पुलिस की गंभीर लापरवाही के एक मामले में मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को 68 वर्षीय व्यक्ति को पांच लाख रुपये का मुआवजा अदा करने का आदेश दिया है. नाम की गफलत के कारण इस बेकसूर बुजुर्ग को हत्याकांड में उम्रकैद की सजा पाने वाले उस व्यक्ति के स्थान पर पकड़कर चार महीने तक जेल में बंद रखा गया जिसकी पैरोल पर छूटने के बाद साढ़े तीन साल पहले मौत हो चुकी है. न्यायमूर्ति एससी शर्मा और न्यायमूर्ति शैलेंद्र शुक्ला ने धार जिले के हुसन (68) के बेटे कमलेश की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका मंजूर करते हुए सोमवार को यह फैसला सुनाया.
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धार जिले के एक हत्याकांड में सत्र अदालत ने 'हुस्ना' नाम के व्यक्ति को उम्रकैद की सजा सुनायी थी. जेल से पैरोल पर छूटने के बाद 10 सितंबर 2016 को उसकी मौत हो गयी थी. जब यह सजायाफ्ता कैदी पैरोल की अवधि खत्म होने के बावजूद जेल नहीं लौटा, तो उसके खिलाफ गिरफ्तारी वॉरंट जारी किया गया था. पुलिस ने मिलते-जुलते नाम की गफलत के कारण 'हुस्ना' के स्थान पर 'हुसन' को गिरफ्तार कर 18 अक्टूबर 2019 को इंदौर के केंद्रीय जेल भेज दिया था.
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जनजातीय समुदाय से ताल्लुक रखने वाला यह 68 वर्षीय शख्स पढ़-लिख नहीं सकता और उसके बेकसूर होने की लाख दुहाई देने के बावजूद पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया था. उच्च न्यायालय की युगल पीठ ने इस बड़ी लापरवाही पर गहरी नाराजगी जताते हुए आदेश दिया कि निर्दोष हुसन को फौरन जेल से रिहा किया जाये. पीठ ने पुलिस के एक अनुविभागीय अधिकारी (एसडीओपी) के खिलाफ अदालत की अवमानना का मामला दर्ज करने का आदेश भी दिया. इस अधिकारी ने मामले में अदालत को हलफनामे में गलत जानकारी दी थी.
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पीठ ने कहा कि उन सभी पुलिस कर्मियों के खिलाफ भी अदालत की अवमानना का मामला दर्ज किया जाये जिन्होंने हुसन की गलत गिरफ्तारी के वक्त संबंधित थाने के रोजनामचे में उसे "हुस्ना" (मृत सजायाफ्ता कैदी) बताते हुए उसके बारे में अलग-अलग प्रविष्टियां दर्ज की थीं. अदालत ने कहा, "यह मामला आरोपियों की सही पहचान किये बगैर बेकसूर लोगों को गिरफ्तार किये जाने की मिसाल है. लिहाजा निर्देश दिया जाता है कि गिरफ्तारी के सभी मामलों में संबंधित एजेंसियां आरोपियों की पहचान के लिये दस्तावेजी सबूतों के साथ ही बायोमीट्रिक प्रणाली का भी सहारा लेंगी ताकि हुसन जैसे बेकसूर लोगों को दोबारा जेल न जाना पड़े."
Source : Bhasha