मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में बोरवेल के लिए खोदे गए गड्ढे ने मासूम की बलि ले ली. अब प्रशासनिक तौर पर ऐसे खुले गड्ढे छोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई की बात चल रही है, मगर सवाल उठ रहा है कि आखिर प्रशासन हादसों के बाद ही क्यों जागता है.
पानी के संकट से जूझने वाले आम लोगों से लेकर किसान तक बोरवेल खुदवातें हैं और जब पानी नहीं निकलता तो बोरवेल के गड्ढों को खुला छोड़ दिया जाता है और फिर निवाड़ी के सेतपुरा जैसी घटनाएं हो जाती हैं. प्रहलाद का बोरवेल के गड्ढे में गिरना उसके बाद 90 घंटे से ज्यादा वक्त तक राहत और बचाव अभियान का चलना कोई पहली बार नहीं हुआ है, बल्कि ऐसा कई बार हो चुका है. हर बार जब हादसा होता है तो बोरवेल खुला छोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई की बात कही जाती है, मगर होता कुछ नहीं है.
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निवाड़ी में हुए हादसे के बाद वहां का प्रशासन यही कह रहा है कि बोरवेल के लिए खोदे गए गड्ढों को कहां कहां खुला छोडा गया है, उसका पता लगाया जाएगा, बंद कराया जाएगा, वहीं गड्ढे खुला छोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.
प्रहलाद के बोरवेल के गड्ढे में फंसने के बाद सागर के कलेक्टर दीपक सिंह ने सभी अनुविभागीय अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे अपने-अपने विकास खंड में खुले पड़े बोरवेल का तत्काल सील कराएं. ताकि निवाड़ी जैसी घटना की पुनरावृत्ति न हो.
सामाजिक कार्यकर्ता संतोष द्विवेदी सरकारी कामकाज के तौर तरीके पर सवाल उठाते है. उनका कहना है कि बोरवेल खोदने वाली मशीन के संचालकों के लिए यह प्रावधान क्यों नहीं किया जाता है कि जब वे बोरवेल करें, तो स्थान को तभी छोड़े जब वे उस स्थान को पूरी तरह सुरक्षित कर दे, अथवा कम से कम ढक्कन तो लगा दें. अगर ऐसा नहीं करते है तो उनके खिलाफ थाने में प्राथमिकी दर्ज की जाए. साथ ही राहत और बचाव का खर्च भी उनसे वसूला जाए. इस तरह के हादसे होने पर कलेक्टर की भी जिम्मेदारी तय की जाना चाहिए.
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने एक ट्वीट कर प्रदेशवासियों से अपील की है. उन्होंने निवाड़ी की घटना का जिक्र करते हुए कहा मैं उन सभी से करबद्ध प्रार्थना करता हूं की जो भी अपने यहां बोरवेल बना रहे है, वो बोर को किसी भी समय खुला न छोड़े. पहले भी ऐसे अकस्मात में बहुत से मासूम अपने जीवन गंवा चूके है.आप सब भी कहीं अगर अपने आस-पास बोरवेल बन रहे हो तो उसे मजबूती से ढंकने का प्रबंध करे और करवाये.
ग्वालियर-चंबल और बुंदेलखंड इलाके में जल, जंगल व जमीन के लिए काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मनीष राजपूत का कहना है कि बुंदेलखंड वह इलाका है जहां किसान के लिए बोरवेल खुदवाना आसान नहीं होता, क्योंकि उसकी माली हालत ठीक नहीं है. उस पर जब बोरवेल में पानी नहीं निकलता अर्थात असफल हो जाता है तो उसे खुला छोड़ देते है. इस इलाके में सैकड़ों की संख्या में खुले बोरवेल के गड्ढे मिल जाएंगे. लिहाजा सरकार और प्रषासन को मदद करके इन बोरवेल को बंद कराना चाहिए.