सरकारी मशीनरी और आम नागरिक की जुगलबंदी जमीनी हालात बदल सकती है. इसका उदाहरण है मध्य प्रदेश की औद्योगिक नगरी इंदौर, जो स्वच्छता की मिसाल बन गई है. इंदौर कभी स्वच्छता के मामले में 61वें पायदान पर हुआ करता था, मगर बीते तीन सालों से यह देश का सबसे स्वच्छ शहर बना हुआ है और चौथी बार भी स्वच्छता का सिरमौर बनने की तरफ बढ़ रहा है. देश के सबसे साफ-सुथरे शहर के तौर पर पहचाना जाने वाला इंदौर साल-दर-साल बदला है. अपने को सुधारा है, उसी का नतीजा है कि आज इस शहर की पहचान ही स्वच्छता के तौर पर है.
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पिछले सालों की स्थिति पर गौर करें तो साल 2015 के स्वच्छ सर्वेक्षण में इंदौर 25वें स्थान पर और 2011-12 में 61वें स्थान पर था. धीरे-धीरे इसे बदलने की कोशिश हुई और अब यह शहर देश का सबसे साफ शहर बन गया है. नगर निगम के जोन अधिकारी नरेंद्र कुरील कहते हैं, 'शहर में नगर निगम और गैर सरकारी संगठन आम लोगों के साथ मिलकर शहर को स्वच्छ बनाए रखने का अभियान चलाए हुए है. इसमें हर वर्ग का सहयोग मिल रहा है. पूरे 24 घंटे अलग-अलग तरह से सफाई अभियान चलता रहता है. सूखा और गीला कचरा अलग-अलग संग्रहित किया जाता है. इसमें जन सामान्य का पूरा सहयोग मिल रहा है. मुहल्लों में कंटेनर लगाए गए हैं.'
नगर निगम के स्वच्छता प्रभारी रजनीश कसेरा का कहना है, 'इंदौर में स्वच्छता का कार्यक्रम पीपीपी मोड से आने वाले राजस्व से चलता है. इस मॉडल से एक तरफ सफाई व्यवस्था सुचारु तरीके से चल रही है तो दूसरी ओर नगर निगम को आय होती है. गैर सरकारी संगठनों के 300 से ज्यादा वालेंटियर लोगों को जागरूक करने में लगे हैं, वहीं कचरा इकट्ठा करने और नियमित सफाई का अभियान चलता है. इसमें सरकारी मशीनरी, गैर सरकारी संगठन, व्यापारिक संगठनों के साथ आम आदमी का सहयेाग है और उसी का नतीजा है कि इंदौर स्वच्छ शहर बना हुआ है.'
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इंदौर में रात में ही सड़कों की सफाई होती है और दिन में दो बार कचरे का संग्रहण किया जाता है. गीले और सूखे कचरे के लिए दो अलग-अलग कंटेनर लगाए गए हैं. सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट में भी काफी काम हुआ, खुले में शौच से मुक्ति मिली. इतना ही नहीं, यहां कई नवाचार भी हुए हैं. बर्तन बैंक बनाया गया है, जिससे प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग कम हुआ है. थैला बैंक भी बनाया गया. इसके साथ ही सूखा कचरा खरीदने का सिलसिला भी शुरू हुआ. टंचिंग ग्राउंड में ऑटोमैटिक मटेरियल रिकवरी फैसिलिटी प्लांट स्थापित किया गया है, जहां 12 तरह के सूखे कचरे को अलग किया जाता है.
नगर निगम के आयुक्त कसेरा के अनुसार, घरों में इकट्ठा होने वाला कचरा खरीदा भी जाता है. इसके चलते इंदौर में 100 ऐसी आवासीय कॉलोनियां हो गई हैं, जो जीरो वेस्ट वाली हैं, यानी उनसे कोई कचरा नहीं निकलता. वहीं महापौर मालिनी गौड़ का कहना है, 'स्वच्छता सर्वेक्षण के पहली व दूसरी तिमाही के परिणाम आ गए हैं. हमारा इंदौर फिर से नंबर एक आया है. अब मुख्य परीक्षा की घड़ी भी आने वाली है. चार से 31 जनवरी, 2020 तक स्वच्छ सर्वेक्षण 2020 चलेगा. हमें उस सर्वेक्षण में भी प्रथम आना है और स्वच्छता का चौका लगाना है.'
Source : IANS