पति-पत्नी के बीच मन-मुटाव के चलते कोर्ट का दरवाजा खटखटा की खबरे तो आपने सुनी ही होंगीं. लेकिन मध्य प्रदेश के देवास से एक ऐसा मामला सामने आया है जिसमें एक छोटी सी बात पर पति पत्नि पिछले 17 साल से अलग रह रहे थे. जिसके बाद इस कहानी में अहम रोल कोर्ट के जज साहब ने निभाया जिन्होंने मामले की तासीर को समझ दोनों को वापस मिलवा दिया. दरअसल देवास के विमलराव बैंक प्रेस नोट से रिटायर हुए थे. उनकी उम्र 79 और पत्नी की 72 साल है. रिटायरमेंट पर मिला पैसा तो उन्होंने पत्नी को सौंप दिया. देवास का मकान भी पत्नी के नाम करवा दिया. पेंशन भी पत्नी के खाते में आने लगी.
रिटायरमेंट के दो साल बाद की बात है, एक दिन पति ने पत्नी से कहा- "मुझे सेव की सब्जी खाना है. पत्नी ने कहा- सेव लाकर दो. पति ने कहा- पैसे दो. पत्नी ने कहा- नौकरी में थे, तब भी तो लाते थे. पति ने कहा- सब तो तुम्हें सौंप दिया, अब पैसा कहां है. पत्नी ने सब्जी नहीं बनाई. पति इतना गुस्सा हुए कि अगले दिन बिना बताए चले गए.
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महाराष्ट्र में रहने लगे थे
महाराष्ट्र के बुलढाना के मातोड़ गांव में झोपड़ी बनाकर रहने लगे. मामला 2016 में तब कोर्ट पहुंचा जब पति ने पेंशन की रकम अपने खाते में शुरू करवा दी. मालूम पड़ा कि महाराष्ट्र के मातोड़ गांव की बैंक से पेंशन निकल रही है. पुलिस वहां पहुंची और पति को द्वितीय अपर जिला सत्र न्यायाधीश गंगाचरण दुबे की कोर्ट में पेश किया. पति ने अपना कष्ट बताया कि जो पत्नी मुझे सेव की सब्जी बनाकर नहीं खिला सकती, उसको पैसा क्यों दूं.
फिर फंसा पेंच, पति बोला- सात फेरों की कसम निभाई नहीं
पति-पत्नी के बीच विवाद लगभग सुलझ ही गया था कि पति के एक सवाल ने फिर मामले में नया पेंच फंसा दिया. पति ने कोर्ट में कहा- पत्नी ने सात फेरों की कसम तो निभाई नहीं. कैसे मान लूं कि सब ठीक है. कोर्ट से पति ने कहा- साईं बाबा के सामने शपथ ले तो मानूंगा. न्यायाधीश ने शिर्डी जाने के लिए कहा तो पति बोले- पैसे नहीं है. न्यायाधीश ने फिर 1500 रुपए इकट्ठे करके दिलवाए. दोनों शिर्डी गए, वहां से वापस आए. 26 नवंबर को संविधान दिवस पर दोनों ने राजीनामा कर लिया.
Source : News Nation Bureau