कोरोना वायरस (CoronaVirus Covid-19) संक्रमण के इलाज के दौरान यहां एक अस्पताल में दिल का दौरा पड़ने से इस दुनिया को अलविदा कहने वाले मशहूर शायर राहत इंदौरी (Rahat Indori) को मंगलवार रात यहां सुपुर्दे-खाक किया गया. वह 70 साल के थे. इंदौरी को उनके चंद परिजनों और करीबी लोगों ने शहर के छोटी खजरानी स्थित कब्रिस्तान में दफनाते हुए अंतिम विदाई दी. मोहब्बत और हिम्मत के रंगों से लबरेज अपनी शायरी की बदौलत दुनिया भर के लाखों प्रशंसकों के दिलों पर राज करने वाले इंदौरी को दफनाये जाते वक्त कब्रिस्तान में केवल 20 लोग मौजूद थे. इनमें से ज्यादातर लोगों ने कोविड-19 से बचाव के लिये निजी सुरक्षा उपकरणों की किट पहन रखी थी.
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महामारी के प्रकोप के कारण उनके कई प्रशंसक चाहकर भी उन्हें आखिरी विदाई देने कब्रिस्तान नहीं आ सके. इससे पहले, विशेष बैग में लिपटे इंदौरी के शव को श्री अरबिंदो इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (सैम्स) से सीधे कब्रिस्तान लाया गया. कब्रिस्तान के आस-पास व्यवस्था बनाये रखने के लिये पुलिस कर्मियों की तैनाती की गयी थी.
इस बीच, सैम्स ने मंगलवार रात जारी बयान में कहा, "इंदौरी को आज दोपहर एक बजे दिल का दौरा पड़ा था. इससे उन्हें बचा लिया गया था. लेकिन इसके दो घण्टे बाद ही उन्हें फिर से दिल का दौरा पड़ा और शाम पांच बजे उनका निधन हो गया." बयान में कहा गया, "इंदौरी के दोनों फेफड़ों में 60 प्रतिशत तक निमोनिया हुआ था. इसलिए उन्हें कृत्रिम श्वसन प्रणाली पर रख गया था. उन्हें उच्च स्तर की एंटीबायोटिक एवं नवीनतम एंटीवायरल दवाएं भी दी गयी थीं."
अस्पताल ने बयान में बताया कि इंदौरी, मधुमेह और उच्च रक्तचाप के साथ हृदय एवं किडनी के पुराने रोगों से पहले ही जूझ रहे थे. वह सोमवार शाम आयी रिपोर्ट में कोरोना वायरस से संक्रमित पाये गये थे. राहत इंदौरी ने मंगलवार सुबह खुद ट्वीट कर अपने संक्रमित होने की जानकारी दी थी. उन्होंने अपने ट्वीट में यह भी कहा था, "दुआ कीजिये (मैं) जल्द से जल्द इस बीमारी को हरा दूं."
राहत इंदौरी साहब का जन्म 1 जनवरी 1950 को रविवार के दिन हुआ था. इस्लामी कैलेंडर के मुताबिक ये 1369 हिजरी थी और तारीक 12 रबी उल अव्वल थी. इसी दिन रिफअत उल्लाह साहब के घर राहत साहब की पैदाइश हुई. उनके पिता रिफअत उल्लाह सन 1942 में सोनकछ देवास जिले से इंदौर आए थे, तब शायद ही उन्होंने कभी ये सोचा हो कि उनका बेटा आने वाले समय में एक दिन अपने शहर को एक नई पहचान देगा. राहत साहब के बचपन का नाम कामिल था बाद में इनका नाम बदलकर राहत उल्लाह कर दिया गया. राहत साहब का बचपन बहुत ही गरीबी और मुफलिसी में बीता.
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राहत इंदौरी जनता के खयालातों को अपनी शायरी के माध्यम से बयां किया करते थे इस पर जुबान का लहजा ऐसा होता था कि क्या लखनऊ और क्या इंदौर क्या दिल्ली और क्या लाहौर. हर जगह के लोगों की बात उनकी शायरी में होती है. इसका एक उदाहरण तो बहुत पहले ही मिल गया था. साल 1986 में राहत साहब कराची में एक शेर पढ़ते हैं और लगातार 5 मिनट तक तालियों की गूंज हाल में सुनाई देती है और फिर बाद में दिल्ली में भी वही शेर पढ़ते हैं और ठीक वैसा ही दृश्य यहां भी होता है.