी है. इस मौके पर एकता परिषद के संस्थापक पीवी राजगोपाल ने कहा, 'केंद्र सरकार ने अगर मांगें नहीं मानी तो 2019 के लोकसभा चुनाव में नतीजे भुगतने को तैयार रहे.'
राजगोपाल के आह्वान पर वहां मौजूद लोगों हजारों लोगों ने दोहराया कि अगर केंद्र सरकार ने अगर उनकी मांगें नहीं मानी तो आने वाले चुनाव में केंद्र में मोदी के नेतृत्व में सरकार नहीं बनेगी.
राजगोपाल का कहना है कि अपना हक पाने के लिए अपनी ताकत का अहसास कराना जरूरी हो गया है, केंद्र सरकार से गरीब व वंचित वर्गो को उनका हक दिलाने की बातचीत चल रही है, अगर इन मांगों को नहीं माना जाता है तो इस वर्ग को आगामी चुनाव में अपनी ताकत दिखानी होगी.
जनांदोलन के पहले दिन आए जलपुरुष राजेंद्र सिंह ने कहा कि वर्तमान दौर में सरकारों का नजरिया बदल गया है. वह जनता नहीं, उद्योगपतियों के लिए काम करती हैं. यही कारण है कि देश में जल, जंगल और जमीन पर उद्योगपतियों का कब्जा होता जा रहा है.
जनांदोलन की मंगलवार को ग्वालियर से शुरुआत हुई. ग्वालियर के व्यापार मेला स्थित मैदान में बड़ी संख्या में देशभर के भूमिहीन पहुंचे. हर कोई अपनी-अपनी समस्याएं सुना रहा है. जनांदोलन में हिस्सा लेने आए गांधीवादी सुब्बा राव और भाजपा सांसद अनूप मिश्रा ने आजादी के सात दशक बाद भी लोगों को छत न मिलने और जमीन न होने का जिक्र किया.
एकता परिषद अन्य सामाजिक संगठनों के साथ भूमिहीनों के हित में कई बार आंदोलन कर चुका है. उसे हर बार सिर्फ आश्वासन मिले. इस बात से सभी में खासी नाराजगी है. इस बार सत्याग्रही अपना हक पाने का मन बनाए हुए हैं. ये सत्याग्रही 3 अक्टूबर तक मेला मैदान में विचार-मंथन करेंगे और उसके बाद 4 अक्टूबर को दिल्ली के लिए कूच करेंगे.
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राजगोपाल ने बताया कि यह आंदोलन पांच मांगों को लेकर है. मांग है कि आवासीय कृषि भूमि अधिकार कानून, महिला कृषक हकदारी कानून (वूमन फार्मर राइट एक्ट), जमीन के लंबित प्रकरणों के निराकरण के लिए न्यायालयों का गठन किया जाए, राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति की घोषणा और उसका क्रियान्वयन, वनाधिकार कानून-2005 व पंचायत अधिनियम 1996 के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर निगरानी समिति बनाई जाए.
उन्होंने कहा कि इससे पहले वर्ष 2007 में जनादेश और 2012 में जन सत्याग्रह के दौरान केंद्र सरकार के साथ लिखित समझौते हुए, मगर उन पर अब तक न तो अमल हुआ और न ही कानून बन पाया है.
Source : IANS