भारतीय राजनीति में कांग्रेस के भीतर और बाहर कमलनाथ को मैनेजमेंट (प्रबंधन) मास्टर माना जाता रहा है, लेकिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी यह महारत ही उनकी सबसे बड़ी 'कमजोरी' बनकर उभर रही है. सरकार बनने के बाद विभागों के बंटवारे को लेकर चल रही खींचतान ने यह साबित कर दिया है कि राज्य से बाहर रहकर सियासत करना और राज्य में सियासत करने में बड़ा फर्क होता है. राज्य में कांग्रेस की डेढ़ दशक बाद सत्ता में वापसी हो गई, कमलनाथ मुख्यमंत्री बने. एक सप्ताह से ज्यादा का समय मंत्रियों के चयन में लग गया, अब विभागों के बंटवारे के लिए तीन दिन से खींचतान मची है. कांग्रेस के नेता ही हमलावर हो चले हैं. कोई इस्तीफा दे रहा है तो कोई अपने ही नेताओं पर खुले तौर पर आरोप लगा रहा है.
धार जिले के बदनावर से विधायक राजवर्धन सिंह 'दत्तीगांव' ने सीधे तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर हमला बोला है और कहा, 'पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व उपमुख्यमंत्री, पूर्व कैबिनेट मंत्री के परिवार के लोग मंत्री बन गए हैं, मगर मेरे परिवार से कोई बड़ा नेता नहीं रहा, इसलिए मंत्री नहीं बनाया गया. मैं अपना इस्तीफा पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को सौंप दूंगा, क्योंकि टिकट उन्होंने दिलाया था. मैं अपने पर किसी का एहसान नहीं रखता.
एक तरफ जहां कांग्रेस में चल रही खींचतान पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बनी है तो दूसरी ओर कमलनाथ के प्रबंधन हुनर पर सवाल उठ रहे हैं.
वरिष्ठ पत्रकार साजी थॉमस का कहना है, 'राज्य कांग्रेस की कमान चाहे जिसके भी पास रही हो, मगर हमेशा यही माना गया कि यह सब कमलनाथ के साथ के चलते संभव हो पा रहा है. अब कमलनाथ खुद मुख्यमंत्री बने हैं तो कांग्रेस को लगता था कि वे बगैर विवाद के सरकार चला लेंगे, मगर शुरुआत में ही उनके सामने समस्याएं आने लगी हैं. राज्य में कांग्रेस की गुटबाजी एक बार फिर धरातल पर आ गई है. कमलनाथ की सब को संतुष्ट करने की ताकत अब कमजोरी के तौर पर सामने आ रही है.
कांग्रेस की सरकार बनने और मंत्रियों के शपथ लेने के बाद विभागों का बंटवारा न होने पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी हमला बोला है.
शिवराज ने कहा, 'कांग्रेस सरकार के मंत्रियों की शपथ तो हो गई, लेकिन विभाग अब तक तय नहीं हुए हैं. बिना विभाग तय हुए कैबिनेट की बैठकें हो रही हैं. मंत्री तय हो गए, तो अब विभागों के लिए पार्टी में खींचतान और मारकाट मची है. हर नेता कहता है, मेरे मंत्री को ये विभाग चाहिए. इसी खींचतान के चलते अब तक विभाग तय नहीं हो सके. राज्य के इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है.
कांग्रेस का कोई भी नेता सीधे तौर पर विभाग बंटवारे में देरी की वजह नहीं बता पा रहा है. कमलनाथ के मीडिया समन्वयक नरेंद्र सलूजा यही कह रहे हैं, 'अभी देरी कहां हुई है!'
कांग्रेस की सरकार बनने और मंत्रिमडंल की शपथ के बाद विभागों का बंटवारा नहीं हो पा रहा है. इसे कांग्रेस के भीतर चल रही खींचतान से जोड़कर देखा जा रहा है. कांग्रेस को मुश्किल से सत्ता मिली है और अब सामने आ रही खींचतान से पार्टी की छवि तो प्रभावित हो ही रही है, साथ ही कार्यकर्ता से लेकर आम मतदाता में निराशा पनप रहा है.
Source : IANS