मध्य प्रदेश में बीते डेढ़ दशक के बाद मिली एक बड़ी हार ने भाजपा के कान खड़े कर दिए हैं. यही कारण है कि भाजपा ने राज्य को अपना अभेद्य किला बनाने की कोशिशें तेज कर दी हैं. इसी के चलते पार्टी अपने वोट प्रतिशत को 10 प्रतिशत और बढ़ाने में जुट गई है. राज्य में भाजपा ने वर्ष 2003 में कांग्रेस से सत्ता छीनी थी और उसके बाद डेढ़ दशक तक भाजपा का राज रहा, मगर वर्ष 2018 के चुनाव में मिली हार के चलते भाजपा को सत्ता छोड़नी पड़ी थी. यह बात अलग है कि कांग्रेस में हुई बगावत के बाद भाजपा को एक बार फिर राज्य की सत्ता संभालने का मौका मिला.
भाजपा के पास राज्य की सत्ता भले हो, मगर वह अपने जनाधार या यूं कहें कि वोट प्रतिशत को लेकर संतुष्ट नहीं है. पार्टी राज्य को अपना अभेद्य किला बनाना चाहती है और यह तभी संभव है जब उसके पास वोट प्रतिशत आधे से अधिक अर्थात 51 प्रतिशत हो. इसी बात को ध्यान में रखकर पार्टी ने अपने कदम आगे बढ़ने शुरु कर दिए हैं. पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा ने पिछले दिनों प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के उस संदेश को दोहराया था, जिसमें शाह ने कहा था कि चुनाव तो हम जीतते ही हैं, लेकिन हमें अपना वोट शेयर बढ़ाना है. शर्मा ने पार्टी के नेताओं से आह्वान किया है कि वोट शेयर में 10 प्रतिशत से ज्यादा का इजाफा कर उसे 51 फीसदी से ऊपर ले जाना है और यही संकल्प लेकर हमें आगे बढ़ना है.
अभी हाल ही में राज्य के प्रवास पर आए पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बी एल संतोष ने भी पार्टी के नेताओं के साथ हुई बैठक में वोट प्रतिशत बढ़ाने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि प्रदेश में पार्टी का वोट प्रतिशत बढ़ाकर 51 फीसदी पर ले जाना है. इसके लिए घर-घर जाकर संपर्क किया जाए. भाजपा के संगठन से जुड़े एक पदाधिकारी का कहना है कि राज्य में भाजपा की ओर से लगातार नए-नए प्रयोग किए जाते रहे हैं, उसमें सफलता भी मिली है. यही कारण है कि पार्टी ने लगातार तीन चुनाव जीते. वर्ष 2018 के चुनाव में मिली हार से पार्टी ने सबक लिया है, उस चुनाव के बाद संगठन की कमान नए नेतृत्व के तौर पर वी डी शर्मा के हाथ में आई और वे लगातार संगठन की मजबूती के लिए काम कर रहे हैं, और अब वोट प्रतिशत बढ़ाने पर जोर है.
HIGHLIGHTS
- BJP पार्टी ने लगातार तीन चुनाव जीते
- 2018 में मिली हार के बाद हुई सर्तक