एक बार फिर मध्य प्रदेश की सत्ता सिंधिया परिवार के हाथ आते-आते फिसल गई. इस बार मौका भी था, दस्तूर भी था पर नहीं था तो वो है संयोग. हर मौके पर मध्य प्रदेश की राजनीति में सिंधिया परिवार का नाम बड़े ही अदब से लिया जाता है, लेकिन अंत समय में जब सत्ता की बाजी आती है तो बाजी कोई और मार ले जाता है. माधव राव सिंधिया के साथ भी ऐसे ही हुआ था. नरसिम्हा राव के समय में उन्हें ही 1993 में मुख्यमंत्री बनाने की बात हो रही थी, लेकिन अंत समय में अर्जुन सिंह, श्यामाचरण शुक्ला और दिग्विजय सिंह की तिकड़ी ने बाजी पलट दी और दिग्विजय सिंह के नाम पर लॉटरी लग गई थी.
मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री की कुर्सी सिंधिया परिवार के हाथ से फिसली है, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया को लेकर 1993 में कांग्रेस को मिली जीत के बाद भी ऐसे ही चर्चे थे. वे इस बात को लेकर इत्मीनान थे कि मुख्यमंत्री वहीं बनेंगे मगर कुर्सी ऐसे शख्स को मिली, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी.
बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद तत्कालीन केंद्र सरकार ने सभी बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों को भंग कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया था. मध्य प्रदेश में भी बीजेपी की सरकार थी, लिहाजा राज्य सरकार भंग कर दी गई. 1993 नवंबर में विधानसभा चुनाव हुए तो कांग्रेस को जीत हासिल हुई. दिग्विजय सिंह उस समय प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष थे. इस जीत के बाद मुख्यमंत्री बनने की दौड़ में श्यामा चरण शुक्ल, माधवराव सिंधिया और सुभाष यादव जैसे नेता शामिल हो गए. मजेदार बात यह है कि दिग्विजय सिंह उस समय सांसद थे और विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़े थे, लेकिन ऐन मौके पर दिग्विजय सिंह का नाम उछाल दिया गया और माधव राव सिंधिया के हाथ आई सत्ता फिसल गई थी.
राजनीतिक हलकों में माना जाता है कि यह सब माधव राव सिंधिया को रोकने के लिए किया गया था. अर्जुन सिंह और दिग्विजय सिंह ने इसके लिए कवायद की थी माना जाता है कि दिग्विजय को श्यामा चरण शुक्ल राजनीति में लेकर आए थे. मीडिया रिपोर्ट की मानें तो विधायक दल की बैठक में अर्जुन सिंह ने सुभाष यादव का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए आगे बढ़ाया था, लेकिन उस पर सहमति नहीं बनी थी.
उधर, माधव राव सिंधिया दिल्ली में हेलीकॉप्टर के साथ फोन आने का इंतजार कर रहे थे. विधायक दल की बैठक में विवाद बढ़ता देख प्रणब मुखर्जी ने गुप्त मतदान कराया, जिसमें 174 में से 56 विधायकों ने श्यामाचरण के पक्ष में राय जताई, जबकि 100 से ज्यादा विधायकों ने दिग्विजय के पक्ष में मतदान किया था. इस तरह दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री बन गए और माधवराव फोन का इंतजार ही करते रह गए.
Source : Sunil Mishra